मंगलवार, 19 दिसंबर 2023

शेल सिल्वरस्टीन की कविता "सिक" का अनुवाद

पढिए अमरीकी कवि शेल सिल्वरस्टीन की अंग्रेजी कविता सिक का भावानुवाद 


 बीमार बच्चा 

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शेल सिल्वरस्टीन



"मैं आज स्कूल नहीं जा सका!"
उस छोटे बच्चे ने कहा 

"मुझे खसरा है और है तपेदिक 
दाने, फुनसी और हैं घाव अधिक 
मेरा मुँह गीला है और गला सूखा 
दाहिनी आँख से हो रहा मैं अंधा 

मेरा टॉन्सिल है चट्टान जितना बड़ा 
चेचक को मैंने है सत्रह बार गिना 
सोलह साल का मेरा है एक भाई 
हरा उसका चेहरा जैसे जमी हो काई 

पैर में है पोलियो, आँखें हैं नीली 
खांसते खांसते दम  है मेरी ढीली 
दौड़ते हुए मैं रहता हूँ हांफता 
बिना दवाई के नहीं गुज़रता कोई हफ्ता 

जब मैं हूँ अपनी ठुड्डी हिलाता 
मेरे कूल्हे में है दर्द  बहुत होता 
मेरी नाभि अंदर रही है धंस 
मेरी आँतों में आ गया है पस 

मेरी गर्दन गई है अकड़ 
मेरा दिमाग गया है सिकुड़
धीरे धीरे आवाज हो रही कमजोर 
राहत है मेरे पेट में मरोड़ 

लोग कहते हैं आज है त्योहार 
लेकिन उससे मेरा क्या सरोकार 
मेरे लिए तो एक जैसे हैं सब वार 
क्या सोम, क्या मंगल और  क्या रविवार ! 

अनुवाद : अरुण चंद्र राय 

गुरुवार, 14 दिसंबर 2023

जल का रुदन

आर्थर सिमंस की कविता "The  Crying  of  Water " का अनुवाद 


हे जल ! मेरे ह्रदय के स्वर 
तुम रो रहे हो छुपकर रेत के भीतर 
तुम्हारी सिसकियाँ गूंजती रही हैं  रात भर 
मैं सुन तो पा रहा हूँ तुम्हारी सिसकियाँ 
किन्तु असमर्थ हूँ समझने में 
कि  तुम्हारा यह क्रंदन मेरे हृदय का रुदन है 
या यह है समुद्र की चीख  
हे जल ! रात भर जो तुम रोये हो 
क्या तुम चीख रहे थे रुकने के लिए, पल भर को ठहरने के लिए !

हे  जल !
तुम्हें बहते ही रहना है, जीवन  कभी नहीं रुकता 
जब तक कि आखिरी चाँद छिप  न जाए और थम जाए ज्वार  ! 
या ढल जाए सूरज पश्चिम में कहीं हमेशा के लिए 
और हृदय व्यथित होकर रोने लगे  समुद्र की भांति 
समुद्र तो रोता  है जीवन भर अकेले 
जैसे रोती है नदी मेरे पहलू में रात भर ! 

अनुवाद : अरुण चंद्र राय 

शुक्रवार, 3 नवंबर 2023

नहीं खौलता हमारा खून

साँसों में जाने वाला धुंआ 

कहीं अधिक खतरनाक है 

भीड़ द्वारा पत्थर मारने के 

या दंगा में दुकानों के जलाने के 

या भीड़ द्वारा किसी की हत्या के 

या कोई धार्मिक किताब ही जलाने के 

लेकिन साँसों में जाने वाले धुंआ के लिए 

कभी नहीं खौलता हमारा  खून .

 

गुरुवार, 2 नवंबर 2023

ग़ज़ल

चुप रहने का आदेश है ऊपर से 
कैसा बन रहा देश है ऊपर से  (1)

जो बोलेगा एक दिन मारा जायेगा 
आवाजें सिलने का निर्देश है ऊपर से (2)

गुमसुम चिड़िया बैठी है शाखों पर 
यह मनहूस सा  सन्देश है ऊपर से (3)

बम्ब बारूद के गिरने से छलनी 
देखो हुआ परिवेश है ऊपर से (4)

इस बार का त्यौहार बीतेगा सूना 
पिया मेरा परदेश है ऊपर से  (5)

मंगलवार, 31 अक्तूबर 2023

युद्ध

 1. 

