tag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post701790065444287576..comments2024-03-26T07:35:57.615-04:00Comments on सरोकार: घिसी हुई पैंटअरुण चन्द्र रॉयhttp://www.blogger.com/profile/01508172003645967041noreply@blogger.comBlogger22125tag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-11062687085165255022010-09-01T07:49:26.688-04:002010-09-01T07:49:26.688-04:00घिसी हुई पैंट
विम्ब है
संघर्ष का
जिजीविषा का
सद्यः...घिसी हुई पैंट<br />विम्ब है<br />संघर्ष का<br />जिजीविषा का<br />सद्यः .......<br />एक अलग रंग लिए हुए है ये कवितारचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-51093581559617590412010-09-01T07:35:10.885-04:002010-09-01T07:35:10.885-04:00संवेदना के कई स्तरों का संस्पर्श करती यह कविता ....संवेदना के कई स्तरों का संस्पर्श करती यह कविता ..संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-74163603659706852502010-09-01T04:39:17.038-04:002010-09-01T04:39:17.038-04:00घिसी हुई पैंट
विम्ब है
संघर्ष का
जिजीविषा का
.......घिसी हुई पैंट<br />विम्ब है<br />संघर्ष का<br />जिजीविषा का<br /> .....kya baat hai<br /><br />Arun sir......aap ki kavitayen sach me ek dum jindagi se judi hoti hai, aur mujhe bahut achchhi lagi.........:)मुकेश कुमार सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/14131032296544030044noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-38251545445010189632010-08-31T22:03:58.272-04:002010-08-31T22:03:58.272-04:00बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राष्ट्रीय एकता और विकास क...बहुत अच्छी प्रस्तुति। <br /><br /><a rel="nofollow"> राष्ट्रीय एकता और विकास का आधार हिंदी ही हो सकती है। </a>राजभाषा हिंदीhttps://www.blogger.com/profile/17968288638263284368noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-48760697360248476602010-08-31T19:25:30.934-04:002010-08-31T19:25:30.934-04:00घिसी हुई पैंट
विम्ब है
संघर्ष का
जिजीविषा का
=====...घिसी हुई पैंट<br />विम्ब है<br />संघर्ष का<br />जिजीविषा का<br />==========<br />जोरदार कविता !<br />बधाई हो !<br />===========<br />आप के ब्लोग की <br />अन्य कविताएं भी<br />पढ गया हूं !<br />प्रभावित करती हैं !<br />बधाई !ओम पुरोहित'कागद'https://www.blogger.com/profile/13038563076040511110noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-82109143277269748512010-08-31T12:23:28.208-04:002010-08-31T12:23:28.208-04:00उत्साहीजी ने अपनी वार्ता के बीच कविता ,बिम्ब और वि...उत्साहीजी ने अपनी वार्ता के बीच कविता ,बिम्ब और विचार को पकाने की बात की है .मेरा मानना है कि कविता कोई भात नहीं जिसे पकाने की कोई निर्धारित प्राविधि हो .<br />पता नहीं उत्साही सर्वसम्पन्नता के किस द्वीप पर रहते हैं जहाँ सबको सब कुछ अलग -अलग उपलब्ध है .घिसी हुई पैंट का वजूद इस देश के अनेक स्थानों पर मिल जायेगा .फ्रांस की एक रानी को तो भूख का भी पता नहीं था तब उसने रोटी के लिए आंदोलनरत जनता को केक खाने की राय दी थी .अपने अपने <br />अनुभव संसार का यह मसला उत्साहीजी .हर कवि अपने अनुभव से ही बिम्ब चुनता है कविता रचता है .<br />अरुणजी पूर्ण मनोयोग से लिखते रहो .लेकिन जल्दबाजी से बचो .