सोमवार, 31 जनवरी 2011

अपने जन्मदिन पर


चाहता हूँ 
ढेरो फूल अपने जन्मदिन पर
ताकि उनमे से कुछ  दू उन्हें 
जो शून्य से ३० डिग्री नीचे तक के तापमान पर 
जागते हैं अपलक 
सत्ता के बदलने से नहीं बदलता 
सीमा का माहौल 

कुछ फूल अर्पित करने हैं 
उस बेनाम लड़की के लिए जो 
कहते तो हैं कि आई थी बंगलादेश से
लौट कर जा ना सकी वापिस 
बूढी माँ उसकी सीमा पार 
कर रही है उसका इन्तजार

कुछ फूल बांटने हैं 
शहर के लैंड फिल ज़ोन में 
कचरे के बीच प्लास्टिक बीनते बच्चों के बीच 
जिनकी आँखों में ख़ुशी 
प्लाटिक के चटक किन्तु बेजान रंगों सी  है 
त्यौहारों और उत्सवों से
कुछ फर्क नहीं पड़ता कई जीवनों में 

एक फूल देना है 
हंसकर जो बेचता है फूल 
नुक्कड़ पर देर रात तक 
देते समय फूल निश्छल हंसी के साथ 
शरीक होता है हर छोटे बड़े मौकों पर 


और अंतिम फूल चाहिए 
उसके लिए जो है 
प्रथम पाठिका मेरी कविताओं  की 
प्रथम शिक्षिका जीवन की 
प्रथम पाठशाला प्रेम की 

लेकिन नहीं चाहता मैं 
एक भी फूल टूटे अपनी डाली से
और मुरझा जाए मेरे लिए 
सो जब तक संवेदना जीवित है मुझमे
नहीं देना मुझे कोई फूल कोई शुभकामना 

शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

प्रतीक्षा



लौट जाता है सूरज
समंदर के आँचल में 
चला आता है चाँद
अपने घर से

लेकिन ख़त्म नहीं होती 
आसमान की प्रतीक्षा 


लहरे
लौट आती हैं
छू कर तटों को
लेकिन साथ नहीं आता तट
लहरों के साथ
ख़त्म नहीं होती
लहरों की प्रतीक्षा 

सपने 
आते है रोज
झिलमिलाते  
गुलमोहर सजाये 
चले जाते हैं 
आँख खुलने के साथ ही 
फिर भी अच्छा लगता है 
सपनों की स्वप्निल प्रतीक्षा  

रोज सुबह से 
कोई देखता है  रास्ता
डाकिये का 
मालूम भी  है कि
नहीं आयेगी कोई चिट्ठी 
उसके नाम तुम्हारे गाँव से 
फिर भी उसे  पसंद है 
सांझ ढले तक करना 
डाकिये  की प्रतीक्षा 

पलकें बिछाए  
मन की  चौखट पर
खड़ा हूँ मैं 
वर्षों से
लेकिन नहीं आये
तुम्हारे आलता भरे पाँव
अनवरत है 
प्रतीक्षा मेरी भी .

मंगलवार, 25 जनवरी 2011

यह राजपथ

यह राजपथ

प्रगति पथ
उन्नति पथ
स्वाभिमान पथ
आत्मसम्मान पथ


यह राजपथ


विजय पथ
विकास पथ
अखंडता पथ
संप्रभुता पथ

यह राजपथ

आरोह पथ
अविराम पथ
संस्कार पथ
संस्कृति पथ
ज्ञान पथ
विज्ञान पथ

यह राजपथ

नहीं स्थान यहाँ
जातिगत विद्वेष का
नहीं स्थान यहाँ
धार्मिक अविश्वाश का
यह पथ
प्राण आहुति विशेष का
यह पथ
स्वयं के उत्सर्ग का


यह राजपथ
जन जन का पथ !

(गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामना के साथ !) 

सोमवार, 24 जनवरी 2011

होना ही था


१. 

होना ही था
जंगलों को तबाह 
देने के लिए रास्ता 
सडको को /राजमार्गों को 
अलग बात है यह 
पगडण्डी नहीं मांगती बलिदान 
बिठाती है सामंजस्य . 


२. 

होना ही था 
खेतों से विस्थापन किसानो का 
देने के लिए कारपोरेट किसानी को स्थान 
सोचने की बात है यह 
कैसे कर लेता है आत्महत्या 
हर दिन जूझने वाला किसान 


३.

