सोमवार, 31 दिसंबर 2018

कहाँ है नयापन ?


आज सूरज नहीं उभरेगा 
पश्चिम की पृष्ठभूमि से 
न ही नदी बदल देगी अपना रास्ता 
मुकर जायेगी समंदर से मिलने से 
वृक्ष भी कहाँ तक संजोये रहेंगे पीले पत्ते 
जिन्हें सूख जाना है अंततः 
फिर कहो, कहाँ है नयापन
किस बात का है उत्सव ?

नहीं मिलेंगी रोटियां 
पैसों के बिना 
नहीं मिलेगी छत 
काम के पैसे वाजिब 
अब भी कहाँ मिलेंगे 
बलून बेचता वह बच्चा 
कहाँ पायेगा स्कूल 
फिर कहो, कहाँ है नयापन 
किस बात का है उत्सव ? 

बेटियां कोख में 
मारी जाएँगी फिर भी 
जो बचेंगी, संभालती फिरेंगी 
अपनी छाती जन्म भर 
कुछ सिसकियाँ भरती रहेंगी 
खामोशी के साथ 
फिर कहो, कहाँ है नयापन 
किस बात का है उत्सव ? 

गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

सत्य - -वेंडोलिन ब्रुक्स

अमरीकी ब्लैक और जन सरोकारों के कवि वेंडोलिन ब्रुक्स की एक कविता " ट्रुथ" का अनुवाद सत्य ------------------------------------------------------ -वेंडोलिन ब्रुक्स और सदियों के लम्बे अन्धकार के बाद यदि कभी सूरज सामने आ जाता है कैसे करेंगे हम उसका स्वागत ? क्या हम उससे भयभीत नहीं होंगे ? क्या हम उससे डरेंगे नहीं ? बात सही है कि हम उसके लिए रोये हैं हमने की हैं प्रार्थनाएं इन तमाम काली रातों से भरे युग में कैसा लगेगा यदि किसी उजाले से भरी सुबह नींद खुले हमारे दरवाजों पर पड़े सदियों से मोटी जंजीरों पर रोशनी के प्रबल प्रहार के स्वर से क्या हम आश्चर्य से चौंक नहीं जायेंगे ? क्या हम भाग नहीं खड़े हो जायेंगे अपने पुराने परिचित खोल में हे वह कितनी ही धुंध और अँधेरे से ही भरा क्यों न हो? अनभिज्ञता में चैन की नींद में पड़े रहना क्या इतना सुकून भरा है ? गहन अन्धकार की चादर पड़ी है हमारी आँखों पर . (अनुवाद : अरुण चन्द्र रॉय )

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

धीरे धीरे मरना

ब्राजील की प्रसिद्द कवयित्री मार्था मेडिएरोस की एक कविता -
धीरे धीरे मरना
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वह जो बन जाता है आदत का दास
जो हर दिन पालन करता है एक ही दिनचर्या
जो नहीं बदलता है कभी अपना ब्रांड
जो नहीं उठता है किसी भी प्रकार का खतरा और नहीं बदलता है अपने कपड़ों का रंग
जो उन लोगों से बात नहीं करता जिन्हें वह नहीं जानता
मर जाता है धीरे धीरे
वह जो टेलीविजन को बना लेता है अपना गुरु
मर जाता है धीरे धीरे .
वह जो छोड़ देता है जिजीविषा
जो चाहता है केवल सफेद और काला
और भावनाओं के भंवर के बीच केन्द्रित रहता है "मैं" पर,
जो जिसकी आंखों में अनुपस्थित है चमक
अनुपस्थित है अंगड़ाइयों में मुस्कान,
संघर्ष और भावनाओं में दिल
मर जाता है धीरे धीरे .
वह जो अपने आसपास चीजों को अधिक नहीं बदलता
जो हर काम से रहता है नाखुश
जो अनिश्चितता के लिए निश्चितता का खतरा नहीं उठाता
बंधे-बंधाए स्वप्न को पकडे रखता है
जो अपने जीवन में एक बारे बेफिक्री से किसी अच्छी सलाह को अनदेखा नहीं करता
मर जाता है धीरे धीरे.
वह जो नहीं करता है यात्रायें
जो नहीं पढता नई किताबें
जो नहीं सुनता है संगीत
जो स्वयं से नहीं रहता खुश
मर जाता है धीरे.
वह जो धीरे-धीरे अपने आत्म-प्यार को कर देता है नष्ट
जो अनुमति नहीं देता किसी को अपनी मदद करने की
जो दिन बिताता है अपने दुर्भाग्य और मूसलाधार बारिश की शिकायत करने में
मर जाता है धीरे धीरे
वह जो किसी कार्य को छोड़ देता है शुरू करने से पूर्व
जो उन विषयों पर प्रश्न नहीं पूछता जिन्हें वह नहीं जानता
जो उन प्रश्नों का उत्तर नहीं देता जिन्हें वह जाता है
मर जाता है धीरे धीरे
तिल तिल मरने से बचने के लिए
खुद को याद दिलाइये कि जिंदा रहना नहीं है महज साँसे गिनना
कुछ कोशिशे भी जरुरी हैं
अनन्य ख़ुशी के लिए
केवल आवश्यक है धैर्य और जिजीविषा .
(अंग्रेजी से अनुवाद : अरुण चन्द्र रॉय )