निर्मल गुप्त https://www.blogger.com/profile/14476315180256137151noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-1789022527564893822010-08-31T11:28:11.964-04:002010-08-31T11:28:11.964-04:00kalpanaon ki udaan asim hai....aur aap hamesha hi ...kalpanaon ki udaan asim hai....aur aap hamesha hi isko charitarth karte hai..Parul kananihttps://www.blogger.com/profile/11695549705449812626noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-50541454411248058092010-08-31T10:52:58.794-04:002010-08-31T10:52:58.794-04:00@ इस पैंट की वजूद भी
इसे देख कर ठीक कर लें।@ इस पैंट की वजूद भी<br />इसे देख कर ठीक कर लें।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-27870644128114950922010-08-31T10:12:03.473-04:002010-08-31T10:12:03.473-04:00वाह, क्या सम्बन्ध स्थापित किया है।वाह, क्या सम्बन्ध स्थापित किया है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-83676363906716504582010-08-31T09:48:36.931-04:002010-08-31T09:48:36.931-04:00...साधारण सी चीज़ से असाधारण बात आप निकालते हैं ........साधारण सी चीज़ से असाधारण बात आप निकालते हैं ...<br />sangeeta ji ki baat se sahmatsonalhttps://www.blogger.com/profile/03825288197884855464noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-49202561060957084482010-08-31T09:18:24.547-04:002010-08-31T09:18:24.547-04:00लेकिन उसमे
देह ढकने का
वह भाव नहीं होता
जो होता है...लेकिन उसमे<br />देह ढकने का<br />वह भाव नहीं होता<br />जो होता है<br />घिसी हुई पैंट को<br />पहनने के बाद<br /><br />घिसी हुई पैंट<br />विम्ब है<br />संघर्ष का<br />जिजीविषा का<br />सद्यः<br /><br /><br />कविता के बाद कि टिप्पणियाँ भी पढ़ीं ...राजेश जी की आपसे हुयी चैट भी ...<br />सबका अपना अलग नजरिया होता है ...<br />मुझे आपकी कविता की उपरोक्त पंक्तियाँ कविता का सार लगीं ....अर्थशास्त्र के नियम से अलग ...<br />लेकिन शायद आपने उस नियम को उलटे रूप में लिख दिया ...क्यों कि यहाँ पैंट पहनने वाला बदल रहा है तो उसकी भूख भी बदल रही है ...जब घिसी हुई पैंट ऐसे इंसान के पास पहुंचती है जो देह को ढकने मात्र की सोचता है तो उसके लिए यह पहला ग्रास ही होता है ...<br /><br />लेकिन जो बात आप कहना चाह रहे हैं वो आपने बखूबी कहा है ..और सोचने पर भी मजबूर किया है ...साधारण सी चीज़ से असाधारण बात आप निकालते हैं ...मुझे यह रचना बहुत अच्छी लगी ..संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-83415594752436791632010-08-31T08:18:05.711-04:002010-08-31T08:18:05.711-04:00बहुत खूब ... घिसी पेंट के माध्यम से दर्शन की बात ....बहुत खूब ... घिसी पेंट के माध्यम से दर्शन की बात ... बहुत उम्दा ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-16913020589261208162010-08-31T08:01:17.120-04:002010-08-31T08:01:17.120-04:00arun: sach kahu to sir.. ye meri kavita nahi hai.....arun: sach kahu to sir.. ye meri kavita nahi hai.. rewrtie karunga phir dekhte hain<br />me: आप किस कविता की बात कर रहे हैं। जो मैंने आपको भेजी है या जो आपने लिखी है। <br />arun: jo aapne bheji hai... kabhi ksis chhoti si dukan pad.. paiband lage pant ... ghise pant... chuttar dikhte pant ko dekhiye... shayad meri kavita wahan hai....