गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

कारोना की मार - मालिक से मजदूर तक शिकार

केरल के एक बिजनेसमैन जॉय अरक्कल ने दुबई में पिछले सप्ताह आत्महत्या कर ली। केरल से खाड़ी देशों तक का उनका सफर सफलता का सफर था। उनके तेल के कुएं मध्य एशिया के कई देशों में थे। रिफाइनरी और अन्य पेट्रोलियम उत्पादों का भी उनका व्यापार था।  कोरोना संक्रमण से जब दुनिया लॉक डाउन की स्थिति में है , दुनियां भर में क्रूड ऑयल का मूल्य इतिहास में इतना कम कभी नहीं रहा, उन्हें लगा कि व्यापार संभालना मुशकिल है। इस वित्तीय तनाव को जॉय आरक्कल झेल नहीं पाए। उन्होंने अपने दुबई स्थित कार्यलय के चौदहवीं मंजिल से झलांग लगा ली।
जब से लॉक डाउन शुरू हुआ है, वित्तीय तनाव के कारण जर्मनी के एक प्रांत के वित्तीय मंत्री ने प्रांत के खराब होते हालात को बेकाबू होते देख आत्महत्या कर ली थी।
विश्व में। शायद यह पहला मौका है जब पूरी दुनिया की आर्थिक गतिविधियां ठिठकी हुई है, पहिए रुके हुए हैं, एक साथ।
मजदूरों, किसानों का तनाव तो हमें अख़बारों के पहले पन्ने, टीवी स्क्रीन पर दिख जाता है किन्तु व्यापारियों का तनाव, उनकी चिंताएं इतनी महीन होती है कि हमें वह नहीं दिखता है। भारत में दो करोड़ से अधिक रोजगार कोरोना संक्रमण की भेंट चढ़ जाएंगे। इसमें छोटे छोटे उद्यमियों की संख्या भी कम नहीं होगी जिनकी फैक्ट्रियां किराएं पर हैं, मशीनें ठप्प पड़ी हैं, बैंकों का कर्जा है, सरकार और बाज़ार की देनदारियां हैं। उनके पास विकल्प बहुत कम है।
कोरोना के शिकारों में मजदूर से मालिक तक शामिल हैं।

बुधवार, 22 अप्रैल 2020

किताब

विश्व पुस्तक दिवस पर पढ़िए मेरी कुछ छोटी कविताएं - किताब। 


क्या
तुमने भी
महसूस किया है
इन दिनों
खूबसूरत होने लगे हैं
किताबों के जिल्द
और
पन्ने पड़े हैं
खाली । 


क्या
तुम्हें भी
दिखता है
इन दिनों
किताबों पर पड़े
धूल का रंग
हो गया है
कुछ ज्यादा ही
काला
और
कहते हैं सब
आसमान है साफ़ । 


क्या
तुम्हें भी
किताबों के पन्ने की महक
लग रही है कुछ
बारूदी सी
और उठाये नहीं
हमने हथियार
बहुत दिनों से । 


क्या
तुमने पाया है कि
किताब के बीच
रखा है
ए़क सूखा गुलाब
जबकि
ताज़ी है
उसकी महक
अब भी
हम दोनों के भीतर । 