बुधवार, 3 अक्तूबर 2018

गोल

ईश्वर ने
दुनिया गोल बनाई
उन्होंने सूरज को भी
गोल बनाया
चाँद भी गोल है
और जिसदिन दिखता  है पूरा गोल
लगता है वह सबसे सुन्दर

गोल चेहरा बच्चो का होता है
जब उनमे नहीं भरा होता है
दुनियावी बाते, झूठ और मक्कारी
घृणा और द्वेष
हिंसा, प्रतिहिंसा और क्रोध

जलते हुए दीप  की आभा भी
फैलती है गोलाकार में
सपनों का यदि कोई आकार होता तो
होता वह  वृताकार ही

रास्ते जो गोल चलते हैं
मंजिल की आपाधापी में नहीं रहते
ईश्वर की बनाई इस गोल दुनिया में
कहाँ रह गया है कुछ भी गोल ! 



सोमवार, 24 सितंबर 2018

मरने के इन्तजार में एक दिन


जिस दिन
मैं मर जाऊंगा
घर के सामने वाला पेड़
कट  जाएगा
उजड़ जाएंगे
कई जोड़े घोसले
उनपर नहीं चहचहाएंगी
गौरैया मैना
गिलहरियां भी
सुबह से शाम तक
अटखेलियां नहीं करेंगी
कोई नहीं रखेगा इन चिड़ियों के दाना और पानी
अपनी व्यस्तता से निकाल कर दो पल


पहली मंजिल की बैठकखाने की खिड़कियाँ
जहाँ अभी पहुँचती है पेड़ की शाखा
वहां सुबह से शाम तक रहा करेगा
उज्जड रौशनी
ऐसा कहते हैं घरवाले
मेरी पीठ के पीछे
इसी शाखा की वजह से
बैठकखाने में नहीं लग पा रहा है
वातानुकूलन यन्त्र
मेरी गोद  में उछल कर कहता है
मेरी सबसे छोटी पोती।


जैसे मेरे मरने के बाद नीचे नहीं आया करेगा
पीला कुत्ता
जिसे मैंने चुपके से गिरा दिया करता हूँ
अपने हिस्से की रोटी से एक कौर
मर जाएगा मेरे और कुत्ते के बीच एक अनाम सम्बन्ध
झूठ कहते हैं कि  कोई मरता है अकेला
जबकि जब भी कोई मरता है
उसके साथ मरती हैं  कई और छोटी छोटी चीज़ें

मरने का इन्तजार
पूरे जीवन के वर्षों से कहीं अधिक दीर्घ होता है !



सोमवार, 10 सितंबर 2018

मौजूद रहेंगी ध्वनियाँ


एक दिन कुछ ऐसा होगा
मिट जाएगी पृथ्वी
ये महल
ये अट्टालिकाएं
ये सभ्यताएं
सब मिटटी बन जाएँगी
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .

जब सब सागर
सूख जायेंगे
नदियाँ मिट जायेंगी
मछलियों की हड्डियां
अवशेष बचेंगी
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .


मनुष्य रहे न रहे
मनुष्यता उसमे बचे न बचे
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .

सोमवार, 27 अगस्त 2018

निसीम एजेकिल की कविता "आइलैंड"

भारतीय अंग्रेजी साहित्य के महत्वपूर्ण कवि  निसीम  एजेकिल की कविता "आइलैंड" , मुंबई के जीवन झोपड़पट्टी और गगनचुम्बी इमारतों के बीच चकाचौंध में उपजे अनमनेपन की कविता है।  इसका अनुवाद करने की असफल कोशिश की है।  


द्वीप
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किसी संगीत या समझ के लिए अनुपयुक्त
द्वीप में उग आती हैं झोपड़ियां व गगनचुंबी इमारतें, 
मेरे मस्तिष्क के विकास को ठीक ठीक 
प्रतिबिंबित करती हुई। 

मैं इसके भीतर ढूंढ रहा हूँ अपनी दिशा , अपना रास्ता। 

कभी-कभी मैं  रोता हूं मदद के लिए
लेकिन अधिकतर  मैं खोया रहता हूँ खुद  में ही ।
अपनी महत्वाकांक्षा  की चिंघार 
मानव होने का दावा करते दैत्यों की विकृत झंकार 
बजते हैं मेरी कानो में ।

द्वीप में बहती हैं 
सम्मोहित करने वाली भड़कीली हवाएं 
अतीत को करते हुए वर्तमान से अलग;
अपनी अज्ञानता की गंध में बेसुध सोते हुए मैं 
महसूस करता हूँ  फिर से वही हवा 
मानो मोक्ष की असीम भावना में लिप्त आत्मा का आनंद 
की इच्छा कैसे एक दिशा में लिए जा रहा है मुझे ? 

