tag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post3878454586061382762..comments2024-03-26T07:35:57.615-04:00Comments on सरोकार: लेबर चौक खोड़ाअरुण चन्द्र रॉयhttp://www.blogger.com/profile/01508172003645967041noreply@blogger.comBlogger32125tag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-75687020709490142142011-05-31T22:10:37.266-04:002011-05-31T22:10:37.266-04:00संज्ञा शून्य होती हैं उनकी कीमत
किसी भी सूचकांक के...संज्ञा शून्य होती हैं उनकी कीमत<br />किसी भी सूचकांक के बढ़ने या गिरने से<br />नहीं बढ़ता है उनका भाव <br />ऐसे में नो मैन्स लैंड में खड़ा <br />यह बाज़ार लगता है <br />किसी रेड लाईट एरिया की तरह ही <br /><br />betareen, adbhut kavya , badhaiAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/18094849037409298228noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-46340733236593679002011-05-31T14:04:53.324-04:002011-05-31T14:04:53.324-04:00ऐसे में नो मैन्स लैंड में खड़ा
यह बाज़ार लगता है
क...ऐसे में नो मैन्स लैंड में खड़ा <br />यह बाज़ार लगता है <br />किसी रेड लाईट एरिया की तरह ही <br /><br />अद्भुत पकड़ की कविता ... चलचित्र की तरहM VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-39482191474942210282011-05-31T12:57:47.603-04:002011-05-31T12:57:47.603-04:00Bahut samvedansheel ... sach hai lebar chounk har ...Bahut samvedansheel ... sach hai lebar chounk har jagah hota hai ... lebar bhi hoti hai ... par log unhe yaad nahi rakhte ....दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-29667256548081541412011-05-31T12:49:56.484-04:002011-05-31T12:49:56.484-04:00कविता में प्रभावित करती हैं आपकी भावनाएं . आभार.कविता में प्रभावित करती हैं आपकी भावनाएं . आभार.Swarajya karunhttps://www.blogger.com/profile/03476570544953277105noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-7865081436633048452011-05-31T10:52:37.293-04:002011-05-31T10:52:37.293-04:00इनके नाम से कितनी क्रांतियां हुईं... कितने वाद बने...इनके नाम से कितनी क्रांतियां हुईं... कितने वाद बने.. कितने झंडे खड़े हुए..लेकिन पसीना रंगहीन होता है,इसलिए इनके लिए झंडे का कोइ रंग नहीं.. सही तुलना की है आपने..मन विचलित हो गया!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-1852010519654998852011-05-31T07:43:21.561-04:002011-05-31T07:43:21.561-04:00मजदूर भारत में मच्छर की तरह मारे जाते हैं.. लेबर य...मजदूर भारत में मच्छर की तरह मारे जाते हैं.. लेबर यूनियन में भी टॉप के लीडर पैसा खाते हैं और बेचारे मजदूर मारे जाते हैं..<br />और अंतिम पंक्तियाँ पूरे पोस्ट को सार्थक कर रही हैं और अपना सन्देश सब तक पहुंचा रही है... पर उपाय क्या है? इसपर भी विचार किया जाना चाहिए...<br /><br /><a href="http://bitspratik.blogspot.com/2011/05/blog-post.html" rel="nofollow">सुख-दुःख के साथी</a> पर आपके विचारों का इंतज़ार है..<br />आभारPratik Maheshwarihttps://www.blogger.com/profile/04115463364309124608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-23742971777156075842011-05-31T04:35:59.019-04:002011-05-31T04:35:59.019-04:00और सुना है कि
देश के हर शहर में
होता है लेबर चौक.....और सुना है कि<br />देश के हर शहर में<br />होता है लेबर चौक.......dayneey sathti ka karun varnan.mridula pradhanhttps://www.blogger.com/profile/10665142276774311821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-5392560967510733472011-05-31T04:27:58.081-04:002011-05-31T04:27:58.081-04:00कुछ कुशल
कुछ अकुशल
सब मेहनतकश
आँखों में भर कर आकाश...कुछ कुशल<br />कुछ अकुशल<br />सब मेहनतकश<br />आँखों में भर कर आकाश<br />पीठ पर कुछ अदृश्य जिम्मेदारियां<br />और ढेर सारे क़र्ज़ ,<br />लगता है<br />दुनिया की सबसे तेज़ी से<br />बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था<br />खड़ी है खोखली नींव पर<br />जहाँ मेहनत खड़ी है<br />बिकने के लिए<br /><br />yun to puri hi rachna prabhvshali hai!<br />lekin mkujhe ye panktiyan kuch jyada hi janchi!<br />ek shaand dar rchna ke liye aur is nikammi vyavastha par ek karara prahaarkarne ke liye sadhuvaad!Khare Ahttps://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-27340109285851785772011-05-30T20:20:34.948-04:002011-05-30T20:20:34.948-04:00इस बाजार की मांग और चरित्र साकार.इस बाजार की मांग और चरित्र साकार.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-83841973832501043032011-05-30T13:45:48.472-04:002011-05-30T13:45:48.472-04:00बहुत सुन्दर व संवेदनशील रचना,शुक्रिया ..