कोरोना का भारतीय अर्थवयवस्था पर प्रभाव

कोरोना महामारी के कारण उपजी नई परिस्थितियों में भारत का आर्थिक विकास दर घट कर एक से डेढ़ रह जाएगा। इस विकास दर का अर्थ लाखों लोगों का बेरोजगार होना, नौकरियां छिन जाना,  लघु उद्यमों का बंद हो जाना, छोटे कारोबारियों का कारोबार घट कर आधा रह जाना है।
यह एक ऐसी आर्थिक परिस्थिति है जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी किसी विद्वान या अर्थशास्त्रियों ने।
कोरोना की यह कीमत बहुत बहुत अधिक होगी। दुनिया को इससे उबरने में कम से कम एक दशक तो लग जाएगा।
लेकिन इसका एक अलग पक्ष भी हो सकता है। जहां पश्चिमी देश में विकास का पहिया लगभग थम सा गया था उनके यहां विकास की गति थोड़ी बढ़ेगी। वे भी अपने यहां पहले से उन्नत स्वास्थ्य ढांचा को कोरोना के आलोक में देखेंगे। इस तरह वहां ग्रोथ के लिए कई सेक्टर खुलेंगे।
भारत के लिए यह चुनौती अलग तरह की होगी। नौकरियां नहीं होंगी तो समाज में अपराध बढ़ेंगे, सांप्रदायिक मतभेद के बढ़ने की आशंका अधिक होगी, सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से ऑटोमेशन की रफ्तार और बढ़ेगी,आदमी का स्थान रोबोट्स लेंगे।
सरकार को इतनी बड़ी जनसंख्या के पेट को भरने के लिए कृषि पर जोर देना होगा, छोटे कुटीर उद्योग पर फोकस करना होगा, अन्यथा स्थिति पर नियंत्रण रखना कठिन होगा। आयात को कम करने की चुनौती अलग होगी। निर्यात के क्षेत्र में संभावना क्षीण ही दिख रही होगी।
एक ही सुकून की बात है कि पूरी दुनिया किसी न किसी तरह से परेशान है।

मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

घरबंदी

1.

कितना कठिन है न
घरों में बंद रहना
जबकि स्त्रियां
कैद हैं घरों में
सीमाओं में
सभ्यताओं की अंधेरी गुफाओं में
न जाने कब से।

2.

जिनके पास
नहीं है अपना घर
जिनके सिर पर नहीं है
अपनी छत
कहां रहेंगे वे बंद
कब सोचा है किसी ने
गंभीरता से !

3.
घरबंदी में
आप ले रहे हैं कई
किस्म की चुनौतियां
विभिन्न मंचों पर
क्या कोई लेगा चुनौती
मिटाने को हर पेट की भूख
देने को हर हाथ को काम !

***


रविवार, 19 अप्रैल 2020

पूछना खुद से चाहिए

1.
जब दुनियां
बंद थी घरों में
पूछना खुद से चाहिए
आसमान का रंग
क्यों हो रहा था नीला अधिक।

2.
जब मशीनों
और मोटरों की आवाज़
ख़ामोश थी
पूछना खुद से चाहिए
क्यों चहचहा रही थी चिड़िया अधिक।

3.
जब मौत के
आंकड़े गिन रहे थे तुम
बार बार
पूछना खुद से चाहिए
कौन थे वे लोग जो कर रहे थे
ड्यूटी काम के तय घंटों से अधिक।

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

कोरोना आपदा से रोज़गार को खतरा

इक्कीसवीं शताब्दी में जीवन शैली में सुधार, गरीबी में कमी और आर्थिक विकास की ग्रामीण क्षेत्रों तक धमक ने  दुनिया का चेहरा बदल दिया था . इस शताब्दी के दो दशकों में तकनीक और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जितनी तेजी से प्रगति हुई वह पहले कभी नहीं हुई थी . जिंदगी को मानो पंख लग गए थे . हर दुसरे पल तकनीक पुरानी हो जा रही थी . गति, गति और तेज़ गति... यही तो नारा था इस शताब्दी का . और एक पल में दुनिया ठहर गई है . लॉक डाउन से . कोरोना महामारी ने महामारी शब्द को जिंदा कर दिया है . अन्यथा कुछ वर्षों में यह शब्द, शब्दकोष से बाहर निकल जाता .

कोरोना संक्रमण ने दुनिया के सभी बड़े अर्थव्यवस्थाओं की नीव हिला दी है . दुनिया की तमाम आर्थिक ताकतें आज ढहने के कगार पर खड़ी हैं . एक ओर जहाँ आने वाले कई सालों तक दुनिया भर में मांग की कमी रहेगी, बाजार सिमटा रहेगा वहीँ दुनिया भर में बेरोज़गारी सबसे बड़ी समस्या रहेगी .

