tag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post1036047769320749689..comments2024-03-26T07:35:57.615-04:00Comments on सरोकार: दो रोटियों के सिंकने के बीचअरुण चन्द्र रॉयhttp://www.blogger.com/profile/01508172003645967041noreply@blogger.comBlogger27125tag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-72025460229318900372010-10-11T11:07:56.373-04:002010-10-11T11:07:56.373-04:00कविता तो बेशक अच्छी है पर रसोई में भी पहुँच गए.......कविता तो बेशक अच्छी है पर रसोई में भी पहुँच गए.... अरे कहीं तो उसे भी चैन से जीने दो कहीं तो पीछा छोड़ो. हा ... हा ...रचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-20999407400737731552010-10-07T06:45:28.046-04:002010-10-07T06:45:28.046-04:00यदि शिल्प पक्ष को थोड़ी सहजता से लिया जाये तो रोटी...यदि शिल्प पक्ष को थोड़ी सहजता से लिया जाये तो रोटी के बिम्ब की सहायता से आपने बहुत सारी मानवीय संवेदनाओं को उकेरने का लाजवाब एवं सराहनीय प्रयास किया है. काव्य-व्यस्था थोड़ी कमजोर है,मगर सशक्त भाव पक्ष ने उसकी भरसक भरपाई की है.बधाई.Rajivhttps://www.blogger.com/profile/05867052446850053694noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-37414296597435685282010-10-07T06:41:20.070-04:002010-10-07T06:41:20.070-04:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.Rajivhttps://www.blogger.com/profile/05867052446850053694noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-48006160969194042942010-10-07T05:59:34.161-04:002010-10-07T05:59:34.161-04:00बनाते हुए रोटियाँ
तुम ,
दो रोटियों के बीच
देखती ह...बनाते हुए रोटियाँ<br />तुम ,<br />दो रोटियों के बीच <br />देखती हो स्वप्न<br /><br /><br />जब तक<br />बेल रही होती हो<br />रोटियाँ<br />तुम्हारे भीतर<br />बह रही होती है<br />नदी ए़क<br />नदी में होती है<br />मछलिया, जिनकी आँखों में<br />होती है वही चमक<br />जो रहती हैं<br />तुम्हारी आँखों में<br />देख कर मुझे<br />laga khud ko dekh rahi hunरश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-22042508445348293442010-10-06T23:26:16.244-04:002010-10-06T23:26:16.244-04:00बहुत अच्छी प्रस्तुति।बहुत अच्छी प्रस्तुति।हास्यफुहारhttps://www.blogger.com/profile/14559166253764445534noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-50143006617618563432010-10-06T21:40:57.336-04:002010-10-06T21:40:57.336-04:00बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्र...<b>बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।</b><br /><a href="http://raj-bhasha-hindi.blogspot.com/2010/10/blog-post_07.html" rel="nofollow">मध्यकालीन भारत-धार्मिक सहनशीलता का काल (भाग-२), राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें</a>राजभाषा हिंदीhttps://www.blogger.com/profile/17968288638263284368noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-31803239214291333672010-10-06T21:15:11.598-04:002010-10-06T21:15:11.598-04:00बड़ा सूक्ष्म निरीक्षण है भाई ..गोया वैज्ञानिक न ह...बड़ा सूक्ष्म निरीक्षण है भाई ..गोया वैज्ञानिक न हुए !:)Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-43211436796516742132010-10-06T14:30:37.264-04:002010-10-06T14:30:37.264-04:00bahut ache se chitrit ki gayee ho jaise apki rachn...bahut ache se chitrit ki gayee ho jaise apki rachnagyaneshwaari singhhttps://www.blogger.com/profile/16752930608738766658noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-7635852309732227972010-10-06T14:22:08.523-04:002010-10-06T14:22:08.523-04:00बहुत अछे भाव के साथ बिम्बों का सधा प्रयोग।बहुत अछे भाव के साथ बिम्बों का सधा प्रयोग।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-30397026814025982242010-10-06T12:55:09.518-04:002010-10-06T12:55:09.518-04:00मेरा मानना है किसी रचना को पढ़कर कोई और रचना याद आ...मेरा मानना है किसी रचना को पढ़कर कोई और रचना याद आ जाए यह रचना के लिए अच्छी बात नहीं है। अर्चना गंगवार को आपकी कपड़े सुखाती औरतें याद आ गईं। यह कविता उस कविता की पासंग भी नहीं है। आपकी वह कविता पढ़कर ही मैं आपका फालोअर बना था। <br /><br />यहां जो कुछ आपने कहा है कि वह केवल दो रोटियों के बीच के समय में ही न घटता है, वह लगातार घटता रहता है। कविता में रोटियां का समय पैबंद की तरह लगता है। भाव स्पष्ट नहीं हैं और कविता में विचारों का क्रम बहुत बिखरा सा लगता है। सच कहूं तो निराश हूं इस कविता से।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-81346315317884616092010-10-06T12:24:34.096-04:002010-10-06T12:24:34.096-04:00दो रोटियों के बीच
तुम ढूंढ रही होती हो
स्वयं को