मैं इस द्वीप को नहीं त्याग सकता।  

यहीं  जन्मा था मैं और यही का हूँ।  
अब दैनिक जीवन को भी प्रभावित करते हैं 
कई कई चमत्कार। 
मेरे जीवन की शांन्ति और कोलाहल की गति को 
नियंत्रित करते हैं पूरी तरह 
एक अच्छे बासिन्दे की भांति।  

- अनुवाद : अरुण चंद्र रॉय 
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मूल कविता 

Island 

Unsuitable for song as well as sense
the island flowers into slums
and skyscrapers, reflecting
precisely the growth of my mind.
I am here to find my way in it.
Sometimes I cry for help
But mostly keep my own counsel.
I hear distorted echoes
Of my own ambigious voice
and of dragons claiming to be human.
Bright and tempting breezes
Flow across the island,
Separating past from the future;
Then the air is still again
As I sleep the fragrance of ignorance.
How delight the soul with absolute
sense of salvation, how
hold to a single willed direction?
I cannot leave the island,
I was born here and belong.
Even now a host of miracles
hurries me a daily business,
minding the ways of the island
as a good native should,
taking calm and clamour in my stride. 
Nissim Ezekiel

मंगलवार, 17 जुलाई 2018

मैं आम आदमी हूँ, भीड़ हूँ - कार्ल सैंडबर्ग

मैं आम आदमी हूँ, भीड़ हूँ - कार्ल सैंडबर्ग 
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मैं आम आदमी हूँ, भीड़ हूँ , जनसमूह हूँ,
क्या आप जानते हैं कि दुनिया के सभी महान काम मेरे माध्यम से किए जाते हैं?
मैं मजदूर, आविष्कारक, दुनिया के भोजन और कपड़े का निर्माता हूं।
मैं दर्शक हूं जो गवाहों है इतिहास का । नेपोलियन मुझ से ही पैदा होते हैं और लिंकन भी । वे मर जाते हैं। और फिर मैं कई और नेपोलियन और लिंकन पैदा करता हूं।
मैं बीज हूँ धरती के गर्भ में जाने के लिए । मैं खेत हूँ जो अंत तक जुतता रहेगा । भयानक झंझावात मुझसे गुज़र जाते हैं। मैं भूल जाता हूँ । मुझमे जो कुछ भी है चूस लिया जाता है और छोड़ दिया जाता है । मैं भूल जाता हूँ । सबकुछ मेरे पास आती है लेकिन मौत नहीं । मैं निरंतर काम में लगा रहता हूँ जो कुछ भी मेरे पास होता है मैं छोड़ देता हूँ । मैं भूल जाता हूँ ।
कभी-कभी मैं गुर्राता हूँ । खुद को झंझोरता हूँ और कुछ लाल छींटें फैला देता हूँ ताकि इतिहास याद रखे मुझे । और फिर मैं भूल जाता हूँ ।
जिस दिन मैं , आम आदमी , सीख जाऊँगा याद रखना , जिस दिन, मैं आम आदमी, कल की गलतियों से सीखना शुरू कर दूंगा, और नहीं भूलूंगा कि किसने पिछली बार लूटा था मुझे, ..उस दिन दुनिया भर में कोई भी वक्ता अपनी आवाज़ में भरकर कुटिलता और चेहरे पर उपहास भरे मुस्कान के साथ नहीं बोलेगा - आम आदमी ।
तब लौटेगा आम आदमी, भीड़, जनसमूह के दिन ।
अनुवाद : अरुण चन्द्र रॉय
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मूल कविता

I Am the People, the Mob

BY CARL SANDBURG
I am the people—the mob—the crowd—the mass.
Do you know that all the great work of the world is done through me?
I am the workingman, the inventor, the maker of the world’s food and clothes.
I am the audience that witnesses history. The Napoleons come from me and the Lincolns. They die. And then I send forth more Napoleons and Lincolns.
I am the seed ground. I am a prairie that will stand for much plowing. Terrible storms pass over me. I forget. The best of me is sucked out and wasted. I forget. Everything but Death comes to me and makes me work and give up what I have. And I forget.
Sometimes I growl, shake myself and spatter a few red drops for history to remember. Then—I forget.
When I, the People, learn to remember, when I, the People, use the lessons of yesterday and no longer forget who robbed me last year, who played me for a fool—then there will be no speaker in all the world say the name: “The People,” with any fleck of a sneer in his voice or any far-off smile of derision.
The mob—the crowd—the mass—will arrive then.