नेशनल सैंपल सर्वे और पीरियाडिक लेबर फ़ोर्स सर्वे द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार गैर कृषि क्षेत्रों में 13.6 करोड़ रोज़गार के अवसर ख़त्म हो जायेंगे इसमें पर्यटन, बैंकिंग, ऑटोमोबाइल, वस्त्र उद्योग, निर्माण क्षेत्र आदि शामिल हैं .
एक अनुमान के अनुसार वस्त्र, सीमेंट, खाद्य प्रसंस्करण, प्लास्टिक , मेटल आदि क्षेत्रों में 9 करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार हो जायेंगे . इसमें छोटे और मझौले उद्योग, डीलर नेटवर्क और स्वरोजगार से जुड़े लोग अधिक बेरोजगार होंगे.
एक निजी रिसर्च एजेंसी ने अनुमान लगाया है कि पहले से मांग की समस्या से घिरा ऑटोमोबाइल उद्योग में बीस लाख लोगों के बेरोजगार होने की सम्भावना है . इसमें आधे लोग डीलर नेटवर्क और फ्रंट लाइन स्टाफ होंगे जो मांग की कमी की वज़ह से नौकरी से बाहर होंगे .

कहा जाता है कि वर्तमान में लगभग 4.6 करोड़ कामगार ऐसे असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं जहाँ उन्हें किसी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा की सुविधा नहीं मिली हुई है . ऐसे मजदूरों और कामगारों पर रोज़गार छिनने का खतरा सबसे अधिक है .

आगरा के फुटवेयर क्लस्टर में लगभग दस लाख लोग रोज़गार में लगे हुए हैं . इनमे जहाँ एक तरफ असंगठित मजदूर हैं तो दूसरी तरफ छोटे छोटे स्वरोजगारी उद्यमी हैं . यहाँ दोनों पर ही बराबर खतरा है . इसी तरह तमिलनाडु का तिरुपुर टेक्सटाइल क्लस्टर है जहाँ एक सिलाई मशीन लेकर भी लाखों लोग अपना उद्यम चला रहे हैं . तमिलनाडु में वस्त्र उद्योग में लगभग एक करोड़ नौकरी जाने का खतरा है .

कोरोना महामारी के कारण वैश्विक निर्यात का परिदृश्य भी निराशा से भरा हुआ है . विगत दो महीनो में निर्यात के आदेश निरस्त हो रहे हैं चाहे वह वस्त्र हो, फैशन हो या फुटवेयर हो . निर्यात उन्मुख उद्यम अधिक से अधिक तीन महीने तक अपने कामगारों को काम पर रख सकते हैं . यदि इस दौरान बाज़ार में सुधार नहीं होता है तो लगभग एक करोड़ से अधिक लोगों को अपने रोज़गार से हाथ धोना पड सकता है .

इन से भी निराशाजनक स्थिति सेवा उद्योग यानी सर्विस सेक्टर की है . इस क्षेत्र में इवेंट मैनेजमेंट, रेस्तरा,  स्पोर्ट्स इवेंट्स, शादी व्याह, फोटोग्राफी, क्रिएटिव, एंटरटेनमेंट उद्योग आदि शामिल हैं जहाँ विगत दो महीनो से सब कुछ ठप्प पड़ा है और अगले दो महीनो तक कोई उम्म्मीद भी नहीं दिख रही है .

बाज़ार की रौनक मध्य वर्ग से आती है जो मांग को बढाता है , बाज़ार को विस्तार देता है लेकिन वह मध्य वर्ग जहाँ एक तरफ अपने रोज़गार के जूझेगा वहीँ वह अपनी बचत को खर्च करने से भी बचेगा . इसी मध्यवर्ग के ऊपर ईएम्आई का भी दवाब रहता है .

यदि विशेषज्ञों की माने तो देश में 13.6 करोड़ लोग कोरोना की मार से बेरोजगार हो जायेंगे और अर्थव्यवस्था की विकास दर घटकर 1-2% तक हो जायेगी . देश के वित्त मंत्री और भारतीय रिजर्व बैंक के अधिकारियों के चेहरे पर चिंता की लकीरों का गहराना वाजिब ही है .

गौर करने वाली बात होगी कि भारत कोरोना और उससे उपजी आर्थिक मंदी से कैसे निपटता है ?