होना ही था 
अपनों के बीच 'स्पेस' की मांग 
अपने अपने स्वतंत्र व्यक्तित्व के लिए 
आज महत्वपूर्ण है यह 
निजता भारी  पड़  रही है
अपनेपन  पर 


४.

होना ही था 
तुम ले लोगी अलग रास्ता 
एक मोड़ पर आकर
क्योंकि तुम्हे नहीं दिखता 
रौशनी के बीच का अँधेरा 
मुझे  अच्छी लगती है
अँधेरे की रौशनी

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

हैती

प्रथम अश्वेत गणतंत्र
नए विश्व के समीकरण में
नहीं उतरता
कहीं खरा
क्योंकि उसे चुकाना है अभी
अपने स्वतंत्र होने का मूल्य
दो शताब्दी के बाद भी.

विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था
समृद्धि  और आधुनिकता के राष्ट्र समूह के
आँचल में पल रहा है
यह दुनिया का सबसे गरीब देश
जो कभी केंद्र रहा था
प्राकृतिक संसाधनों और उनके व्यापार का
जहाँ थे कभी पहाड़, जंगल ही जंगल,
समंदर ही समंदर
और दोहन इस तरह हुआ कि
मौजूद है बस
बंजर भूगोल
बाढ़, भूचाल और
इन सबसे उपजी स्याह सिसकियाँ

उपनिवेशवाद को
पहली चुनौती देते हुए
जिस भूमि में बोया गया था
क्रांति बीज
वहीँ काटी जा रही हैं
भ्रष्टाचार की फसल

'जींस जेक्वस डेसलीन' का
नेतृत्व संघर्ष जिसने दी थी
नेपोलियन की सेना को भी मात
और जीता था स्वातंत्र्य 
लोकतंत्र की रख न सका नीव
और दूर रही सत्ता और सरोकार
आम आदमी से

सैकड़ो तख्ता पलट
उलट फेर के बीच जो साम्य रहा
वह था हाशिये पर
जन और जनहित
तभी तो अपने नाम का
ऊँचे पहाड़ो की भूमि का अर्थ रखने वाला
बौना है नए विश्व समीकरण में
और गिरफ्तार है
नव-उपनिवेशवाद के शिकंजे में
विश्व का प्रथम अश्वेत गणतंत्र -हैती

बुधवार, 19 जनवरी 2011

प्रथम वर्षगांठ पर


(कल यानि १८ जनवरी को सलिल वर्मा जी (चलाबिहारी ब्लॉगर  बनने फेम) की  शादी की  सालगिरह थी . संयोग से मिलना हुआ स्वप्निल 'आतिश' के  साथ. उनसे मिलकर जब घर लौटा तो मेरी अपनी डायरी  में अपने विवाह के पहले वर्षगाँठ पर लिखी कविता मिली, सोचा पोस्ट कर दूं . )  

साल गुज़र गया
हम रहे साथ साथ
कैसे बीता
खबर ही नहीं

धरती अपने  अक्ष पर
घूमती रही अपनी गति से
हमें लगी बहुत तेज़
फिर भी
हमारी सम्मिलित कल्पनाओं से
अधिक नहीं !

ऋतुएँ आईं
ऋतुएँ गई  भी
हमारे लिए तो रहा
वसंत ही
खिले रहे पुष्प
मन के आँगन में
और स्थगित रहा पतझड़
ड्योढ़ी पर ही
साल जो गुज़र गया
हाथ में रहा तुम्हारा हाथ

ठीक है
चाँद नहीं ला पाया मैं
धरती पर
तुम्हारे लिए
तारे भी नहीं लाया तोड़
फिर भी
खुश रही तुम
अपने जीवन में सबसे अधिक
हंसी की खनक
कुछ अधिक हुई
आँखों की चमक
कुछ अधिक चटक हुई
मन भीगा भीगा रहा
साल  भर
साथ साथ रहे जो हम

सुना है गुरुत्वाकर्षण का बल
होता है सबसे अधिक
लेकिन खींचा हमने
एक दूसरे को 

एक दूसरे के प्रति
जा कर पृथ्वी के गुरुत्व के विपरीत

और स्थापित किया - प्रेम का बल
जो  है सबसे प्रबल, सबल
विज्ञान की अवधारणा से परे.

