tag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post6847943420060002411..comments2024-02-28T22:00:04.966-05:00Comments on सरोकार: झारखण्ड एक्सप्रेस 3 अरुण चन्द्र रॉयhttp://www.blogger.com/profile/01508172003645967041noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-17596783780751542572017-04-25T06:44:17.598-04:002017-04-25T06:44:17.598-04:00बहुत कुछ खो जाता है यूँ ही आते जाते। ट्रेन अपनी जग...बहुत कुछ खो जाता है यूँ ही आते जाते। ट्रेन अपनी जगह पटरियों पर इधर उधर आती जाती रह जाती हैं । सुन्दर।सुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-57540688154622564932017-04-25T03:39:33.618-04:002017-04-25T03:39:33.618-04:00कतरा करता पिघल के ढह जाते हैं ये लोग ... इनका निशा...कतरा करता पिघल के ढह जाते हैं ये लोग ... इनका निशाँ भी नहीं मिलता काल खंड में ... बहुत ही गहरी रचना हमेशा की तरह अरुण जी ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.com