बम्ब जहाँ गिरता है 

 गिनती तो होती है आदमियों के मरने की

नहीं गिनती होती है कि 

कितनी तबाह हुई मिट्टी. 


2.

बारूद के फटने से 

खून से सने बच्चों को तो गिन लेते हैं हम 

नहीं गिने  जाते हैं 

गिरे हुए पेड़ , झुलसे हुए पत्ते. 


3. 

राकेटो के धमाके से 

इसकी खबर तो आती है कि टूट गए हैं बाँध 

नहीं खबर आती है कि 

मर गईं हैं  सैकड़ों मछलियाँ. 


4. 

टैंको की धमक से 

टूटी सड़कों की तस्वीरें छा जाती हैं 

दुनियाँ भर में 

अनखिची रह जाती हैं 

चिड़ियों के घोंसलों से गिरे अण्डों की तस्वीरें.  

सोमवार, 23 अक्तूबर 2023

रावण

हममें रावण

तुममे रावण

हम सब में 

रावण रावण


ऊपर रावण

नीचे रावण

क्षितिज क्षितिज

रावण रावण 


पूरब रावण

पश्चिम रावण

दशों दिशा में

रावण रावण


भीतर रावण

बाहर रावण

मन मानस में 

रावण रावण 


पल में रावण

क्षण में रावण

घट घट में

रावण रावण


कहां नहीं है

रावण रावण ! 

किसमें नहीं है

रावण रावण !


क्यों उसका हम

 वध करें

पूछ रहा है यह 

रावण रावण। 


अहिंसा की समाधि

 जितनी अधिक

संहारक शक्ति होगी

होगी उतनी ही अधिक पूछ

उतने ही अधिक होंगे दोस्त 

संहार के जयघोष से 

अखबारों के पन्ने होंगे भरे

उतना ही अधिक बढ़ेगा 

बाजार में व्यापार । 


अहिंसा की समाधि पर

फूल चढ़ाने की परंपरा

शायद कभी खत्म न हो

इस सभ्य दुनिया में। 

गुरुवार, 19 अक्तूबर 2023

पकते हुए धान

पकने लगे हैं  धान

बजने लगा है 

हवा में संगीत 

घुलने लगी है 

ठंढ, धूप में . 


झड़ने लगी है 

रातरानी 

लदने लगे हैं 

अमलतास ओस से

पकते हुए धान के साथ  . 


खलिहान की आतुरता 

देखते ही बनती है 

धान के स्वागत के लिए  .  




सन्नाटा

फर्क है 
सन्नाटे और चुप्पी में 

चुप्पी जा सकती है 
चुनी 
लेकिन सन्नाटा 
अक्सर जाता है 
थोपा . 

बुधवार, 18 अक्तूबर 2023

प्रतिमा और प्राण


बनती हैं 

प्रतिमाएं मिट्टी की 

बड़े जतन  से कुम्हार 

गढ़ता है सबसे पहले पैर 

और आखिरी में आँख । 


आँखों के खुलते ही 

प्रतिमा में प्रतिष्ठित हो जाते हैं प्राण ! 


सचमुच ,आँखों में  ही बसते हैं प्राण । 


सोमवार, 9 अक्तूबर 2023

मानवीय प्रवृत्ति


पेड़ से पत्तों को 

होना ही होता है अलग 

नियम है यह प्रकृति का 

लेकिन पत्तों को सायास 

पेड़ से अलग करना 

है प्रवृत्ति मानवीय !


समय से फलों को 

होता ही है पकना 

नियम है यह प्रकृति का 

लेकिन फलों को 

सायास पकाना 

 है प्रवृत्ति मानवीय ! 


समय से उम्र को 

ढलना ही होता है 

नियम है यह प्रकृति का 

लेकिन रोकना उम्र को ढलने से 

 है प्रवृत्ति मानवीय ! 

जॉन फॉस की कवितायेँ

 वर्ष २०२३ के लिए साहित्य  के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता जॉन फ़ॉस की कविताओं का हिंदी अनुवाद 

(THE MOUNTAIN HOLDS ITS BREATH)

साँसें रोक कर खड़ा पहाड़  

 

उसने ली गहरी साँस

और फिर वहीँ टिक गया पहाड़

और पहाड़ वहीँ टिका रहा सदियों तक 

और इस तरह पहाड़ बचाए रहा अपना अस्तित्व

 

और उसकी जड़ें नीचे धसती रहीं

गहरी और बहुत गहरी

स्वयं में लिपटी हुई

और थामें हुई अपनी साँसें

 

स्वर्ग और समुद्र

जब मचा रहे हाहाकार

रोके हुए हैं अपनी साँसें, पहाड़ . 

