वादों पे वादों की भरमार देखिये
सिसायत में हो रहे चमत्कार देखिये
रोटी नहीं सबकी थाली में फिर भी
वज़ीरे आज़म के माथे अहंकार देखिये
दे रहे ज़ख्म अब मंदिर औ मस्जिद
नए नए ईश्वर का अवतार देखिये
ख़बरों में ढूंढें नहीं मिलेगा आदमी
किसी भी दिन कोई अखबार देखिये
ताले जड दिए हैं हमने दरवाजों पर
सांकल बजा लौट गया इन्तजार देखिये
सूखे आसमा भी बरसेंगे एक दिन
गा रहा कहीं कोई मल्हार देखिये
(बिना तकनीकी ज्ञान और इसके पक्ष को देखते हुए ग़ज़ल की कोशिश)
वाह
जवाब देंहटाएंग़ज़लनुमा रचना है यह किन्तु ग़ज़ल नहीं है अरुण जी! लेकिन जो बात आपने कहनी चाही है, उसमें आप सफल रहे हैं, जो इस रचना की सफलता है!
जवाब देंहटाएंजी सलिल जी । ग़ज़ल लिखना विज्ञान है। तकनीक है। कठिन भी ।
हटाएंबहुत खूब ... इसको बेहतरीन और लाजवाब शेरोन का संकलन भी कह सकते हैं ... अपनी बात को बेबाकी से कह रहा है हर शेर ...
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