भीड़

भीड़ जो कल
प्रतिरोध का विवेकपूर्ण यन्त्र था
आज  एक हथियार है
विध्वंसक
जो हत्या कर सकता है
विचारों का

भीड़ का कोई चरित्र नहीं होता
इसकी कोई नैतिकता भी नहीं
न ही कोई संविधान है इनका

भीड़ का कोई रंग नहीं होता
ये अपने ऊपर ओढ़ लेते हैं
गमछा सुविधा के रंग का
कभी भगवा, कभी हरा ,
कभी लाल तो कभी तिरंगा

यह एक षड़यंत्र  है सुनियोजित
अफवाहों की ईंधन इसे बना देती है
और भी हिंसक

हम सब होते जा रहे हैं
भीड़ के हिस्से

मंगलवार, 10 जुलाई 2018

पहाड

भारतीय अंग्रेजी कविता के प्रमुख नामों में शामिल निसीम एजेकिल की एक कविता 'दी हिल" एक फिलोसोफिकल कविता है। मेरे समझ के अनुसार जीवन पहाड़ सा है, जितना इसे हम जानते हैं, उतना नहीं भी, जितना है हमारे साथ है, उतना ही अकेला भी। इस अंग्रेज़ी कविता का अनुवाद करने की कोशिश की है। अनुवाद बहुत बढ़िया नहीं हो पाया है। फिर भी।
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पहाड
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दृढ़ता के साथ अकेला खड़ा
यह पहाड़
अन्य पहाड़ों की तरह
सबके लिए सुलभ है
अमिट छाप छोड़ता है यह मस्तिष्क में
अनदेखा नहीं कर सकते इसे
बशर्ते कि कोई भारी जोखिम में फंसा हो।
इसका आनंद दूर से न उठायें
यह इतना भी दूर नहीं कि
आप पहुँच न सकें
यह खेल है
आरोहण के लिए।
एक पहाड़ मांगता ही क्या है
ज़ज़्बे से भरा आदमी
जैसे पत्थरों को फाड़
निकलता है दूब , फूल
सामना करता है सूरज का
और झुलस जाता है।
मुझे स्वयं से कितनी बार
कहना चाहिए
औरों से क्या कहूँ कि
करो स्वयं के हौसले पर भरोसा ,
हर बात में, हर मौके पर
बार बार।
और जब एक बार आप
जीवन का आनंद लेना शुरू करते हैं तब
क्या अस्तित्व ?
क्या जीवन ?
कौन करता है इनकी फ़िक्र
हाँ ! मैं कविता की बात नहीं कर रहा
मैं बात कर रहा हूँ तिल तिल
होने वाले अपमानो की
जिसे नाम देते हैं जीवन का।
मैं कहता हूँ : इसे ख़त्म करो
मैं कहता हूँ : तुम्हे पहाड़ों से करना होगा प्रेम
तुम हो क्रोधित ,
तुम हो अधीर
कि तुम क्यों पहाड़ पर नहीं हो
हालाँकि दान-पुण्य का काम है
फिर भी स्वयं को माफ़ मत करो
विडंबना भरे जीवन
या स्वीकार्यता से संतुष्ट मत होना
किसी व्यक्ति को मरते हुए
हंसना नहीं चाहिए
आराम से मरते हुए आप
अलग समय काल में चले जाते हैं
जो स्वयं पहाड़ है
और आपको लगता रहा है कि
आप इससे परिचित हैं।
- अनुवाद : अरुण चन्द्र रॉय
मूल कविता


The Hill
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This normative hill
like all others
is transparently accessible,
out there
and in the mind,
not to be missed
except in peril of one's life.
Do not muse on it
from a distance:
it's not remote
for the view only,
it's for the sport
of climbing.
What the hill demands
is a man
with forces flowering
as from the crevices
of rocks and rough surfaces
wild flowers
force themselves towards the sun
and burn
for a moment.
How often must I
say to myself
what I say to others:
trust your nerves—
in conversation or in bed
the rhythm comes.
And once you begin
hang on for life.
What is survival?
What is existence?
I am not talking about
poetry. I am
talking about
perishing
outrageously
and calling it
activity.
I say: be done with it.
I say:
you've got to love that hill.
Be wrathful, be impatient
that you are not
on the hill. Do not forgive
yourself or other,
though charity
is all very well.
Do not rest
in irony or acceptance.
Man should not laugh
when he is dying.
In decent death
you flow into another kind of time
which is the hill
you always thought you knew.
- Nissim Ezekiel

शुक्रवार, 29 जून 2018

राष्ट्रभक्त

अंग्रेजी भाषा के आधुनिक कवियों में एक निसीम एजेकिल की एक कविता "पेट्रियट" के अनुवाद करने की कोशिश की है।  यह कविता एमरजेंसी के दौरान लिखी गई है।  अच्छे दिन और रामराज्य की तलाश उन दिनों भी थी।  यही बात आज इस कविता को प्रासंगिक बना रही है। 

राष्ट्रभक्त

मैं शांति और अहिंसा का पक्षधर हूँ
किन्तु पूरी दुनिया क्यों लड़ रही है
लोग क्यों नहीं महात्मा गांधी  के दिखाए रास्ते का पालन कर रहे
मेरी समझ से परे है यह बात

