रविवार, 24 दिसंबर 2017

साल की आखिरी कविता

लिखते हुए
साल की आखिरी कविता
सोचता हूं साल की पहली कविता के बारे में
जिसमे प्रार्थनाएं थीं बच्चो के लिए

याद आती है मुझे अपनी वह कविता
जिसमें बोझ  उठाता हुआ मजदूर है
जिसकी रीढ़ की हड्डी इतनी टेढी हो गई है कि
विश्वास नहीं होता है डाक्टरों को वह कैसे है खड़ा

उन्हें याद करने लगता हूं मैं अनायास ही
जो ईंट के बोझ से दब गए
नदी में बह गए
फैक्ट्रियों के धुंए में जिनके फेफड़े फट गए
और मैं लिखता रहा कविताएं

मेरे सामने घूमने लगते हैं
त्रिशूल, तलवार और खंजर
जिन्होंने की हैं हत्याएं निरीहों की
और मेरे शब्द डर कर चुप रहे
बांधे हाथ।

अब यह साल गुजर जाएगा
लेकिन स्मृतियों से कैसे जाएगा
वह दिहाड़ी मजदूर जो
मशहूर बिजली कंपनी के टावर पर
चिपक गया था गरम राख से
और किसी ने मिटा दिया उसका नाम
हाजिरी रजिस्टर से।

जब हम उन्मादी की तरह चिल्लाते रहे
खेल के मैदानों में
बिना आक्सीजन के घुटते रहे बच्चे
और उनका शोर ख़ामोश हो गया
शतक और दोहरे शतकों के अट्टहास में ।

फिर लगता है मुझे
शत्रु कितना बलवान है
और आज जो स्वयं को कहते हैं
मेरा मित्र
वही कल शत्रु की श्रेणी में चले जाएंगे
हासिल कर मेरी संवेदनाएं
फिर एक कविता ही तो है
जिसे मैं उछाल सकता हूं उनकी ओर
पत्थर की तरह

क्या इसी लिए लिख रहा हूं
साल की अंतिम कविता
दर्ज करते हुए समय के खाते में
अपना प्रतिरोध।

शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

परिधि

परिधि



पृथ्वी के पैर में
लगे हैं पहिये
किन्तु उसे लौट आना होता है
धुरी पर
यही नियति है
जैसे स्त्रियों के लिए
निर्धारित है परिधि !




परिधि में
नहीं है आसमान
जंगल भी नहीं
न ही समंदर
किन्तु निर्धारित कर ली है नदी
अपना मार्ग
जैसे स्त्रियों के लिए
निर्धारित है परिधि !!




परिधि के लिए
गढ़ लिए गए हैं
कई पर्याय
किन्तु वही छूता है शिखर
जिसमें दुस्साहस है
लांघने को परिधि !


गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

झूठ

एक झीनी सी 
रेखा होती है 
सच और झूठ के बीच 

होता है एक 
झिल्लीदार पर्दा 
झूठ और सच के मध्य 

तुम चाँद सी लगती हो 
झूठ ही तो है 
झूठ ही तो है 
जब कोई कहे 
तुम में बसती है 
मेरी जान 
सब झूठ है 

वह भी तो झूठ है 
जो कहती हो तुम 
मेरे कानो में 
मेरे सपनो में 
सपने भी झूठ ही होते हैं 
फिर भी 
देखते हैं सपने हम , तुम, सब 

झूठ होती है 
सब प्रार्थना 
सब दुआएं 
यदि यह सच है कि 
ईश्वर ने रचा है यह विधान 
क्योंकि वह तो सबसे बड़ा झूठ है 

जो आज झूठ है किसी के लिए 
हो सकता है वही एकमात्र विकल्प रहा हो 
किसी के लिए 
स्थितियों परिस्थियों के अनुकूल 
झूठ सच के भेद को देता है मिटा 

जब भी तुमसे कहता हूँ मैं
इस देश का राजा भी बोलता है
झूठ,
तुम हँसकर कहती हो
'मुझे नहीं चाहिए झूठ बोलने वाला राजा"
और तुम्हारा चेहरा लाल हो उठता है
झंडे की तरह .