शनिवार, 15 जनवरी 2011

लकीरें

सिखाया गया था 
बचपन में 
एक लकीर को 
छोटा  करने के लिए
खींचनी चाहिए
एक बड़ी लकीर 
समय के साथ
बदल गई यह सीख
और छोटी कर रहे हैं
हम लकीरें
काट कर. 

दादा जी कहते थे
उनकी हाथ की लकीरे
देखनी है तो देखो
हल के मुट्ठे को
हथेलियों में 
कहाँ होती हैं लकीरें 
आम आदमी के 

पानी पर 
खींचते हुए लकीरें 
खो जाता हूं मैं 
याद करते हुए 
उन लकीरों को 
जो खींची थी  तुमने 
मेरी हथेलियों पर, 
अंतिम बार 
जब मिले थे हम . 

गुरुवार, 13 जनवरी 2011

बोनसाई 2

प्रतीक के रूप में

जब इस्तेमाल हो रहे हैं
जीवन के मूल तत्त्व जैसे 
जल वायु आकाश अग्नि और पृथ्वी 
दीवारों पर टंगे 'कृष्ण अर्जुन' के संवाद वाले पोस्टर से
मिल रही है प्रेरणा 
प्रकृति प्रेम परिलक्षित हो रहा है 
दीवारों के 'सिंथेटिक' रंगों से 
अचंभित नहीं करते 
टैरेस गार्डेन में 
आम, जामुन, लीची, 
नीम और पीपल 

अपने लघु आकार में 


दूरियों के 
सिमटने के साथ ही
सिमट रहे हैं 
अपने दायरे 
सरोकार जाहिर करने के लिए 
बदल गई है विधि 
ऐसे में अचंभित नहीं करता 
दो अपनों के बीच
स्पेस  का आग्रह
और कमरे के कोने में रखे 
बोनसाई का संक्रमण 

बोनसाई है 
अट्टहास 
हमारे लघु होते मानस पर 
सिकुड़ते दृष्टिकोण पर 
सूखते प्रेम कुंड पर 


घर के अन्तरंग कोनो में 
गर्वित हो शोभायमान बोनसाई 
खुश होता है 
देख हमारा  अकेलापन 
लघु होते  संस्कार और
विलुप्त  प्राय संस्कृतियाँ 

विशाल हो फैला लेता है 
अपनी जड़े 
हमारे मष्तिष्क पर 
बोनसाई 

सोमवार, 10 जनवरी 2011

बोनसाई

जब मैं बातें करता था
खेतों की
अच्छा लगता था तुम्हे
साथ चल दिया करती थी तुम
मेरे साथ एक यात्रा पर
पगडंडियों के सहारे
यादों से गुजरते हुए
चली जाती थी तुम
मेरे बचपन में
तोड़ लाती थी कुछ गेहू की बालियाँ
अमलताश के लरजते लटकते
फूलों  से लदी डालियों पर
झूल आया करती थी
और जब मैं कहता था
अमलताश के पीले फूलों के बीच 
सुन्दर लगता है तुम्हारा चेहरा
हंसी के फव्वारे में 
भीग जाते थे हम

मेरे गाँव के पोखर में
नहा आती थी तुम
बातों ही बातों में
और सुखाती थी अपने गीले केश
मद्धम धूप में
औरतों वाले  घाट पर
तुम्हारे क्लब के तरणताल से कहीं अधिक
अच्छा लगता था तुम्हे
मेरे गाँव के बाहर का वह पोखरा
जिसकी विशालता के कारण कहते हैं
दैत्यों ने खोदा था इसे और
यहीं तैरना सीखा था मैंने

मेरी साइकिल पर
घूम आती थी तुम
हाट बाज़ार
स्कूल कालेज
वैद्य जी का घर
पंसारी की दुकान
इकलौता पोस्ट ऑफिस
मेरे रिश्तेदारी तक को
जान गई थी तुम धीरे धीरे
निकटता उनसे हो गई थी तुम्हारी 
मुझसे कहीं अधिक

तुमने देना चाहा मुझे
अपने जीवन में स्थान
फिर एक दिन दिखाया
अपना विशाल और भव्य बैठक खाना
जिसमे रखे थे 

तरह तरह के बोनसाई
दर्शा रहे थे तुम्हारी पसंद को
कोने में रखा था एक बरगद
मेरे गाँव के बरगद सा.


