वे दे रहे हैं शुभकामनाएं
तरह तरह के माध्यमों से
कुछ अखबारों के जरिये
कुछ टेलीविज़न के माधयम से
कुछ सोशल मीडिया के जरिये
कुछ आपके मोबाइल में सदेशों के माध्यम से
और कुछ तो इन सभी माध्यमों से
और तो और सड़कें, रेल, बस, जहाज सब पटे पटी हैं
शुभकामनाओं के पोस्टरों, बैनरों, होर्डियों से।
उल्लेखनीय यह है कि
शुभकामनाएं वे दे रहे हैं
जो चूस रहे हैं खून
उनकी ओर से भी आ रही हैं शुभकामनाएं
जो तौल रहे हैं जेब
वे कहाँ पीछे हैं शुभकामनाएं देने में
जो बेच रहे हैं मौत !
एक दिन यही होना है कि
छीन लेंगी ये आदमी से उसकी हंसी
हवा को कर देंगी जहरीली
घोंट देंगी दम
नदियों में भर देंगी तेज़ाब
पहाड़ों में बारूद
और आदमी शुभकामनाओं के बोझ के नीचे
मिलेगा दबकर मरा हुआ .
शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंकहना नहीं हुआ मतलब।
ब्लॉग बुलेटिन टीम और मेरी ओर से आप सब को नव संवत्सर, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा व चैत्र नवरात्रि की हार्दिक मंगलकामनाएँ |
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 06/04/2019 की बुलेटिन, " नव संवत्सर, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा व चैत्र नवरात्रि की हार्दिक मंगलकामनाएँ “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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जवाब देंहटाएंसत्य लिखा है ... स्पष्ट और सटीक अरुण जी ...
जवाब देंहटाएंये शुभकामनाएँ हैं ही इसीलिये कि बंदा ज़िंदा रहे और झेलता रहे वो सबकुछ जो उसे ज़हर के तौर पर नसों में दिया जा रहा है. आपके चिरपरिचित अंदाज़ की क्रांतिकारी रचना है अरुण जी! किंतु कुछ टन्कण की कुछ त्रुटियाँ रह गयी हैं. कृपया सुधार लें.
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