बुधवार, 20 मार्च 2019

ठहरो , फिर मैं भी मना लूं होली



आज भी आया है वह
उठाने मोहल्ले भर का कूड़ा
मिठाइयों के डिब्बे में
ढूंढेगा बचा हुआ कोई टुकड़ा
आशा भर कर मन में
उसकी सुबह भूख से शुरू होती है
भूख पर भी ख़त्म
पहले उसको रंग दूं
भात-रोटी  के रंग से
ठहरो, फिर मैं भी मना लूं होली !

वह मार डाला गया था
पुलिस की हिरासत में
मिली नहीं थी लाश भी
मां रोती रही पीटपीट कर छाती
पत्नी सदमे से रो भी नहीं पाई
पहले ले आता हूँ कोई ऐसा रंग
जो रोती हुई मां को चुप करा दे
ठहरो, फिर मैं भी मना लूं होली !

अभी अभी तो मरा था वह सीमा पर
जब हम सो रहे थे चैन से
और वह तो तब मर था
जब हम सपरिवार देख रहे थे
नई रिलीज़ फिल्म
पहले ले आता हूँ कोई ऐसा रंग
जो उस जवान की दूधमुंही बेटी के लिए गढ़ दे पिता
ठहरो, फिर मैं भी मना लूं होली !


(हर साल सैकड़ो लोग पुलिस की हिरासत में मारे जाते हैं बिना न्याय के , कई बार बिना अपराध के, हर साल हम सैकड़ो जवानों को खो देते हैं सीमाओं पर , सीमाओं के भीतर , कितने ही लोग हमारे आसपास भूखे सोते हैं. इनके लिए त्यौहार के क्या मायने हैं !)



गुरुवार, 7 मार्च 2019

बसंत




1. 

खिले हुए फूल 
धीरे धीरे मुरझा जायेंगे 
इनके चटक रंग 
उदासी में बदल जायेंगे 
बसंत की नियति है 
पतझड़
फिर भी बसंत लौटता है 
अगले बरस . 

2.

आम पर 
जब लगती हैं 
मंजरियाँ 
उन्हें मालूम होता है 
कुछ ही मुकम्मल हो पाएंगी 
अधिकाँश झड जायेंगी 
अपरिपक्व 
फिर भी मंजरियाँ महकती हैं 
हवाओं में . 


3. 
वह जो सुबह सवेरे 
साइकिल पर अखबार लादे 
तीसरी चौथी मंजिल तक फेंकता है अखबार
उसपर कहाँ असर होता है 
बसंत की मादक हवाओं का 
उसे फूलों पर मंडराते भौरे नहीं दीखते 
उसके लिए बसंत
ग्रीष्म, शरद या शिशिर से भिन्न नहीं 
कोई खबर भी नहीं 
फिर भी वह
गुनगुनाता है प्रेम गीत. 

************