- विवेक ...बहुत सुन्दर व संवेदनशील रचना,शुक्रिया ..<br /><br />-<a href="http://vivj2000.blogspot.com/" rel="nofollow"><b> विवेक जैन </b><i>vivj2000.blogspot.com</i></a>Vivek Jainhttps://www.blogger.com/profile/06451362299284545765noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-58136770258291805632011-05-30T11:54:18.483-04:002011-05-30T11:54:18.483-04:00अरुण जी जहाँ सब की सोच आ कर रूकती है
वहां से आपकी...अरुण जी जहाँ सब की सोच आ कर रूकती है <br />वहां से आपकी सोच और लिखनी की शुरुआत होती है <br />बहुत सच लिखा है अपने ...बहुत खूबAnju (Anu) Chaudharyhttps://www.blogger.com/profile/01082866815160186295noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-14206303865616800462011-05-30T11:18:52.918-04:002011-05-30T11:18:52.918-04:00चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति...चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 31 - 05 - 2011<br />को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..<br /><br /><a href="http://charchamanch.blogspot.com/" rel="nofollow">साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच <br /></a>संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-54944829124316252222011-05-30T10:59:06.966-04:002011-05-30T10:59:06.966-04:00बेहद संवेदनशील आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमि...बेहद संवेदनशील आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !...........अरुण जीसंजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-59749387633837740612011-05-30T07:59:50.769-04:002011-05-30T07:59:50.769-04:00हाँ ये बाजार हर जगह लगता है और इसी तरह से उनकी मान...हाँ ये बाजार हर जगह लगता है और इसी तरह से उनकी मानसिकता को पढ़ने की सामर्थ्य किसी में नहीं है. जिनमें देखने की सामर्थ्य है, जो उनके दर्द को समझ सकते हैं वह उनके लिए कुछ कर नहीं सकते हैं. उनके दर्द को बड़ी शिद्दत से उकेरा है.रेखा श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-17076406926156104842011-05-30T06:39:10.852-04:002011-05-30T06:39:10.852-04:00खुद पे शर्मिन्दा भी होते है हमखुद पे शर्मिन्दा भी होते है हमsonalhttps://www.blogger.com/profile/03825288197884855464noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-77526406676025659772011-05-30T05:32:01.149-04:002011-05-30T05:32:01.149-04:00अरुण जी,
आपके ब्लॉग पर हमेशा ही कुछ नया मिलता है....अरुण जी,<br /><br />आपके ब्लॉग पर हमेशा ही कुछ नया मिलता है.....बहुत मार्मिकता के साथ आपने उचित प्रश्न उठाये हैं.....आपकी नवीनता के लिए आपको सलाम |Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-16893386807115174732011-05-30T04:11:35.798-04:002011-05-30T04:11:35.798-04:00सब मेहनतकश
आँखों में भर कर आकाश
पीठ पर कुछ अदृश्य ...सब मेहनतकश<br />आँखों में भर कर आकाश<br />पीठ पर कुछ अदृश्य जिम्मेदारियां<br /><br />हमेशा से आपकी नज़र उन चीज़ों पर ठहरती है..जिसे लोग अनदेखा कर निकल जाते हैं...<br />बहुत ही संवेदनशील रचनाrashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-377161246472963232011-05-30T03:01:24.007-04:002011-05-30T03:01:24.007-04:00रविवार, २९ मई २०११
लेबर चौक खोड़ा
मुझे नहीं पता कि...रविवार, २९ मई २०११<br />लेबर चौक खोड़ा<br />मुझे नहीं पता कि<br />देश का सबसे बड़ा<br />लेबर बाज़ार कहाँ है<br />लेकिन जब देखता हूं<br />दिल्ली, नोएडा और गाज़ियाबाद के बीच<br />नो मैन्स लैंड खोड़ा के चौक पर<br />हर सुबह<br />हजारों दिहाड़ी मजदूर<br />कुछ कुशल<br />कुछ अकुशल<br />सब मेहनतकश<br />आँखों में भर कर आकाश<br />पीठ पर कुछ अदृश्य जिम्मेदारियां<br />और ढेर सारे क़र्ज़ ,<br />लगता है<br />दुनिया की सबसे तेज़ी से<br />बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था<br />खड़ी है खोखली नींव पर<br />जहाँ मेहनत