सोमवार, 20 अक्टूबर 2014

विज्ञापन बनाते हुए


वातानुकूलित
सम्मेलन कक्ष में
बनायी जाती है रणनीति
कैसे छला जाना है
संवेदनाओं को
व्यापक रूप से,
कहा जाता है
उसे 'ब्रीफ'


पहुंचना
होता है
हर घर की जेब तक
कहा जाता है
छूना है
दिलों को


करनी है
संबंधों की बात
दिखानी है
रिश्तों की अहमियत
वास्तव में
लक्ष्य है
इस फेस्टिव सीज़न
जमा पूंजी में सेंध


संस्कृति
और परम्पराएं
तो बस साधन हैं
साध्य है
असीम विस्तार
नए बाज़ार
नए एम ओ यू
कुछ विलय
कुछ अधिग्रहण

विज्ञापन बनाते हुए 
करने  होते  हैं  
कई कई समझौते
हर बार स्वयं से

8 टिप्‍पणियां:

  1. हाँ, मायाजाल गढ़ना भी सरल कहाँ होता है ? सही रेखांकन किया है

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - मंगलवार- 21/10/2014 को
    पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,

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  3. अरुण जी आपने सच और सच को सुन्दर तरीके से कहा है ।

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  4. लक्ष्य को बाखूबी देख लिया आपने ... असल में वही कहानी है जेब कैसे काटी जाए ....दीपवाली की हार्दिक बधाई आपको ...

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  5. आपको ब्लॉग पर सक्रिय देख अच्छा लग रहा है.... उम्मीद है आपकी ज़िंदगी में अब सब कुशल है...

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  6. Bilkul durust farmaya aapne....sach yahi hai. Deewali ki shubhkamnaayein aapko !!

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