 कहते हैं प्राचीन भारतीय ज्ञान शत प्रतिशत सही है
मैं कहूंगा यह दो सौ प्रतिशत सही है
किन्तु आधुनिक पीढ़ी क्यों विमुख है पुरातन से
बढ़ती ही जा रही है इच्छा फैशन और विदेशी वस्तुओं के लिए

आये दिन पढता हूँ मैं समाचार पत्रों में
(इनदिनों मैं टाइम्स ऑफ इंडिया पढ़ रहा हूं
अपनी अंग्रेजी भाषा में सुधार करने के लिए)
कैसे एक गुंडे ने
इंदिराबेन पर पत्थर फेंक दिया
अवश्य ही वह अशांत और असंतुष्ट छात्र रहा होगा
ऐसा मैं सोच रहा हूँ
मेरे दोस्तों, मित्रों, देशवासियों, मैं कह रहा हूं (स्वयं से )
मेरी बात सुनो
आ रहे हैं अच्छे दिन
पुनर्जन्म, रोज़गार, गर्भनिरोधक।
भाइयों और बहनों धैर्यपूर्वक रहो!

आप एक गिलास लस्सी चाहते हैं?
पाचन के लिए बहुत अच्छा है।
हलके नमक के साथ लाज़वाब पेय
शराब से बेहतर;
ऐसा नहीं है कि मैं कभी शराब चखने वाला हूँ
मैं हूँ बिलकुल टीटोटलर, सनातनी
किन्तु मैं कहता हूं
शराब केवल शराबी के लिए है।

विश्व शांति की संभावनाओं के बारे में आप क्या सोचते हैं?
पाकिस्तान इस तरह व्यवहार कर रहा है,
चीन इस तरह व्यवहार कर रहा है,
यह मुझे सचमुच दुखी कर रहा है, मैं आपको बता रहा हूं।
वास्तव में, मैं वकाई परेशान हूँ !

सभी व्यक्ति हमारे दोस्त हैं, ऐसा नहीं है
भारत में भी ऐसा नहीं है
गुजराती, मराठी, बिहारी , बंगाली
सभी भाई हैं क्या?
हालांकि सबमे में कुछ अजीब आदतें हैं
फिर भी, हम एक दूसरे  को झेलते हैं
ऐसे ही निश्चित रूप से आयेगा रामराज्य किसी दिन

आप जा रहे हैं नाराज़ होकर?
लेकिन आप फिर से लौटेंगे
किसी भी समय,
किसी भी दिन,
मैं उत्सवों में विश्वास नहीं करता
मुझे आपका साथ पसंद है !

- अनुवाद : अरुण चंद्र रॉय

Original Poem

Patriot

I am standing for peace and non-violence.
Why world is fighting fighting
Why all people of world
Are not following Mahatma Gandhi,
I am simply not understanding.
Ancient Indian Wisdom is 100% correct,
I should say even 200% correct,
But modern generation is neglecting -
Too much going for fashion and foreign thing.
Other day I'm reading newspaper
(Every day I'm reading Times of India
To improve my English Language)
How one goonda fellow
Threw stone at Indirabehn.
Must be student unrest fellow, I am thinking.
Friends, Romans, Countrymen, I am saying (to myself)
Lend me the ears.
Everything is coming -
Regeneration, Remuneration, Contraception.
Be patiently, brothers and sisters.
You want one glass lassi?
Very good for digestion.
With little salt, lovely drink,
Better than wine;
Not that I am ever tasting the wine.
I'm the total teetotaller, completely total,
But I say
Wine is for the drunkards only.
What you think of prospects of world peace?
Pakistan behaving like this,
China behaving like that,
It is making me really sad, I am telling you.
Really, most harassing me.
All men are brothers, no?
In India also
Gujaratis, Maharashtrians, Hindiwallahs
All brothers -
Though some are having funny habits.
Still, you tolerate me,
I tolerate you,
One day Ram Rajya is surely coming.
You are going?
But you will visit again
Any time, any day,
I am not believing in ceremony
Always I am enjoying your company.

Nissim Ezekeil

शुक्रवार, 15 जून 2018

प्रोफ़ेसर

अंग्रेजी के महत्वपूर्ण कवि निसीम एजेकील की एक प्रसिद्द कविता है- प्रोफ़ेसर . इसका हिंदी अनुवाद करने की कोशिश की है .

