मंगलवार, 18 मार्च 2025

एकाकीपन



जब कोई सुबह

जगाए नहीं तुम्हें 

मेरी तरह

जब कोई रात में

प्रतीक्षा न करे 

आने की 

तेरी तरह

जब कोई गलतियों पर 

न हो नाराज 

तेरी तरह

जब कोई टोके नहीं

घर से बाहर निकलते हुए 

मेरी तरह

यह आजादी नहीं

एकाकीपन है ! 

बचा लो मुझे

इस एकाकीपन से 

बचा लूंगा तुम्हें भी 

इस एकाकीपन से ! 


शुक्रवार, 7 मार्च 2025

कैसे कोई प्रेम जता सकता है !

 सच कहता हूँ 

मैंने तुमसे प्यार नहीं जताया 

जब से मिला हूँ तुमसे 

मुझे लगी तुम धरती सी 

धैर्य से भरी 

मुझे लगी तुम पानी सी 

प्रवाह से भरी  

मुझे लगी तुम अग्नि सी 

तेज से भरी 

मुझे लगी आकाश सी 

विस्तार से भरी 

मुझे लगी तुम हवा सी 

गति से भरी 


अब बताओ भला 

जब कम पड़ रहे हों शब्द

जब हल्के लग रहे हों आभार के वचन 

कैसे कोई प्रेम जता सकता है 

उनके प्रति जिनसे है उसका जीवन, उसका अस्तित्व 


बस इतना ही कहूँगा कि

अब मेरा अस्तित्व है तुमसे ! 

बुधवार, 5 मार्च 2025

स्त्रियों की नींद

गृहणी स्त्रियॉं अक्सर 

सोती कम हैं 

सोते हुये भी वे 

काट रही होती हैं सब्जियाँ 

साफ कर रही होती हैं 

पालक, बथुआ, सरसों

या पीस रही होती हैं चटनी 

धनिये की, आंवले की या फिर पुदीने की । 


कभी कभी तो वे नींद में चौंक उठती हैं 

मानो खुला रह गया हो गैस चूल्हा 

या चढ़ा रह गया हो दूध उबलते हुये 

वे आधी नींद से जागकर कई बार 

चली जाती हैं छत पर हड़बड़ी में 

या निकल जाती हैं आँगन में 

या बालकनी की तरफ भागती हैं कि

सूख रहे थे कपड़े और बरसने लगा है बादल !


कामकाजी स्त्रियों की नींद भी 

होती है कुछ कच्ची सी ही 

कभी वे बंद कर रही होती हैं नींद में 

खुले ड्रॉअर को 

तो कभी ठीक कर रही होती हैं आँचल 

सहकर्मी की नज़रों से 


स्त्रियॉं नींद में चल रही होती हैं 

कभी वे हो आती हैं मायके 

मिल आती हैं भाई बहिन से 

माँ की गोद में सो आती हैं 

तो कभी वे बनवा आती हैं दो चोटी 

नींद में ही 

कई बार वे उन आँगनों में चली जाती हैं 

जहां जानाहोता था  मना 


स्त्रियों की मुस्कुराहट 

सबसे खूबसूरत होती है 

जब वे होती हैं नींद में 

कभी स्त्रियों को नींद में मत जगाना 

हो सकता है वे कर रही हों 

तुम्हारे लिए प्रार्थना ही ! 


रविवार, 2 मार्च 2025

प्रेम

 माफ करना प्रिय

मैं नहीं तोड़ पाया 

तेरे लिए चांद

देखो न मैंने बनाई है रोटी

लगभग गोल सी

चांद के आकार सी 

आओ खा लो न! 


माफ करना प्रिय

मैं नहीं जोड़ पाया इतने पैसे

कि गढ़वा दूं तेरे लिए सोने के कंगन

देखो न मैं खड़ा हूं तुम्हारे संग

धूप में छांव बन कर

ताकि मलिन न पड़े तेरे चेहरे की कांति! 


तुम खाई कि नहीं ! 

थक तो नहीं गई हो ! 

नींद आई कि नहीं बीती रात

यह रंग पहनो आज कि सुंदर लगेगी

मेरे पास ये छोटी छोटी ही बातें प्रिय

माफ करना कि बड़ी बातें मुझे करनी नहीं आती ! 


प्रेम करता हूं, यह कह न सका तो कह भी नहीं पाऊंगा 

बदल तो नहीं पाऊंगा,

ऐसे में कहो जीवन भर क्या निभाओगी 

इस नीरस व्यक्ति के साथ! 


सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

अनुत्तरित प्रश्न

 यह प्रश्न अब तक है 

अनुत्तरित्त कि

क्यों बार बार छले जाते हैं 

निश्चल हृदय वाले लोग ! 


जो झूठ बोलना नहीं जानते 

अक्सर झूठ से हार जाते हैं 

क्यों औंधे मुंह गिर जाता है

उनका सच !


मंच से अट्टाहास करता विधर्मी 

देखा गया अक्सर 

जबकि ईमानदार लोग रहते हैं 

सहमे खड़े होते हैं 

हाशिये पर ! 


कभी इन प्रश्नों का उत्तर मिले तो 

बताइएगा जरूर !