बुधवार, 29 मई 2019

मिट्टी

मिट्टी
खुद को मिटा कर भी 
नहीं मिटती 
वह धर  लेती है 
गढ़ लेती है 
नया आकार , नया रूप 

मिट्टी 
आग में तप कर 
पत्थर हो जाती है 
फिर भी ठंढी रखती है 
अपनी तासीर 
स्वाद रखती है 
अपनी जिह्वा पर 

मिट्टी 
जितना सोखती है 
धूप अपने भीतर 
उतनी ही सोंधी होती है 
उसकी महक 

ध्वस्त हो जायेंगे ये भवन ,
गिर पड़ेंगी  ये अट्टालिकाएं 
मिट जाएँगी सीमायें और संस्कृतियां 
बस बची रहेगी मिट्टी
सदा सदा के लिए।  

10 टिप्‍पणियां:

  1. किसी को लगता है शायद उसकी मिट्टी ज्यादा महंगी बिकेगी :)

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 29/05/2019 की बुलेटिन, " माउंट एवरेस्ट पर मानव विजय की ६६ वीं वर्षगांठ - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. मिट्टी सदा के लिए...
    बढ़िया!

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  4. मिट्टी
    खुद को मिटा कर भी
    नहीं मिटती
    वह धर लेती है
    गढ़ लेती है
    नया आकार , नया रूप

    बेहद प्यारी रचना....

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  5. ध्वस्त हो जायेंगे ये भवन ,
    गिर पड़ेंगी ये अट्टालिकाएं
    मिट जाएँगी सीमायें और संस्कृतियां
    बस बची रहेगी मिट्टी
    सदा सदा के लिए। .. सही कहा आपने बेहतरीन रचना

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  6. बहुत सुंदर
    एक भजन याद आ गया, नानी गाती थीं -
    "क्या तन माँजता रे ! एक दिन माटी में मिल जाना"

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  7. माटी ही एक शाश्वत सत्य है। बहुत सुंदर प्रस्तुति...

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  8. This is Very very nice article. Everyone should read. Thanks for sharing. Don't miss WORLD'S BEST

    GtCarStuntsGame

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  9. मिटटी की महिमा अपरम्पार है ... इसी से मनुष्य जन्म भी लेता है साँसें भी ... और अंत इसी में मिल कर होता है ... हमेशा की तरह गहरी रचना है ....

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  10. मिट्टी
    खुद को मिटा कर भी
    नहीं मिटती
    वह धर लेती है
    गढ़ लेती है
    नया आकार , नया रूप
    रचना का शीर्षक पूरी रचना पर छाया हुआ है...बहुत सुन्दर

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