शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

प्रतीक्षा



लौट जाता है सूरज
समंदर के आँचल में 
चला आता है चाँद
अपने घर से

लेकिन ख़त्म नहीं होती 
आसमान की प्रतीक्षा 


लहरे
लौट आती हैं
छू कर तटों को
लेकिन साथ नहीं आता तट
लहरों के साथ
ख़त्म नहीं होती
लहरों की प्रतीक्षा 

सपने 
आते है रोज
झिलमिलाते  
गुलमोहर सजाये 
चले जाते हैं 
आँख खुलने के साथ ही 
फिर भी अच्छा लगता है 
सपनों की स्वप्निल प्रतीक्षा  

रोज सुबह से 
कोई देखता है  रास्ता
डाकिये का 
मालूम भी  है कि
नहीं आयेगी कोई चिट्ठी 
उसके नाम तुम्हारे गाँव से 
फिर भी उसे  पसंद है 
सांझ ढले तक करना 
डाकिये  की प्रतीक्षा 

पलकें बिछाए  
मन की  चौखट पर
खड़ा हूँ मैं 
वर्षों से
लेकिन नहीं आये
तुम्हारे आलता भरे पाँव
अनवरत है 
प्रतीक्षा मेरी भी .

27 टिप्‍पणियां:

  1. Prateeksha.......... yahi to hai jindagi ka doosra nam har kisi ko rahti hai koi na koi prateeksha......... Behatreen rachna...

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  2. आदरणीय अरुण चन्द्र रॉय जी
    नमस्कार !
    लाजबाब क्षणिकाएं बहुत ही सटीक और उपयुक्त अच्छा लगा.......शुक्रिया

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  3. प्रतीक्षा को पूरी सच्चाई से अभिव्यक्त किया है एक से बढकर एक... सुन्दर क्षणिकाएं

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  4. पलकें बिछाए
    मन की चौखट पर
    खड़ा हूँ मैं
    वर्षों से
    लेकिन नहीं आये
    तुम्हारे आलता भरे पाँव
    अनवरत है
    प्रतीक्षा मेरी भी .

    सभी क्षणिकाएं बहुत भावपूर्ण हैं .....लकिन प्रतीक्षा का जबाब नहीं ...शुक्रिया आपका

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  5. saari kshanikaayen bahut bahut badhiyaan hain par doosri wali sabse acchi lagi.... aur teesari wali to apne aap hi acchi ho gayi hai ... :P
    intezar ke kai rang dikhayen aapne.... pahli wali samjh nahi aayi ....aasmaan kiskee prateeksha kar raha hai ?

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  6. सारी क्षणिकाए बेहतरीन ...अंतिम वाली ने दिल में कसक छोड़ दी

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  7. भावभरी सरस सुन्दर क्षणिकाएं....सभी की सभी..

    प्रतीक्षा के कष्ट में भी सुख है,क्योंकि यह जीने का आस जो देती हैं..

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  8. लाजबाब क्षणिकाएं!!सरस,भावपूर्ण और सार्थक!!

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  9. चाँद और सूरज ने तो बड़ा ख़्याल रखा है आसमाँ का, फिर भला वो किसकी प्रतीक्षा करता है??
    बहरहाल! सारी प्रतीक्षाएँ नाज़ुक हैं और लगता है छूते ही बिखर जाएँगे सारे कोमल भाव! इनपर एक सूचना लगा दें "काँच से भी नाज़ुक, हिफ़ाज़त से हाथ लगाएँ"

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  10. इसी प्रतीक्षा में सारी ज़िंदगी बीत जाती है ..सुन्दर क्षणिकाएं

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  11. Aah! Dakiye kee prateeksha bhee kya cheez hua kartee thee!
    Sabhi rachnayen ekse badhke ek hain!
    Gantantr diwas kee dheron badhayee!

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  12. प्रथीक्षा बलवती हो जाये तो आना ही पड़ता है।

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  13. प्रतीक्षा के विभिन्न बिम्ब अच्छे लगे।

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  14. प्रतीक्षा! बड़ी चीज़ है..
    एक अजब सी सिहरन और अशांति पैदा कर देती है मन में..

    खूबसूरत पंक्तियाँ..
    आभार

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  15. ज़िन्दगी तेरे इंतज़ार में उम्र बीत गयी ..... सब क्षणिकाएं बहुत खूबसूरत लिखीं हैं ...

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  16. आज सारी क्षणिकाएँ दार्शनिक हो गईं हैं ...डाकिये वाली खूब कही ...न बताये कोई उसको कि तेरे नाम कोई चिट्ठी कभी नहीं आने वाली ...कम से कम जीने की वजह तो बरकरार रहे ...

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  17. आपकी प्रतीक्षा लाजवाब है और मेरे पास उसके लिये शब्द नही है सिर्फ़ इतना ही कह सकती हूँ


    एक चाह
    एक आस
    आज भी
    तुम्हारी प्रतीक्षा मे
    देहरी पर बैठी है
    देखना
    जब तुम आओगी
    मेरे मन की देहरी पर
    वहाँ सिर्फ़ और सिर्फ़
    तुम्हारा ही अक्स होगा
    मै तो कब का
    तुममे समाहित
    हो चुका हूँ

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  18. प्रतीक्षा का भी अलग मज़ा है.किसी का इंतज़ार करो और वो आने में देर लगाये उस दौरान की तड़प भी एक सुख देती है बशर्ते की इंतज़ार कराने वाला कोई खास हो..
    किसी का एक प्यारा-सा शेर देखिये:-

    वादा किया था फिर भी न आये मज़ार पर.
    हमने तो जान दे दी इसी ऐतबार पर.

    वैसे आपको भी टिप्पणी के लिए थोड़ा इंतज़ार करना पड़ा. sorry.
    आपकी कविता प्यारी लगी.

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  19. प्रतीक्षा...जिंदगी एक प्रतीक्षा ही तो है..हरेक प्रस्तुति लाज़वाब..बहुत मर्मस्पर्शी

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  20. बिलकुल अलग-अलग परिप्रेक्ष्य में नायाब ढंग से 'प्रतीक्षा' की कसक को व्यक्त किया है.
    सुन्दर क्षणिकाएं

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  21. सपने
    आते है रोज
    झिलमिलाते
    गुलमोहर सजाये
    चले जाते हैं
    आँख खुलने के साथ ही
    फिर भी अच्छा लगता है
    सपनों की स्वप्निल प्रतीक्षा

    सपनों की स्वप्निल प्रतीक्षा ... कमाल की है हर पंक्ति ... हर रचना ...

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