बुधवार, 25 जनवरी 2017

तिरंगे का रंग



मेरे गाँव के बच्चे
जो कभी कभी ही
जाते हैं स्कूल
आज
घूम रहे हैं लेकर तिरंगा
लगा रहे हैं नारे
भारत माता की जय

भारत माता
उनकी अपनी माता सी ही है
जो नहीं पिला पाती है
अपनी छाती का दूध
क्योंकि वह बनता ही नहीं
मुझे वे कोरबा के आदिवासियों से लगते हैं तब
जिनकी जमीन पर बनता है
विश्व का अत्याधुनिक विद्युत् उत्पादन संयत्र
करके उन्हें बेदखल
अपनी ही मिटटी से , माँ से

मेरे गाँव के बच्चे का तिरंगा
बना है रद्दी अखबार पर
जिसपर छपा है
देश के बड़े सुपरस्टार का विज्ञापन
जो अपील कर रहा है
कुपोषण को भागने के लिए
विटामिन, प्रोटीन युक्त खाना खिलाने के लिए
सोचता हूँ कई बार कि
क्या सुपरस्टार को मालूम है
कैसे पकाई जाती है खाली हांडी और भरा जाता है पेट
जीने के लिए, पोषण के लिए नहीं
और कुपोषितों तक नहीं है पहुच
अखबारों की

हाँ ! मेरे गाँव के बच्चों का तिरंगा
बना है रद्दी अखबार से
ऊपर केसरिया की जगह
लाल रंग है
जो उसने चुरा लिया है
माँ के आलता से
उसे मालूम नहीं कि
केसरिया और लाल रंग में
क्या है फर्क
फिर भी रंग दिया है
अखबार को आधे लाल रंग से
और स्याही से रंग दिया है
आधे अखबार को
हरियाली की जगह

मेरे गाँव के बच्चे को
नहीं मालूम कि
हरियाली कम हो रही है देश में , गाँव में
और कार्पोरेटों का सबसे प्रिय रंग है नीला
नीला क्योंकि आसमान है नीला
नीला क्योंकि समंदर है नीला
कार्पोरेट को चाहिए
आसमान और समंदर सा नीला विस्तार
किसी भी कीमत पर
ऐसा कहा जाता है
उनके कार्पोरेट आइडेनटिटी मैनुअल और विज़न स्टेटमेंट में

और हाँ
बीच में श्वेत रंग की जगह
अखबार के छोटे छोटे अक्षर झांक रहे हैं
अब बच्चे को क्या मालूम कि
अखबार के छपे के कई निहितार्थ होते हैं
और श्वेत शांति का नहीं रहा प्रतीक

मेरे गाँव के बच्चे
आज फहरा रहे हैं तिरंगा
जिसमे  नहीं है
केसरिया, हरियाली या सफेदी ही

सोमवार, 16 जनवरी 2017

विमुद्रीकरण



                         

रुपया 
जो कागज़ हो गया 
कागज़ हो गया 
जीवन 
गीला हो रहा है 
जो गीले हो रहे हैं 
नयन।  

सुना है 
रुपया होता है 
कुछ सफ़ेद 
और कुछ काला 
काला रुपया होता है 
गोरे चमचमाते लोगों के पास 
फैक्ट्री की चिमनियों 
बड़ी बड़ी गाड़ियों में 
और सफ़ेद रुपया 
बंधा होता है 
मैली पसीने से गंधाती 
धोती, साडी की अँटियों में।  

उम्मीद और जोश 
भरा है आँखों में 
जब सारा काला रुपया 
सफ़ेद होकर रहेगा 
मैली पसीने से गंधाती 
धोती और साड़ियों की अँटियों में 
अन्यथा विमुद्रीकरण भी 
सरकार की तमाम अन्य नीतियों की भांति 
बनकर रह जायेगा 
एक छद्म।