प्रोफ़ेसर 
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क्या मैं याद हूँ तुम्हे ? मैं हूं प्रोफेसर सेठ ।
कभी मैं ने भूगोल पढ़ाया था तुम्हे
अब हूँ सेवानिवृत्त तथापि अच्छा है मेरा स्वास्थ्य।
मेरी पत्नी कुछ साल पहले गुज़र गईं ।
ईश्वर की कृपा से, मेरे सभी बच्चे
जीवन में अच्छी तरह से व्यवस्थित हैं
एक सेल्स मैनेजर है,
एक है बैंक मैनेजर
दोनों के पास कारें हैं, फ़्लैट है
अन्य भी ठीक-ठाक जीवन व्यतीत कर रहे , हालांकि वे इतने समृद्ध नहीं ।
हर परिवार में एक बेगार होना चाहिए
सरला और तारला विवाहित हैं,
उनके पति बहुत अच्छे व्यक्ति हैं
तुम विश्वास नहीं करोगे लेकिन मेरे पास ग्यारह पोते-पोतियां हैं।
तुम्हारे कितने बच्चे हैं? दो या तीन?
अच्छा है। यह परिवार नियोजन का दौर है
मैं खिलाफ नहीं हूँ इसके , हमें समय के साथ बदलना चाहिए
पूरी दुनिया बदल रही है, भारत भी
हम बदलाव के साथ चल रहे हैं। हमारे विकास का हो रहा है विकास ।
पुराने मूल्य जा रहे हैं, नए मूल्य आ रहे हैं
सब कुछ बदल रहा है बहुत तेज़ी से फर्राटा भरते हुए
मैं अब बाहर कम ही निकलता हूँ, यदा कदा
यह केवल बुढापे के लक्षण हैं किन्तु
मेरा स्वास्थ्य बिलकुल ठीक है, रहता है सामान्य दर्द जोड़ों में ।
नहीं है मुझे कोई मधुमेह, कोई रक्तचाप,
दिल का दौरा भी नहीं पड़ा कभी मुझे।
यह संभव हुआ है मेरी युवाकाल की आदतों की वजह से।
तुम्हारा स्वास्थ्य कैसा रहता है?
अच्छा न ? मैं बहुत खुश हूं यह सुनकर !
इस साल मैं उनहत्तर साल का हो गया हूँ
और शतक लगाने की उम्मीद है।
कभी तुम कितने पतले थे, छड़ी की तरह,
अब तुम्हारा वजन बढ़ गया है , समृद्धि की वजह से ।
अरे ! मैं तो मजाक कर रहा था ।
कभी तुम्हारा इधर से फिर गुज़ारना हो तो
आना मेरे घर
इस मकान के पीछे वाली गली में मैं रहता हूँ
कभी तुम्हे भूगोल पढ़ाने वाला प्रोफ़ेसर ।
निसीम एजेकिल
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Original Poem
Professor
Remember me? I am Professor Sheth.
Once I taught you geography. Now
I am retired, though my health is good.
My wife died some years back.
By God's grace, all my children
Are well settled in life.
One is Sales Manager,
One is Bank Manager,
Both have cars.
Other also doing well, though not so well.
Every family must have black sheep.
Sarala and Tarala are married,
Their husbands are very nice boys.
You won't believe but I have eleven grandchildren.
How many issues you have? Three?
That is good. These are days of family planning.
I am not against. We have to change with times.
Whole world is changing. In India also
We are keeping up. Our progress is progressing.
Old values are going, new values are coming.
Everything is happening with leaps and bounds.
I am going out rarely, now and then
Only, this is price of old age
But my health is O.K. Usual aches and pains.
No diabetes, no blood pressure, no heart attack.
This is because of sound habits in youth.
How is your health keeping?
Nicely? I am happy for that.
This year I am sixty-nine
and hope to score a century.
You were so thin, like stick,
Now you are man of weight and consequence.
That is good joke.
If you are coming again this side by chance,
Visit please my humble residence also.
I am living just on opposite house's backside.
Nissim Ezekiel

गुरुवार, 14 जून 2018


उसने मुझे गालियाँ दीं
मैं सुनता रहा
वह मुझे कोस रहा था
मैं सर झुकाए खड़ा था
वह मुझे गिना रहा था अपने एहसान
मैं अपनी उँगलियों पर गिन रहा था

वह भूल गया था कि
उसकी सत्ता में अंश है
मेरे पसीने का भी . 

बुधवार, 13 जून 2018

निसीम एज़िकेल की कविता "दर्शन" का अनुवाद

निसीम एज़िकेल अंग्रेजी के महत्वपूर्ण कवि हैं . उनकी कवितायेँ दुनिया भर में पढ़ी जाती हैं . उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है . उनकी कविता "दर्शन" का अनुवाद करने का दुस्साहस मैंने किया है . दर्शन एक जगह है जहां मैं अक्सर जाता हूं, योजना बना कर नहीं बल्कि स्वतः खिंचा चला जाता हूँ सभी अस्तित्व से दूर, अंतिम प्रकाश तक जिसका इच्छा अनियंत्रित है यहां, ईश्वर का सृजन कभी धीमा नहीं पड़ता सृष्टि के अलौकिक आभा, अपनी उत्कृष्टता प्रदर्शित करने के लिए होता हुआ विघटित असंख्य तारों को मिटा कर अदम्य उत्साह के साथ एक पल में घटित होता है समय की उदास आंखों में । लेकिन अर्थ के अवशेष अभी गढ़े जा रहे हैं अंधेरे मिथक दर्द के माध्यम से घूमते हैं प्रकाश के अंतिम सूत्र के लिए। मैं भी, दृष्टि की इस स्पष्टता को अस्वीकार करता हूं- जो समझाया नहीं जा सकता है, समझाओ मत। इंद्रियों की सांसारिक भाषा गाती है इसकी अपनी व्याख्याएं आम जन की बातें बनें, उनकी प्रज्ञा के आधार पर, उनकी नग्नता के खिलाफ एक तर्क वह जो सच्चाई का अन्वेषण करता है गति को प्राप्त होता है उसी की उदासीनता से ! मूल कविता अंग्रेजी में A prominent Indian English Poet Nissim Ezikiel's poem : Philosophy There is a place to which I often go, Not by planning to, but by a flow Away from all existence, to a cold Lucidity, whose will is uncontrolled. Here, the mills of God are never slow. The landscape in its geological prime Dissolves to show its quintessential slime. A million stars are blotted out. I think Of each historic passion as a blink That happened to the sad eye of Time. But residues of meaning still remain, As darkest myths meander through the pain Towards a final formula of light. I, too, reject this clarity of sight. What cannot be explained, do not explain. The mundane language of the senses sings Its own interpretations. Common things Become, by virtue of their commonness, An argument against their nakedness That dies of cold to find the truth it brings. ********