 

 

LIKE A BOAT IN THE FINE WIND

तूफ़ान में नाव की भांति

 

 

मैं और तुम

तुम और चाँद

तुम और हवा

तुम और ये झिलमिल सितारे

शायद

मिटटी में दबकर 

सड़ रही लाशों की

तमाम दुर्गंधों

के बीच

कई लोग, मेरी तरह

या उनकी तरह जो

दफ़न कर देते हैं अपनी

हतोत्साहित आशाएं

बिना किसी पीड़ा के.

 

हाँ! किसी तूफ़ान में नाव की भांति

मैं और तुम .

 

 

ONLY KNOW

जो केवल हम जानते हैं

 

गीत,

समुद्र का गीत

पहाड़ की चोटियों से निकलकर  

छा जाता है आसमान के वितान पर

 

नीले क्षितिज पर, गुनगुनाते हुए

साथ साथ हैं हम

और जहाँ हम नहीं कहते कुछ भी

एक दूसरे से 


और अनकहा,

जो केवल हम जानते हैं  !

 

 हिंदी अनुवाद : अरुण चन्द्र राय

सोमवार, 4 सितंबर 2023

गजल 3


न झूठी अब लिखाई चाहता हूं। 

बदलना रोशनाई चाहता हूं ।। ।1। 


कई खबरें हैं खबरों से परे जो,

मैं उनकी भी छपाई चाहता हूं। ।2। 


हैं रंगों ने किये सब कैद झंडे,

इन्हें देना रिहाई चाहता हूं। ।3। 


सभी पुर्जे निजामत के सड़े हैं

मैं इनकी अब सफाई चाहता हूं। ।4।


हवा, फल, फूल, छाया पेड़ देते,

तो क्यों इनकी कटाई चाहता हूं ? ।5।


मंगलवार, 15 अगस्त 2023

गजल 2

 आप जबसे हमारे सनम हो गए

क्या कहूं आप बेरहम हो गए 


लूट हत्या दंगे हो रहे आए दिन

खून खौलता नहीं सब नरम हो गए


जंगल जल रहे, ढह रहे पहाड़ 

कुदरत के तेवर भी गरम हो गए 


नफरत के झंडे हो रहे बुलंद 

कैसे ये हमारे धरम हो गए 


डूबते को मिलता तिनके का सहारा

कैसे कैसे ये मुझको भरम हो गए ।

बुधवार, 19 जुलाई 2023

ग़ज़ल 1


ये दुनिया गोल है प्यारे 

तेरा भी मोल है प्यारे 


बिकेगा सब यहां देखो 

तेरा भी तोल है प्यारे


भिंची हैं मुट्ठियां मेरी

अंगारा बोल है प्यारे 


बिठाए पहरे होठों पर 

खुली जो पोल है प्यारे 


मिलाता क्यों नहीं नजरें

कहीं कुछ झोल है प्यारे


रंगों में बंट गई धरती

ये क्या भूगोल है प्यारे


ये जो आंचल है माता का

बड़ा अनमोल है प्यारे

शुक्रवार, 16 जून 2023

सब ठीक है

बहुत दिनों बाद मिले
बीज बेचने वाले बाबा
पूछा कि कैसे रहे पिछले दिन
उन्होंने कहा सब ठीक है,
लेकिन कहां है सब ठीक?

पेड़ के नीचे बैठ कर
पुराने कपड़ों को ठीक करने वाले बाबा
बहुत दिनों बाद दिखे
थके हुए कदम और उदासी आंखों में भर कर
वे उसी पेड़ के नीचे खाली बैठे मिले।
पूछने पर बताया कि
वे भी ठीक है,
लेकिन कहां है सब ठीक?

वो चौंक पर बैठता है एक चाभी बनाने वाला
वह भी कहां दिखाई दिया साल भर से
उसका बोर्ड अब भी टंगा था
फोन मिलाया तो उसने भी कहा
सब ठीक है
लेकिन कहां है सब ठीक?

