रोटियाँ गोल ही क्यों होनी चाहिए
यह बात मुझे आज तक समझ नहीं आई
जबकि रोटियों को खाना होता है
छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़ कर
रोटियों को गोल बेलने में
शताब्दियों से भय जी रही औरतों ने
क्यों नहीं उठाई आवाज़
यह बात भी मुझे आज तक समझ नहीं आई
जबकि रोटियों के गोल होने या न होने से
नहीं बदलता , न ही संवर्धित होता है उसका स्वाद
रोटियों के गोल बेलने का दवाब
लड़कियों पर होता है शायद बचपन से
और उतना ही कि
उंनकी नज़रें नहीं उठें ऊपर
उनके कदम नहीं उठें इधर उधर
किताबों के ज्ञान से कहीं अधिक मान
आज भी दिया गया है
रोटियों के गोल होने को
चाहे स्त्रियाँ उड़ा ही रही हो जहाज़,
दे रही हो नए नए विचार
यहाँ तक कि कई बार स्वयं स्त्रियाँ भी
बड़ा गर्व करती हैं अपने रोटी बेलने की कला पर !
जबकि गोल रोटी को देख मुझे
हर बार लगता है जैसे बेड़ियों में जकड़ी स्त्री खड़ी हो सामने !
वाह
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