शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

क्या समझ रहे हैं आप

मैंने कहा
एक कुत्ते का बच्चा
गाडी के पहियों के नीचे दब कर
मर गया
आप ने समझा
आदमी का बच्चा !


मैंने कहा
कितने मासूम से
लग रहे हैं ये
पेड़ पौधे
आपने समझा
टेढ़ी हो रही है
मेरी नज़र

मैंने कहा
हवा में घुटन की वजह से
सांस लेना हो रहा
कठिन
आपने समझा
ख़राब हो रहा है
देश का माहौल !


मैंने कहा
रोटी में
पसीने की गंध
कहाँ होती अब
आपने समझा
नसों में घुस गई है
बेईमानी

मैंने क्या कहा
और क्या समझ रहे हैं आप
उफ्फ !


बुधवार, 19 अगस्त 2015

गरीबी का मैग्नेटिज्म


अपने
१४ मंजिले फ्लैट की
बालकनी में खड़ा
वह आदमी
जो उड़ा रहा है
सिगरेट के धुंए  का छल्ला
तेजी से चहलकदमी करते हुए
किसी फिल्म के किरदार की तरह
लगता है आकर्षक
सड़क से

भीतर उसके भी
चल रहा होता है  ऊपापोह 
क्योंकि ई एम आई का चक्र
ठेले और रिक्शे के पहिये के चक्र से
नहीं होता भिन्न
स्टाक के उतार-चढाव का बोझ
किसी कुली के  माथे पर ६० किलो के बोझ से
कतई भी नहीं होता कम

जब सो रहा होता है
फुटपाथ  पर कोई चैन से
आकर्षक लगने वाला वह आदमी
गिन रहा होता है तारों में
बढती हुई  बच्चों की फीस
और आया हुआ बिजली का बिल

सुबह वह आदमी
एम्टास-ए टी की गोली लेगा
नियंत्रित करने को
अपना  और देश का रक्तचाप
ब्रेक-फास्ट  में
और खिल उठेगा
नए बढ़ते भारत का चेहरा
दिन भर के लिए

गरीबी रेखा के
ऊपर भी है अदृश्य गरीबी
जिससे चहल पहल है
बाज़ारों में
जहाँ गरीबी रेखा के
नीचे वाली गरीबी
पैदा करती है आज भी संवेदना
ऊपर की अदृश्य गरीबी
महिमामंडित हो
आकर्षित करती है
ऍफ़ ड़ी आई विश्वभर से .

बुधवार, 12 अगस्त 2015

कहाँ है उनका देश

रेलवे स्टेशन से 
उठकर फेंक दिया गया है उसे 
मेट्रो रेल की पार्किंग से 
निकल फेंका गया है वह 
उससे खतरा है देश को 

लुटियन जोन में 
कोठियों के पीछे से 
मंदिर के प्रांगणो से 
फेंक दिए गए हैं 

उधर से भी फेंक दिए गए हैं 
जिधर से गुजरेंगे 
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री , मंतरी 
समय रहते कहकर कि 
महामहिम को खतरा है 

वे जो रहते हैं 
फ्लाईओवरों या 
अण्डरपासो के नीचे 
मंदिर, स्टेशन पर 
सड़क, हाइवे है 
जिनका घर 
मालूम नहीं अखबारों में छपने वाली स्कीमें 
उनको मालूम भी हैं कि नहीं 
या उन सकीमों में है 
उनके लिए जरा सी जगह 
जो हैं देश की सुरक्षा के लिए तथाकथित चुनौती 

मालूम नहीं 
क्या कभी सोचते होंगे 
कहाँ है उनका देश