मंगलवार, 14 जुलाई 2020

अंक

1.
बच्चे अब
अपने मृदुल मुस्कान
व्यवहार कुशलता
और सामाजिक सरोकारों से नहीं बल्कि
मापे जाते हैं
अंकों और अंकपत्रों से

2.
बच्चे अब
मानव नहीं  रह गए हैं
बदल गए हैं
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस ) के औजार
या फिर कहिये हथियार में .

3.
घरों में बदल गई है परिपाटी
दीवारों पर संजाने के चित्र
वह टांगी जाती हैं
तरह तरह के मेडल, प्रमाणपत्र और ट्राफियाँ

4.
अंत में
वही बच्चे बुजुर्गों को पार कराते हैं सड़क
पकड़ लेते हैं पड़ोसियों का भारी थैला
आते जाते करते हैं अभिवादन
जिनके अंकपत्र नहीं होते औरों की तरह
वजनदार और चमकदार !

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (15-07-2020) को     "बदलेगा परिवेश"   (चर्चा अंक-3763)     पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  2. जी हां मापदंड बदल गए हैं बचपन कहीं खो गया है

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  3. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 16 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


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  4. सही सटीक यथार्थवादी चिंतन ‌।
    सार्थक सृजन।

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  5. बहुत ही सटीक सुंदर रचना आदरणीय सर। आज की शिक्षा पद्धति पर बहुत कड़ी मार। मैं एक विद्यार्थी हो के के नाते इस कविता को हृदय से महसूस कर सकती हूं यद्यपि मुझे इस दुर्भाग्य पूर्ण आंकलन का सामना नहीं करना पड़ा है। साथ ही साथ हमारी शिक्षा पद्धति इतनी भृष्ट है की इन अंकों को हासिल करने का तरीका भी सही नही होता।
    एंटी सुंदर रचना के लिए हृदय से आभार। मैं ने भी अभी आभो एक ब्लॉग का आरम्भ किया है। कृपया आप भी आकर मेरी कुछ रचनाएँ पढ़िए। आपके दो शब्द प्रोत्साहन के लिए अनुग्रहित रहूँगी। अपने ब्लॉग का लिंक कॉपी नहीं कर पा रही हूँ परन्तु यदि आप मेरव नाम पर क्लिक करें तो वो आपको मेरे प्रोफाइल तक ले जाएगा। वहाँ मेरे ब्लॉग के नाम "काव्यतरंगिनी" पर क्लिक करियेगा तो आप मेरे ब्लोफ पर पहुंच जाएंगे।
    धन्यवाद।

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