सोमवार, 28 मई 2018

उदास आसमान

 उदास है आसमान
क्योंकि नदी के पानी में 
फ़ैल गया है  जहर 

यह जहर धर्म का हो सकता है 
हो सकता है यह राजनीति का 
और हो सकता है विश्वासघात का 
जिसे पीकर चिड़ियों के पंख 
हो रहे हैं कमजोर 

यह जहर पैदा करता है भ्रम 
निर्णय की क्षमता होती जाती है 
कमजोर शनैः शनैः 
चिड़ियों को आभास भी नहीं होता 

कमजोर पंखों से चिड़ियाँ 
कहाँ छू पाती हैं आसमान 
आसमान रहता है उदास 
चिड़ियों के बिना 
जैसे उदास रहता है 
मरे हुए बेटों के बूढ़े माँ बाप के घर का दालान 
उदास है आसमान ! 

बुधवार, 18 अप्रैल 2018

तुम प्रकृति हो

प्रकृति 
सबको देती है इतनी शक्ति
कि वह अपनी स्थिति का सामना कर सके
रेगिस्तान में देती है 
ताप सहने की शक्ति 
समंदर में देती है 
लहरों से जूझने की कला 
पहाड़ों में देती है 
पत्थर से लड़ने का माद्दा
जितना ताप सहते हैं हम 
जितना तैरते हैं हम 
जितना लड़ते हैं पत्थरों से 
उतनी ही पुख्ता होती है हमारी क्षमता !
कितनी ही विषमताओं से गुज़रते हुए 
आई हैं तुम में है कुछ अद्भुद शक्तियां 
उन्हें भूलो नहीं , जैसे नहीं भूलता है मानव चलना, बोलना
तुम प्रकृति हो !

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जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं ज्योति !

गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

नेपथ्य से

यह जो रंगमंच पर हो रहा है
लिखी गयी है इसकी स्क्रिप्ट कहीं और
किसी और उद्देश्य से

ये पात्र जो संवाद कर रहे हैं
सब झूठे हैं
सब बनावटी हैं
सब मुखौटे हैं

और जो हैं मंच के सबसे आगे
आरक्षित स्थानों पर
उन्हें ठीक ठीक ज्ञात है
वे निजी तौर पर जानते हैं
किसने लिखे हैं पात्रों के संवाद
किसने चुने हैं पात्रो को
और क्या अंत है इस मंच का

नेपथ्य तय करता है
मंच का वर्तमान और भविष्य !

सोमवार, 26 मार्च 2018

पतझड़

यह मौसम है
पतझड़ का

पत्ते पीले पड रहे हैं
और कमजोर भी
वे गिर रहे हैं एक एक कर
जैसे घटता है पल पल जीवन

बुजुर्गों की आँखों का सन्नाटा
और गहरा गया है
पतझड़ का पीलापन उनके चेहरे के पीलेपन को
बढ़ा रहा है और भी अधिक

एक दिन गिर जायेंगे सब स्तम्भ
जो गिरेंगे नहीं उनके अवशेष रहेंगे खंडहर के रूप में

लेकिन वृक्ष कहाँ डरता है पतझड़ से
जहाँ से गिरता है पत्ता
वही से पनपता है नया कोंपल

पतझड़ को अच्छा लगता है हारना ! 

गुरुवार, 1 मार्च 2018

रंग पर्व


आसमान में भरे हैं रंग 
धूसर ही सही लेकिन मिटटी का भी एक रंग है 
रंग हरा जब होता है खेतों का , दुनिया में होता है जीवन 
पानी को कहते हैं बेरंग लेकिन वह कर लेता है समाहित सब रंगों को 
हवा का रंग मन के रंगों से खाता है मेल 
और हाँ 
रंग दुःख का भी होता है और सुख का भी  !

रंग जो क्रोधित होते हैं, समंदर , नदियां, पहाड़ सब तोड़ते हैं मर्यादाएं व धैर्य 
ये रंग जब खुश होते हैं, होता  है रंगों का पर्व  !