<br />me: मुझे पता है। तो लाइए न उसे अपनी कविता में। मैंने तो केवल आपको उदाहरण दिया । और अरूण भाई आजकल पैंबंद वाले पेंट कौन पहनता है। हां यह मान लिया कि सेंकड हेंड पैंट खरीदे और पहने जाते हैं। सेंकड हैंड पैट भी घिसे हुए कोई नहीं खरीदता। <br />कविता में विचार महत्वपूर्ण होता है। उसको कहने के लिए आपको बिम्ब खोजना होता है। <br /> arun: jee sir<br />me: कई बार बिम्ब पहले मिल जाता है उसे उपयोग करने के लिए आपको विचार खोजना होता है। अगर घिसी हुई पेंट का बिम्ब आपके लिए महत्वपूर्ण है तो उसके लिए विचार खोजना होगा। फिलहाल जो विचार आप उसके साथ जोड़कर प्रस्तुत कर रहे हैं वह जम नहीं रहा। उसमें भी आप एक और कौर का बिम्ब साथ ले आए। <br /> <br />arun: sir jitne saprsthta se aapne meri kavita ko mujhse kaha hai.. aap unhe hi tippni me kah dijiye naa.. kam se kam sthapit logon ko aainaa to dikhega mere bhanaराजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-63081670501794394102010-08-31T07:59:15.026-04:002010-08-31T07:59:15.026-04:00me: मुझे यह भी लग रहा है कि आप कविता लिखने में जल्...me: मुझे यह भी लग रहा है कि आप कविता लिखने में जल्द बाजी कर रहे हैं। किसी भी विचार के आने पर उसे जरा पकने दें। लिखकर छोड़ दें। फिर एक पाठक के नजरिए से देखें। ब्लाग पर इतनी जल्दी कविता लगाने की जरूरत क्यों है।<br /> arun: jee agli kavita aapko mukkamaal kavita dene ki koshish karunga sir...<br />me: यह भी सुझाव है कि पहले छोटी कविताएं लिखें। बहुत सारे विचारों को एक कविता में न लाएं। एक विचार को ही रखें। <br /> arun: ye baat bahut janchi...<br /> <br />me: आपकी इसी कविता से अगर कुछ मतलब का निकालें तो देखिए मैं ये दो कविताएं देखता हूं-<br />एक घिसी हुई जीन्स को देखकर<br />1.<br />जीन्स<br />जो घिस गयी है<br />पहनी गई है<br />कई बार<br />कई लोगों के द्वारा<br /><br />जैसे जैसे<br />बदली है टाँगे<br />बदला है<br />इस जीन्स् का वजूद भी<br />और ज्यो ज्यो घिसी है<br />अनमोल होती चली गई है<br />जीन्स पहनने वाले के लिए<br /><br />2.<br />घिसी हुई जीन्स <br />बिम्ब है<br />संघर्ष का<br />जिजीविषा काराजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-11572752344402303212010-08-31T07:57:54.616-04:002010-08-31T07:57:54.616-04:00अरुण जी की इस कविता के सन्द र्भ में यह बातचीत चैट ...अरुण जी की इस कविता के सन्द र्भ में यह बातचीत चैट बाक्स में हुई है। उनके अनुरोध पर मैं इसे ज्यों. का त्यों यहां प्रस्तुत कर रहा हूं। <br />arun: sir eak kavita post ki ha abhi abhi.. shayad iss baar aapke benchmark ke kareeb ho<br /> www.aruncroy.blogspot.com<br /> <br />arun: sir yahi padh lijiye...<br /> घिसी हुई पैंट<br /> me: अरूण भाई आपका पहला मैसेज आया था तभी पढ़ आया हूं। <br />arun: aapki tipni vastuparak hoti hai.. so jaruri hai.. baki to sab... formalty hai<br />me: अरूण भाई संदर्भ समझ नहीं आ रहा है। ऐसा कहां होता है कि एक ही पैंट को कई लोग पहनें। जो बिम्ब आपने लिया है वह तो आसपास दिखता ही नहीं है। <br /> <br />arun: sir second hand.. third hand... fourth hand... pant bhi hoti hai... samaj ke sabse neeche tabke kaa aadmi.. ghisi hui pant hi pahanta hai... ye to bahut hi common hai<br /> aisa mujhe lagta hai<br /> <br />me: नहीं अरूण भाई माफ करें यह संदर्भ तो बिलकुल नहीं उभरता है। मैं कविता को दुबारा पढ़ आया हूं। हां अगर आप इस बिम्ब को ही इस्तेमाल करना चाहते हैं तो इसे घर में बड़े भाई या किसी अन्यै के छोटे हो गए कपड़ों को छोटे भाई या बच्चे या बच्ची के संदर्भ में इस्तेमाल करके देखें। <br /> arun: lagta hai vimb pakadne me galti ho rahi hai...राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-23111364766010342902010-08-31T07:40:33.732-04:002010-08-31T07:40:33.732-04:00paint ke sahare baht kuch kah gaye,jeevan ke bahut...paint ke sahare baht kuch kah gaye,jeevan ke bahut se binduo par roshni dalti kavita.Rajivhttps://www.blogger.com/profile/05867052446850053694noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-71351264158184649602010-08-31T07:11:57.857-04:002010-08-31T07:11:57.857-04:00bahut hi sundar rachnabahut hi sundar rachnaसंजय कुमार चौरसियाhttps://www.blogger.com/profile/06844178233743353853noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-47309237259857423962010-08-31T07:04:50.625-04:002010-08-31T07:04:50.625-04:00घिसी हुई पैंट
विम्ब है
संघर्ष का
जिजीविषा का
yahi ...घिसी हुई पैंट<br />विम्ब है<br />संघर्ष का<br />जिजीविषा का<br />yahi poornta haiरश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-61043091206039424642010-08-31T06:42:51.434-04:002010-08-31T06:42:51.434-04:00आपकी कविताओं की विशेषता रही है नूतन-विम्बो का प्रय...आपकी कविताओं की विशेषता रही है नूतन-विम्बो का प्रयोग. आज तो आपने स्पष्ट ही कर दिया,<br /><br />घिसी हुई पैंट<br />विम्ब है<br />संघर्ष का<br />जिजीविषा का<br />सद्यः .......<br /><br />नया नजरिया और नवीन दर्शन भी ! सुंदर कविता !! धन्यवाद !!!करण समस्तीपुरीhttps://www.blogger.com/profile/10531494789610910323noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-43248650083907473532010-08-31T06:31:26.464-04:002010-08-31T06:31:26.464-04:00निसंदेह अरुण की यह सबसे अच्छी कविताओं में से एक है...निसंदेह अरुण की यह सबसे अच्छी कविताओं में से एक है .बधाई .निर्मल गुप्त https://www.blogger.com/profile/14476315180256137151noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-48639814216836785472010-08-31T06:23:59.791-04:002010-08-31T06:23:59.791-04:00जब मनोज जी ने इतनी अच्छी समीक्षा कर दी है तो मेरे ...जब मनोज जी ने इतनी अच्छी समीक्षा कर दी है तो मेरे कहने के लिये तो कुछ बचा ही नही।<br />सिर्फ़ इतना ही कहूँगी…………जीवन एक संघर्ष है और इससे कोई नही बच पाता।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8519507250460617939.post-77634148381257366292010-08-31T06:07:31.538-04:002010-08-31T06:07:31.538-04:00आपकी कविता कोई जादुगरी नहीं वास्तविक जीवन की सक्ष...आपकी कविता कोई जादुगरी नहीं वास्तविक जीवन की सक्षम पुनर्रचना है सर्जनात्मक ऊर्जा की सक्रियता है। मकसद है - सबकी जिंदगी बेहतर बने। <br />यह रचना निम्न नादस्वर से उच्च तार सप्तक तक समेटे हुए है। रिश्तों में बंधे रहना, रिश्तों को ढोना या फिर अपने हिसाब से रिश्तों को खुद बनाना इन्हीं बिन्दुओं पर इस कविता का ताना बाना बुना गया है। इसमें जीवन की टूटन, घुटन, निराशा, उदासी और मौन के बीच मानवता की पैरवी करती कामना के आवेग की अबिव्यक्ति है। संवेदना के कई स्तरों का संस्पर्श करती यह कविता जीवन के साथ चलते चलते मन की भावना को पूरे आवेश के साथ व्यक्त करती है।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.com