बुधवार, 29 अप्रैल 2015

'एक था गरीब किसान'

बाबूजी को
कहाँ याद होगा कि
कब पैदा हुए थे
हाँ दद्दा बताते थे कि
जब अंग्रेजों के जाने के बाद
कलकत्ता में हुए थे दंगे
गाँधी जी बैठे थे
धरने पर
पैदा हुए थे बाबूजी
उसी दौरान

कहते हैं
बड़ा कठिन समय था वह
देश में
ना सड़कें थी
ना बिजली
किसानो की हालत
और भी बुरी थी
तभी तो
जब बाबूजी कहते थे
दद्दा को

सुनाने कहानी
दद्दा की हर कहानी शुरू होती थी
'एक था गरीब किसान'

समय बीता
बाबूजी हुए जवान
उसी गरीबी में
रेडियों पर सुनते थे
देश कर रही है
तरक्की
तरक्की करते रहे
बाबूजी भी
दद्दा गुज़र गए
उसी गरीबी में
तरक्की के बीच

कोई माध्यम मार्ग
अपनाया देश ने
कहते हैं बाबूजी
लोग गाँव छोड़ छोड़ भागे
फिर हुए युद्ध
फिर हुआ अकाल
और गाँधी जी की तरह
विनोबा जी घूमे गाँव गाँव
सुना दिन फिर जायेंगे
किसानो के
इसी अकाल में
पैदा हुआ मैं
कहते हैं बाबूजी
और यह समय भी था
बड़ा ही कठिन
ठीक उसी तरह
जब पैदा हुए थे बाबूजी
और जाते हुए
खेत या खलिहान
सुनाते थे  कहानी
'एक था गरीब किसान'

समय
और भी बदला
तरक्की और भी हुई
इस तरक्की का शोर
कुछ अधिक था
अखबारों में
रेडिओ में
टीवी में
और घर घर घूम कर
किया गया इस तरक्की का प्रचार
इस बीच
हुए कुछ और युद्ध
लेकिन सीमा पर नहीं
सीमा के भीतर
माध्यम मार्ग जो अपनाया गया था
बाबूजी के ज़माने में
कर दिया गया उसे
असफल घोषित
और इसी असफल समय में
बने कुछ नए युद्ध के मैदान
जैसे खेत खलिहान
हाट बाज़ार
दिल दिमाग
और हमला हुए भीतर से
बेहद सुनियोजित थे
वे हमले
इन्ही हमलो के बीच
पैदा हुआ मेरा बच्चा
मैं भी सुनाता हूँ
उसे कहानी
और कहानी अब भी
शुरू हो रही है
'एक था गरीब किसान' 


  

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

मृत्यु

कैसी होती है मृत्यु
कैसा होता है इसका स्वाद 
क्या होता है इसका कोई रूप भी 
क्या देता है यह निर्वाण 
कैसा सुख है इस  में 
जो करता है  बंधनो से मुक्त 
कितनी पीड़ा देता है  
जो होती है कोई प्रतीक्षा 
या विछोह ही।  

प्रेम भी तो मृत्यु ही है 
रहस्य से भरा 
रहस्यहीन  भी।