जीवन के रंग किसी भी दशा में रहें उल्लसित, उत्साहित, आशन्वित 
क्योंकि  होता है आशा, उत्साह और उल्लास का भीएक रंग, लाल।  

मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

एक पैर का जूता

एक पैर का जूता
किसी के काम की नहीं होती
उसे किसी और जोड़े के साथ
नहीं पहना जा सकता है
क्योंकि हर जूता होता है
केवल अपने जोड़े के लिए ही।

एक साथ घिसते हैं
एक सा धूप पानी सहते हैं
एक साथ खोते हैं चमक
एक पैर का जूता खोने से
अचानक बेमानी हो जाता है
दूसरे  पैर  का जूता

जब तक साथ रहते हैं वे
कहाँ जान पाते हैं
एक दूसरे का अर्थ।


गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

ठीक उसी समय

जब होता है
स्कूल जाने का समय
वह ठेलता है रिक्शा
ठीक उसी समय चल रहा होता है
रेडियो पर 'बचपन बचाओ' का विज्ञापन

जब बच्चे कर रहे होते हैं
विद्यालयों में प्रार्थना
वह धो चुकी होती है
कई घरों की रात की झूठी प्लेटें
लगा चुकी होती है झाड़ू और पोंछा
ठीक उसी समय टेलीविज़न पर
साक्षात्कार दे रहा है कोई सेलिब्रिटी
"बेटी बचाओ" अभियान के बारे में


ठीक उसी समय अखबारों में
छपे होते हैं आकड़े
देश के स्कूलों में बढ़ रहे हैं
छात्रों की संख्या
सुधर रही है लैंगिक अनुपात !



गुरुवार, 18 जनवरी 2018

गणतंत्र



1
राजपथ से
जब भी निकलती है
तोपें
लहूलुहान होता है
जनपथ ।

2
जब गुजरते हैं
हवा में मारक विमान
राजपथ के ऊपर से
दुबक जाते हैं
अपने पंखों में
पक्षी।

3
घोड़े, ऊंट और
हाथियों की कदमताल पर
झूमते देश को
कहां पता होता है
राजपथ पर
लीद उठाने वालों का नाम।

4

महामहिम सब
लौट जायेंगे जब
फिर से चहक उठेंगे बच्चे
बेचने को रंगीन गुब्बारे


सोमवार, 8 जनवरी 2018

प्रबंधन : कुछ क्षणिकाएं


समय पर
नहीं आने के लिए
निकल दिए जायेंगे आप
कोई बात नहीं कि
आपके बेटे को है
१०४ डिग्री बुखार

2

आप बाँट दिए जायेंगे
समूहों में
समूहों के हित
आपस में जितने टकराएंगे
प्रबंधन होगी
उतनी अधिक प्रभावी

3
जनशक्ति की लागत को
रखनी है न्यूनतम
ताकि अधिकतम हो
लाभाँश

4
मशीन के साथ
होड़ है मनुष्य की
जिसमे  बीमार होना, थकना, हांफना
है सख्त मना !





सोमवार, 1 जनवरी 2018

ढूंढ रहा हूँ नए साल को

घड़ी के बारह बजाते ही
मैं ढूँढने निकल गया हूँ
नए साल को, जो मिल ही नहीं रहा है .

मुझे अभी अभी दिखा है
फुटपाथ के किनारे सोया हुआ
एक आदमी इस ठंढ में बेफिक्री से
पास में सोया हुआ है एक कुत्ता
उतनी ही बेफिक्री से
मैंने ढूँढा आसपास
मुझे नहीं मिला नया साल .

एक रिक्शा वाला अकेले सोया है
बस स्टॉप के पीछे अपने रिक्शे पर
ओढ़े कम्बल, सुबह की प्रतीक्षा में
स्ट्रीट लाईट की पीली बीमार रौशनी में
वह लग रहा है थोडा डरावना सा
डरते हुए मैंने उसे उठाया और पूछा
कि क्या चलेगा वह नए साल में.
मुझे पागल कल वह फिर से सो गया


मैं चलता रहा चलता रहा गली गली
मुझे मिले बंद दुकाने
आवारा कुत्तों का झुण्ड
सोये हुए पेड़
नींद में फुटपाथ
सुस्ताती हुई सड़कें
लेकिन मुझे कहीं नहीं मिला नया साल

पौ फटने को थी
जागने वाली थी दुनिया
अखबार बाँटनेवाले निकल पड़े थे
कूड़ा बीनने वाले
सडकों की सफाई वाले
अपनी रूटीन की तरह
निकल पड़े थे
लेकिन न जाने कहाँ गुम था
नया साल

मंदिर के सामने फूल बेचने वाली बुढिया
आ गई थी पुराने समय पर
पुराने समय पर ही सुलग गया है
चाय वाले का चूल्हा
पुराने समय पर ही दुधिया निकल पड़ा है
बेचने दूध
अचंभित हूँ, कैसे आया है नया साल, नया समय !