मंगलवार, 30 अप्रैल 2019

घृणा



घृणा से उपजी ऊर्जा से 
पिघला कर इस्पात 
बनती हैं तलवारें, बंदूकें 
बम्ब और बारूदें 
बम वर्षक विमानें 
मरते हैं आदमी 
मरती है आदमीयता 

तुम ऐसा करना 
तुम्हारे भीतर जो हो किसी से घृणा 
उसे शब्दों में देना ढाल 
देखना बनेगी 
दुनिया की सबसे खूबसूरत कविता 

कवितायेँ नहीं करती 
रक्तरंजित इतिहास 
वे तिनका हो जाती हैं 
जब डूब रही होती हैं मानवता।    

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

चमत्कार देखिये : एक ग़ज़ल

वादों पे वादों की भरमार देखिये 
सिसायत में हो रहे चमत्कार देखिये   

रोटी नहीं सबकी थाली में फिर भी 
वज़ीरे आज़म के माथे अहंकार देखिये 

दे रहे ज़ख्म अब मंदिर औ मस्जिद 
नए नए ईश्वर का अवतार देखिये 

ख़बरों में ढूंढें नहीं मिलेगा आदमी 
किसी भी दिन कोई अखबार देखिये 

ताले जड दिए हैं हमने दरवाजों पर 
सांकल बजा लौट गया इन्तजार देखिये 

सूखे आसमा भी बरसेंगे एक दिन  
गा रहा कहीं कोई मल्हार देखिये 


(बिना तकनीकी ज्ञान और इसके पक्ष को देखते हुए ग़ज़ल की कोशिश) 

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

शुभकामनाओं से भरा बाजार


वे दे रहे हैं शुभकामनाएं
तरह तरह के माध्यमों से
कुछ अखबारों के जरिये
कुछ टेलीविज़न के माधयम से
कुछ सोशल मीडिया के जरिये
कुछ आपके मोबाइल में सदेशों के माध्यम से
और कुछ तो इन सभी माध्यमों से
और तो और सड़कें, रेल, बस, जहाज सब पटे  पटी  हैं
शुभकामनाओं के पोस्टरों, बैनरों, होर्डियों से।


उल्लेखनीय यह है कि
शुभकामनाएं वे दे रहे हैं
जो चूस  रहे हैं खून
उनकी ओर  से भी आ रही हैं शुभकामनाएं
जो तौल रहे हैं जेब
वे कहाँ पीछे हैं शुभकामनाएं देने में
जो बेच रहे हैं मौत !

एक दिन यही होना है कि
छीन लेंगी ये आदमी से उसकी हंसी
हवा को कर देंगी जहरीली
घोंट देंगी दम
नदियों में भर देंगी तेज़ाब
पहाड़ों में बारूद
और आदमी शुभकामनाओं के बोझ के नीचे
मिलेगा दबकर मरा हुआ .