सोमवार, 16 दिसंबर 2024

गोल रोटियों का भय

 

रोटियाँ गोल ही क्यों होनी चाहिए 

यह बात मुझे आज तक समझ नहीं आई 

जबकि रोटियों को खाना होता है 

छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़ कर 

रोटियों को गोल बेलने में 

शताब्दियों से भय जी रही औरतों ने 

क्यों नहीं उठाई आवाज़ 

यह बात भी मुझे आज तक समझ नहीं आई 

जबकि रोटियों के गोल होने या न होने से 

नहीं बदलता , न ही संवर्धित होता है उसका स्वाद 


रोटियों के गोल बेलने का दवाब

लड़कियों पर होता है शायद बचपन से 

और उतना ही कि 

उंनकी नज़रें नहीं उठें ऊपर 

उनके कदम नहीं उठें इधर उधर 


किताबों के ज्ञान से कहीं अधिक मान 

आज भी दिया गया है 

रोटियों के गोल होने को 

चाहे स्त्रियाँ उड़ा ही रही हो जहाज़, 

दे रही हो नए नए विचार 



यहाँ तक कि कई बार स्वयं स्त्रियाँ भी 

बड़ा गर्व करती हैं अपने रोटी बेलने की कला  पर ! 

जबकि गोल रोटी को देख मुझे 

हर बार लगता है जैसे बेड़ियों में जकड़ी स्त्री खड़ी हो सामने !










2 टिप्‍पणियां:

  1. विचारणीय अभिव्यक्ति सर।
    लाज़वाब रचना।
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १७ दिसम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं