मंगलवार, 14 जून 2022

उसे सुनना जो नहीं कहा गया है

 जो नहीं कहा गया है

उसे सुनने के लिए

 ईश्वर ने नहीं बनाए कोई कान

सुना जाता है उसे तो

हृदय के स्पंदनों से 


जो कहा नहीं गया 

वह तो संगीत है

जैसे बिना कहे बहने वाली पहाड़ी नदी का संगीत

इस संगीत को कब सुना है कान वालों ने 

इसे तो सुनती है तलछटी में रहने वाली चंचल मछलियां

अपनी सांसों के जरिए। 


वह जो नहीं कहा है आपने 

उसे तो सुना जा सकता है 

फूलों की पंखुड़ियों को छू कर

गेंहू की बालियों को अपने बालों में खोंस कर  

आसमान के बादलों को 

अपनी बाहों में भरने जैसा महसूस कर

और इनके लिए तो चाहिए

बस कोमल सा हृदय


कान वाले कहां सुन पाएं है

अनकहा !

7 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ जून २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. जो नहीं कहा गया उसके लिए मन के कान चाहिए ।

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  3. बिलकुल सही कहा आपने सर

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  4. अनकहे को सुनने समझने वाले कहाँ मिलते हैं . बहुत ही हृदयस्पर्शी कविता अरुण जी .

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