ऐसे ही ज़िन्दगी के आसपास
रोज़ दिखने वाले जब नहीं दिख रहे
या कमजोर या उदास दिख रहे हैं
फिर भी कह रहे हैं सब ठीक है
तो मत समझिए कि सब ठीक है।

हां
जब सब ठीक नहीं है
तब भी सब ठीक कहना
और कुछ नहीं बल्कि है
आदमी के भीतर बसी
जिजीविषा और आशा
यही उसे खड़ा करता है
हर बार गिरने पर
संबल देता है
लड़खड़ाने पर।

ठीक है कि अभी
सब ठीक नहीं लेकिन
कल होगा सब ठीक ।

मंगलवार, 23 मई 2023

घुटने का दर्द


ऐसा कौन है 

जिसके घुटने में नहीं है दर्द 

जिसे नहीं हो रही कठिनाई 

सीढ़ियाँ चढ़ने या उतरने में 

फिर भी क्या कभी सुना कि

किसी ने पूछा हो 

आपके घुटने का हाल 

या बताया हो 

अपने ही घुटने का हाल । 


दरअसल जो जरूरी है 

वह हो नहीं रहा दुनियाँ में 

और गैर जरूरी संवादों से भरी दुनिया 

होती जा रही है संवाद और संवेदना हीन । 


घंटों मोबाइल या लैपटॉप या कंप्यूटर की सकीं से 

बुझी आँखों के पीछे जो दर्द होता है 

घुटनों का , रीढ़ की हड्डी का या ढीली पड़ती पकड़ का 

उसका जिक्र कहाँ करना चाहता है कोई 

और करे भी कैसे जब कोई सुनना ही नहीं चाहता ।  


थक रहे कदमों, बुझ रही आँखों 

और आँगन के सूनेपन की अभिव्यक्ति के लिए 

नहीं बन सकता पंद्रह बीस सेकेंड का कोई रील । 

मंगलवार, 25 अप्रैल 2023

शेष

 पिता अब नहीं हैं 

नहीं है मां भी अब

ऐसा तो कह नहीं सकते

क्योंकि वे हैं अब

अपनी वसीयतों में

दस्तावेजों में। 


शायद रह जाता है

यही शेष

दस्तावेज

मैं रहना चाहूंगा शेष

अपनी कविताओं में। 

सोमवार, 3 अप्रैल 2023

मसखरे के हाथों में दे दो सत्ता की बागडोर


मुझे लगता था कि 

मेरे पास है समाधान

दुनियां भर की  समस्याओं का 

कि अगर  मैं किसी देश के राष्ट्रपति से मिल  लूं 

तो रोक लूंगा उसे अपने पड़ोसी राष्ट्र पर बम गिराने से । 


मुझे लगता था कि

यदि कभी किसी दंगाई से मिला तो

उसकी तलवार के नोक पर 

रख दूंगा एक गुलाब का फूल

और कहूंगा कि किसी को मारने से पहले देख ले अपनी जेब में रखी बेटी की तस्वीर एक बार 

मुझे यकीं था कि वह दंगाई नहीं रहेगा फिर । 


मुझे यह भी लगता था कि

देश की वित्तमंत्री तक यदि पहुंच जाऊं मैं

तो समझा लूंगा उन्हें कि

सीमा पर तोप से कहीं अधिक जरूरी हैं

मेरे गांव के स्कूल में शिक्षक, पंचायत में अस्पताल 

और वे थपथपा कर मेरी पीठ मान जायेंगे मेरी बात। 


कितना गलत था मैं

जब मेरी कोशिशों के सब बीज खोखले निकले

अंकुरित नहीं कर पाया एक भी  पौधा प्रेम और विश्वास का

भरोसे की कलम सूख गई नमी की कमी के कारण और 

अपनी तमाम कोशिशों के लिए कहलाया मैं मसखरा  । 


फिर कहूंगा, चाहे कोई सुने न सुने

मसखरों की बातें जो सुनती दुनियां

सीमाओं पर बाड़ नहीं होते

हाथों में हथियार नहीं होते

गुलाब की खेती होती

तलवारों की जगह हाथों में होते कलम

बस एक दिन किसी मसखरे के हाथों में दे दो दुनियाँ की बागडोर।

सोमवार, 27 मार्च 2023

युद्ध के लिए कब तक कोई रोये

 युद्ध अभी खत्म नहीं हुये 

युद्ध अभी खत्म भी नहीं होंगे 

फिर कब तक कोई रोये 

इस युद्ध के लिए । 


युद्ध में अब नहीं है वह भेद 

कि इसने किया है पहला प्रहार 

युद्ध में अब नहीं है वह संयम 

कि बैठ कर सुलझा लें मसले 

अब वे पक्ष भी नहीं  हैं जो कह दें कि 

दोनों पक्ष को बैठा कर करा दें सुलह 

फिर कब तक कोई रोये 

इस युद्ध के लिए ।