खड़ी है<br />बिकने के लिए<br /><br />किसी की कूची में<br />भरा है रंग<br />तो किसी के फावड़े में है<br />धरती को चीरने का दम<br />किसी की भुजाओं में है<br />बल उठाने को<br />कई कई क्विंटल<br />जब देखता हूँ<br />हर सुबह कतार में खड़े<br />बीडी के कश के साथ<br />काटते प्रतीक्षा के बेचैन पल<br />याद आते हैं<br />सरकार के नारे<br />गूंजने लगता है<br />घोषणाओं का झुनझुना<br />किसी नीति में<br />नहीं देखा इन्हें शामिल<br />जिनके लिए<br />खड़ा नहीं होता कोई <br />लेकर किसी भी रंग का झंडा <br />आधा दिन होते होते <br />आधे हाथ रह जाते हैं<br />खाली के खाली <br />नहीं जलता उनके घरों में चूल्हा उस शाम <br />अगले दिन <br />किसी भी कीमत पर बिकती है <br />खाली हाथें <br />संज्ञा शून्य होती हैं उनकी कीमत<br />किसी भी सूचकांक के बढ़ने या गिरने से<br />नहीं बढ़ता है उनका भाव <br />ऐसे में नो मैन्स लैंड में खड़ा <br />यह बाज़ार लगता है <br />किसी रेड लाईट एरिया की तरह ही<br /><br /><br />सही कहा अरुण जी…………जब भी दोपहर मे देखा है तो यही दर्द उभर कर आया है मगर हम उसे शब्द नही दे पाते और आपने उसे शब्दों मे बाँध दिया और ये सिर्फ़ आप ही कर सकते हैं क्योंकि आप वहाँ देखते है जहाँ कोई देखना पसन्द नही करता।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-9861431161066756462011-05-30T02:50:51.475-04:002011-05-30T02:50:51.475-04:00बहुत सुन्दर रचना!
बिम्बों के माध्यम से बहुत कुछ कह...बहुत सुन्दर रचना!<br />बिम्बों के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया है आपने!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-20147476718124166202011-05-30T01:17:06.273-04:002011-05-30T01:17:06.273-04:00badhiya rachana jo aaj ki sthiti ke bare men bahut...badhiya rachana jo aaj ki sthiti ke bare men bahut kuch sandesh de rahi hai ...समयचक्रhttps://www.blogger.com/profile/05186719974225650425noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-89531407031721824712011-05-30T01:11:29.596-04:002011-05-30T01:11:29.596-04:00yathart ko batatihui saarthak aur samvedansheel ra...yathart ko batatihui saarthak aur samvedansheel rachanaa.badhaai aapko.<br /><br /><br /><br />please visit my blog and feel free a comment.thanks.prerna argalhttps://www.blogger.com/profile/11905363361845183539noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-40704453395930911772011-05-29T23:56:12.995-04:002011-05-29T23:56:12.995-04:00shayad hamare ye mehnatkash bhai kabhi bhavishy ki...shayad hamare ye mehnatkash bhai kabhi bhavishy ki nahi sochte bas aaj kaise roti ka jugad hoga itna hi soch pate hain .bahut sarthak rachna .aabharShikha Kaushikhttps://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-28096615738462119312011-05-29T23:15:53.342-04:002011-05-29T23:15:53.342-04:00kitna kuch samet laate hain aapkitna kuch samet laate hain aapरश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-88896996534184207482011-05-29T22:42:55.409-04:002011-05-29T22:42:55.409-04:00विकास के नारों और आंकड़ों के बीच,आम आदमी की असलियत...विकास के नारों और आंकड़ों के बीच,आम आदमी की असलियत।शिक्षामित्रhttps://www.blogger.com/profile/15212660335550760085noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-44348120689302962062011-05-29T22:23:57.840-04:002011-05-29T22:23:57.840-04:00आर्थिक विषमता भारत में समृद्धि की नई पहचान है। इस ...आर्थिक विषमता भारत में समृद्धि की नई पहचान है। इस कविता में आर्थिक सम्पन्नता और विपन्नता से उत्पन्न वर्गों के आंतरिक संसार के द्वंद्व रेखांकित होते हैं। लैंड खोड़ा में खड़े जो हैं, इस कविता में उन वर्गों के अस्तित्व रक्षा की बेचैनी और असहाय चिंता के विवरण स्पष्ट हैं।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.com