शनिवार, 24 फ़रवरी 2024

शहर का बसंत

 शहर का बसंत 

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इन दिनों शहर में आया हुआ है बसंत 

जहां वह गमले में खिल  रहा है

जबकि सड़कों के किनारे खड़े पेड़

या तो जा रहे हैं काटे या सुखाए। 

हां, सरकार की फाइलें

वृक्षारोपण के आंकड़ों से

 हो गई हैं मोटी। 


- अरुण चन्द्र रॉय

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2024

मातृभाषा

 मातृभाषा दिवस पर 

अरुण चन्द्र रॉय की कविता - मातृभाषा 

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मेरी मातृभाषा में 

नहीं है

सॉरी, थैंक यू

धन्यवाद, आभार जैसे 

शब्द। 


मातृभाषा में बोलना 

होता है जैसे 

मां  छाती से लिपट जाना

माटी में 

लोट जाना


जब छूट  रही है मिट्टी, मां

और मातृभाषा 

हर बात के लिए

जताने लगा हूं आभार

कहने लगा हूं धन्यवाद

औपचारिक सा हो गया हूं। 


- अरुण चन्द्र रॉय

बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

प्रेम

 प्रेम

दरअसल है 

एक बड़ा झूठ है


आसमान से तारे 

नहीं लाए जा सकते हैं 

तोड़कर

अन्यथा आसमान हो गए होते खाली

और धरती पर सुबुक रहे होते सब तारे


या टूटे हुए तारों को देख कर

मांगी गई मन्नतें भी 

नहीं होती हैं पूरी

नहीं तो सिसक नहीं रही होती नदियां

बांधों के भीतर 


प्रेम में देने वाले जान

वास्तव में होते हैं बेहद कमजोर

जो नहीं खोद सकते खेत

उपजाने के लिए अन्न

और और ऐसे कमजोर लोग

नहीं होने चाहिए प्रेरणा। 


प्रेम वह है जिसे हम 

प्रेम कहते ही नहीं 

जैसे यदि कभी दिखे 

 किसी बूढ़े को सड़क पार कराते युवा 

तो समझिए वह प्रेम में है, उसके भीतर है 

एक कोमल हृदय


या फिर सड़क बुहारती स्त्री 

सुबह सुबह मुझे प्रेम में पड़ी प्रतीत होती है

जिसके केंद्र में होते हैं बच्चे, परिवार

किंतु इन चित्रों को नहीं रखा जाता है

प्रेम की श्रेणी में। 


क्षमा करना प्रिय ! 

मेरा प्रेम, दुनिया के प्रेम से है

थोड़ा अलग।

मेरे प्रेम हैं 

नदी, आसमान, आग, पानी, हवा, पहाड़, खेत

और सब के सब बेहद परेशान हैं, उदास हैं! 

हां, इस अंधी सुरंग के उस पार है

झीनी झीनी सी ज्योति, रोशनी! 




बुधवार, 7 फ़रवरी 2024

अमेरिकी कवयित्री नाओमी शिहाब नी की कविता "शोल्डर्स" की कविता का अनुवाद

 कंधे 


नाओमी शिहाब नी



वह आदमी बारिश में 

        पार कर रहा है सड़क 

धीरे धीरे  कदम बढ़ाते हुए, 

देखता है दो बार दाईं और बाईं ओर  

क्योंकि उसका बेटा आराम से सो रहा है उसके कंधों पर 

वह संभल कर पार कर रहा है सड़क कि  कोई गाड़ी  उसे कुचल न दे 

कोई गाड़ी  उसे छू कर निकल न जाए 

उसके कन्धों पर है दुनियां की सबसे नाजुक चीज़ 

लेकिन उसके लिए नहीं लिखा है कहीं कोई 

चेतावनी या सावधानी वाले निर्देश 

उसकी जैकेट पर नहीं लिखा है कि  उसके कंधों पर है 

दुनियाँ  की सबसे नाज़ुक चीज़ कि  सावधानी से गाडी चलाएं ! 


उसके कानों में गूंजती है बच्चे की सांस 

उसे  साफ़ साफ़  सुनाई देती है 

बच्चे के सपनों की गूँज 


यदि हम उसकी आवाज़ नहीं सुन सकते 

यदि हम उनकी चिंता नहीं समझ सकते

तो नहीं हैं हम इस दुनिया में रहने लायक !


अनुवाद : अरुण चंद्र राय 

मंगलवार, 30 जनवरी 2024

अमरीकी कवयित्री नाओमी शिहाब नी की कविता"एम्प्टी" का अनुवाद


रिक्त 

नाओमी शिहाब नी


मैं देखना नहीं चाहती 
क्या बाहर निकल गया 
जब भोर में पाया कि 
उलटी पड़ी है 
सपनों से भरी नीली मिट्टी की सुराही। 

क्या भविष्य रिस गया 
बूँद बूँद!  

अनुवाद : अरुण चंद्र राय