शनिवार, 30 अप्रैल 2022

राजा और मंत्रियों की यात्राएं

 राजाओं और उनके मंत्रियों के लिए 

आवश्यक होना चाहिए यात्राएं अस्पतालों की 

दुख और पीड़ा को अनुभव करने का यह सहज स्थान 

मनुष्य को मनुष्य बनाए रखने का सबसे प्रभावशाली साधन है। 


उन्हें नियमित रूप से जाना चाहिए 

शमशान घाट और कब्रिस्तान भी 

ताकि उन्हें सनद रहे आदमी की हदों के बारे में । 


किसी किसान के घर भी 

मंत्रियों और राजाओं को जाना चाहिए 

जिससे कि उन्हें भान हो जाए कि 

दुनिया की सत्ता के सच्चे हकदार कौन हैं । 


बुरा नहीं लगेगा किसी को यदि राजा या मंत्री 

उस छोटे बच्चे से मिल आएं जिसने खोया है अपना पिता 

सीमा पर हुई गोलीबारी में 

जबकि दोनों तरफ के अफसरान कर रहे वार्ता 

बड़ी गर्मजीशी से और अंत में मिला रहे थे हाथ 

कर रहे थे गलबहियां। 


लेकिन राजाओं और उनके मंत्रियों के पास 

इन दिनों वक्त नहीं है 

वे कर रहे हैं अंतर्राष्ट्रीय संधियों पर हस्ताक्षर 

नए व्यापार के लिए कर रहे हैं करार,

खरीदे जाने हैं नए नए हथियार 

उन्हें क्या ही फर्क पड़ता है कि

पड़ रहे हैं पहाड़ों में दरार, 

बढ़ गया है  गांवों और शहरों का तापमान 

या झीलों में नहीं आ रहे हैं चिड़िया के रूप में 

विदेशी मेहमान। 










शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

संभव

 सड़क होने का अर्थ 

मंजिल का होना नहीं होता है 

पानी होने से बुझ जाए प्यास 

कब होता है ऐसा। 


बादल घूमडेंगे तो बरसेंगे भी 

हर बार ऐसा नहीं होता है 

रोपे गए हर बीज से प्रस्फुटित हो पौध ही 

ऐसा भी कब हुआ है । 


आपके पास शब्द हैं 

और आप लिख सकें कविता  

हो जाए क्रांति 

कर सकें प्रतिरोध 

कहां होता है संभव ऐसा भी। 


आप प्रेम करें और 

मिले बदले में प्रेम 

आप समर्पित रहें और 

मिले आपको भी समर्पण 

यह भी कहां हुआ है संभव ! 






शनिवार, 2 अप्रैल 2022

चैत

 इधर चैत जल रहा है 

और दुनिया गा रही है 

बसंत के गीत 

खड़ी फसलों के बेमौसम बरसात में 

गिर जाने के खतरे के बीच 

लोग शोक मना रहे हैं गिरे हुए पत्तों पर 

और ये ऐसे लोग हैं जिन्हें 

शाख से  गिरे हुए पत्तों एवं 

पके हुए फसलों के बेमौसम बारिश में गिरने के बीच का फर्क 

नहीं है मालूम। 


नदियां और पोखर गए हैं सूख 

बढ़ती ही जा रही है लोगों की भूख 

जबकि पेट की भूख जस की तस बनी हुई है 

एक भूख को श्रेष्ठ बताने के लिए चलाए जा रहे हैं 

संगठित अभियान 

और एक भूख को लगातार किया जा रहा है 

मुख्यधारा से ओझल 

भूख और भूख के बीच के फर्क के प्रति अज्ञानता ही 

सुखा रही है नदियां और पोखर 

काश कभी जान पाते आप और हम।


चैत को नहीं जलना चाहिए 

नदियों को नहीं सूखना चाहिए 

पोखरों को जिंदा रहना चाहिए 

और भूख पर लगाम लगानी चाहिए 

यह केवल नारा भर है जिसे एक साथ पोस्ट किया जाना है 

विभिन्न मीडिया मंचों पर।