सरोकार
गुरुवार, 20 फ़रवरी 2025
गालियां खाने वाली स्त्रियाँ
मंगलवार, 18 फ़रवरी 2025
मायके न लौटने वाली स्त्रियाँ
कुछ स्त्रियाँ
कभी नहीं लौटतीं मायके
जब भी वापसी का कदम उठाती हैं
उनकी स्मृतियों में कौंध उठता है
माँ का बेबस चेहरा
पिता की घृणा और तिरस्कार
वे बढ़े हुये कदमों को लेती हैं समेट
अपने भीतर खोल में कछुए की तरह ।
वे अपने मन की कन्दराओं में
छुपे रहस्यों के उदघाटन भर से
जाती हैं काँप
छिन जाती है उनके चहरे की कोमलता
और तानों के तानों से डरकर
बेसुरा हो जाता है उनके जीवन का संगीत
वे बढ़े हुये कदमों को लेती हैं समेट
अपने भीतर खोल में कछुए की तरह ।
मायके से संवेदनात्मक जुड़ाव
विषय है कहानियों का
कुछ स्त्रियाँ कहानियों को कम
और वास्तविकता को अधिक जीती हैं ।
वास्तविकता में जीने वाली स्त्रियाँ
जो अपनी पीठ की खाल को कर लेती हैं मोटी
जो अपने मन के भीतर बना लेती हैं खोल
लौट कर भी नहीं लौटती हैं
अपने मायके ।
धीरे धीरे खत्म हो जाएगा बसंत - 2
बसंत धीरे धीरे
हो जाएगा खत्म
उससे पहले खत्म होगा
जीवन में प्रेम ।
कहते हैं
बहुत कम बोलती है वह लड़की
और जब बोलती है तो
झड़ता है कोई रातरानी
अंधेरे के सन्नाटे में
जब चुप हो जाएगी वह लड़की
जब हो जाएंगे महीने उसके बोले
बसंत धीरे धीरे आना कम कर देगा
शायद तुम नहीं जानते
बसंत के आने और लड़की के बोलने से ही तो है
दुनियाँ इतनी खूबसूरत !
कहते हैं
उसके पलकों पर
बसते हैं मोती
छूने से पहले ही
टपक पड़ते हैं निर्झर
जब उसके आँखों का पानी
बन जाएगा पत्थर पककर
बसंत आना कम कर देगा ।
शायद तुम नहीं जानते
बसंत के आने और आँखों के नम रहने से ही तो है
दुनियाँ इतनी खूबसूरत ।
नाम ही तो है बसत ।
सोमवार, 17 फ़रवरी 2025
धीरे धीरे खत्म हो जाएगा बसंत
धीरे धीरे
कम हो रहे हैं
बसंत के दिन।
धीरे धीरे
कम हो रहे हैं
सर्दियों के दिन ।
धीरे धीरे
कम हो रहे हैं
बरसात के दिन।
धीरे धीरे
गरम होकर धरती
उबल रही है
अधिक दिनों तक ।
वैसे कम तो हो रहे हैं
बरसात के दिन
लेकिन बरस रहे हैं बादल
फट फट कर
नदियां तोड़ रही हैं
किनारों की मर्यादा
बांध का सब्र
दिनों दिन हो रहा है ढीला
पहाड़ों की तरह ।
जितनी भी कोशिश करते हैं हम
उतनी ही अधिक बिगड़ रहा है
मौसम का मिजाज
बढ़ रही है
धरती की खीझ।
एक दिन आयेगा ऐसा भी
जब एक ही मौसम हुआ करेगा
गर्मी, गर्मी और गर्मी
तब फूल खिलते ही मुरझाया करेंगे
प्रेम के मौसम का इंतजार भी
हो जायेगा खत्म
जैसे धीरे धीरे खत्म हो रहा है बसंत।।