कभ...दो रोटियों के बीच<br />तुम ढूंढ रही होती हो<br />स्वयं को<br />कभी मुस्कुराती सी<br />कभी खामोश<br />न कितनी ही रोटियों के बीच जीवन यूं ही गुजर जाता है। बहुत सुंदरवीना श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/09586067958061417939noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-2239818594709612042010-10-06T12:11:28.185-04:002010-10-06T12:11:28.185-04:00विषय पूर्णतया नया है कविता के लिये।विषय पूर्णतया नया है कविता के लिये।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-47847881945941575292010-10-06T10:55:43.361-04:002010-10-06T10:55:43.361-04:00अरूण जी.. आज तो आपने सत्यजीत रे के एक टीवी नाटक अभ...अरूण जी.. आज तो आपने सत्यजीत रे के एक टीवी नाटक अभिनेत्री की याद दिला दी.. एक आधे घण्टे में एक गृहलक्ष्मी किन किन परिस्थितियों में कितने अभिनय करती है उसे स्मिता पाटील ने बख़ूबी निभाया था... आज आपकी कविता में वही अभिनेत्री नज़र आई... फ़र्क सिर्फ इतना है कि यहाँ वक़्फ़ा दो रोटियोंके बीच का है...अति सुंदर!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-22746027137378275542010-10-06T10:49:51.850-04:002010-10-06T10:49:51.850-04:00दो रोटियों के बीच..कितना कुछ गुजर जाता है..बहुत उम...दो रोटियों के बीच..कितना कुछ गुजर जाता है..बहुत उम्दा भाव!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-22251846077178992922010-10-06T10:45:20.738-04:002010-10-06T10:45:20.738-04:00औरत के मनोभावों का बहुत ही मार्मिक और संवेदनशील वर...औरत के मनोभावों का बहुत ही मार्मिक और संवेदनशील वर्णन..........<br />बहुत ही अच्छी रचना....... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-84269598128728666712010-10-06T10:25:36.850-04:002010-10-06T10:25:36.850-04:00बहुत ही सुन्दर कविता.भावों का सुन्दर मिश्रण हैबहुत ही सुन्दर कविता.भावों का सुन्दर मिश्रण हैउपेन्द्र नाथhttps://www.blogger.com/profile/07603216151835286501noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-2135197219869323862010-10-06T08:07:07.673-04:002010-10-06T08:07:07.673-04:00कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाईकमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाईसंजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-90762460088511040952010-10-06T06:06:43.154-04:002010-10-06T06:06:43.154-04:00bahut badhiya...bahut badhiya...Pankaj Trivedihttps://www.blogger.com/profile/17669667206713826191noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-41665060587123931822010-10-06T05:32:33.304-04:002010-10-06T05:32:33.304-04:00दो रोटियों के बीच
तुम ढूंढ रही होती हो
स्वयं को
कभ...दो रोटियों के बीच<br />तुम ढूंढ रही होती हो<br />स्वयं को<br />कभी मुस्कुराती सी<br />कभी खामोश<br />--<br />आपने<br />रोटियों के माध्यम से<br />मन की व्यथा बहुत चतुराई से <br />प्रकट की है!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-77329634963930499712010-10-06T05:25:07.280-04:002010-10-06T05:25:07.280-04:00अर्चना गंगवार जी ने ईमेल से कहा:
arun ji
aapki...अर्चना गंगवार जी ने ईमेल से कहा: <br /><br /><br />arun ji <br />aapki aaj ki rachna tu sahej ke rakhne ke layak hai......<br />aapne kaise para ye sab .....kyoki man ke bheeter itni utal puthal ho gai ki laga site per na jaker seedha aapko hi iski pratikriya do.......sach mein <br />अपने कई चेहरे से<br />परेशान तुम भी<br />सिंकती सी लगती हो<br />तवे पर<br />भीतर और बाहर<br />bahut bahut khooob roti ke pakne se pahele na jane man ki gaherai mein kitni baate sikti hai<br />दो रोटियों के बीच<br />तुम ढूंढ रही होती हो<br />स्वयं को<br />कभी मुस्कुराती सी<br />कभी खामोश<br />isko parne ke baad aapki ek rachna yaad aa gai - कपडे सुखाती औरतें ....aisa hi kuch tha....अरुण चन्द्र रॉयhttps://www.blogger.com/profile/01508172003645967041noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-36242445900808578312010-10-06T04:15:16.333-04:002010-10-06T04:15:16.333-04:00मेरी टिपण्णी में अकविता को "कविता " पढ़ा...मेरी टिपण्णी में अकविता को "कविता " पढ़ा जाये .माफ कीजियेगा टाइपिंग मिस्टेक .shikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-58729722537175097372010-10-06T04:09:03.933-04:002010-10-06T04:09:03.933-04:00uttam ati utam per kya ase hee sochte hai aaj ke n...uttam ati utam per kya ase hee sochte hai aaj ke nari?Anuhttps://www.blogger.com/profile/05561589653610114026noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-2622578949373657292010-10-06T04:00:26.355-04:002010-10-06T04:00:26.355-04:00इसीलिये तो कहते हैं जहँ न पहुँचे रवि वहँ पहुँचे कव...इसीलिये तो कहते हैं जहँ न पहुँचे रवि वहँ पहुँचे कवि।<br />दो रोटियों के सिकने के बीच का अंतराल और उसमें समाये सोच के दायरे और उनमें रिश्ते, कवि की नज़र से देखें तब समझ आती है इस जग की विशालता। <br />बहुत बढि़या कविता।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-60063272268005681152010-10-06T03:38:50.868-04:002010-10-06T03:38:50.868-04:00अभी अभी वंदना गुप्ता की एक अकविता २ रोटियों पर ही ...अभी अभी वंदना गुप्ता की एक अकविता २ रोटियों पर ही पढकर आ रही हूँ ..पर वो ख्वाबों में खो गई थीं :) और आपने नारी मन के सारे भाव २ रोटियों में समेट दिए.<br />बेहतरीन रचना.shikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-50394120162416260732010-10-06T03:19:33.435-04:002010-10-06T03:19:33.435-04:00दो रोटियों के सीकने के बीच स्त्री के मनोभावों को ज...दो रोटियों के सीकने के बीच स्त्री के मनोभावों को जाहिर करने की कोशिश ...!वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.com