और लौट आया मैं अपने गाँव.

गुरुवार, 6 जनवरी 2011

माएं जानती हैं रैपर का मनोविज्ञान

विज्ञापन के प्रभाव से
जो आती है
छद्म मुस्कान
मासूम बच्चों के चेहरे पर
नहीं खोना चाहती हैं माएं


बनाती हैं संतुलन
बजट और  बाज़ार के बीच
रैपर के मनोविज्ञान की 

अदृश्य किन्तु मज़बूत डोरी से


मध्य वर्ग का 
मध्यम मार्ग अपनाती हुई 
कई माएं
खरीद लाती हैं कभी कभी 

ब्रांडेड महंगी चीज़ें
जैसे बिस्कुट, खाद्य सामग्रियां

चमकीले रैपरों में
जाकर बाहर अपने बजट से 


संभाल  कर रखती हैं
उन रैपरों को
महीनों तक
क्योंकि फिर से
भरना होता है उनमें 
तथाकथित लोकल वस्तुएं
और लडती हैं 

बाज़ार से
पूरी चालाकी से 


रैपर के मनोविज्ञान से 
कई बार हारता है बाज़ार
क्योंकि माएं 
जानती हैं अब भी
अपने बच्चों का मनोविज्ञान

मंगलवार, 4 जनवरी 2011

हार्न

हार्न के अविष्कारक के बारे में 
नहीं जानते हुए भी
कहा जा सकता है कि
की गई होगी हार्न की खोज 
समीप में दूर खड़े व्यक्ति को बुलाने,
किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए.
सदियों से अलग अलग काल खंड और अवसरों पर
भिन्न भिन्न नामों से जाना गया है इसे 
आज कल हार्न कहते हैं
हार्न के बजने का 
होता है अलग अलग अर्थ 
जैसे जब एक बस का ड्राईवर 
बजाता है कनफोडू आवाज़ में जोरो से हार्न 
बस स्टैंड पर खड़ी सवारियों में 
मच जाती है होड़, शुरू हो जाती है 
धक्का मुक्की 
अवसरों को आकर्षित करने का चुम्बक
बन जाता है हार्न
इंजन की सीटी भी
एक तरह का हार्न ही है
जो प्रतीक बनी रही
जीवन की गति की सदियों तक

कुछ फैक्टरियों में
बजते हैं हार्न
साइरन के रूप में आज भी
जबकि आधुनिक कंपनियों में
स्वचालित पंचिंग मशीनो ने ले लिया है
साइरन का स्थान
जिनका बिना किसी शोर के भी
रहता है बहुत भय

वैसे होती तो हैं
साइकिल/रिक्शे की घंटियाँ भी  हार्न ही
लेकिन असर बहुत कम होता है
न पैदल सवार देते हैं रास्ता
न सुनते हैं दुपहिया चारपहिया ही
सर्वहारा हार्न कह सकते हैं इनको.

हो गए हैं हार्न
डिज़ाईनर
नक़ल करते हैं
नदियों की  /झरनों की
बाघ की  /सियार की 
कोयल की  /कौवे की  भी
मुर्गे की  बांग के स्वर भी आने लगे हैं
और आसानी से सुने जा सकते हैं
मोबाइल फ़ोन के रिंग टोंस में
आदमी को रखते हुए बैचैन

अस्पताल के एम्बुलेंस
और अति विशिष्ठ लोगों के काफिले के हार्न
होते हैं ध्वनि प्रभाव में लगभग एक जैसे ही
लेकिन प्राथमिकता में
मद्धम पड़ जाते हैं एम्बुलेंस
हाशिये पर खड़े आम जन की तरह

कुछ लोग
लगातार बजा रहे हैं हार्न
अलग अलग रंग के
अलग अलग रूप के
अलग अलग स्वर में
आदमी, जंगल, पहाड़, नदी झरनों को
करने के लिए विस्थापित 
डर लगता है इन लुभावने हार्नो से

जबकि
कुछ प्रतिबद्धित लोग
बजा रहे हैं हार्न
जगाने के लिए
जागे हुए लोगो को
इस प्रयास में कुछ हार्न
शहीद कर दिए गए ख़ामोशी से