मंगलवार, 1 नवंबर 2011

दिवाली के बाद : कुछ चित्र


१.

दीप सब बुझ चुके हैं
तेल सब हो गए हैं ख़त्म
बाती जल चुकी है आधी
कैसी यह उदासी (?) 

२.
सड़क के उस ओर के
कुछ बच्चे 
सुबह सुबह बीन रहे हैं
अधजले पटाखे, फुलझड़ियाँ
दिन भर सुखायेंगे उन्हें
शाम को होगी 
उनकी दिवाली (शायद) 

३.
घर से बाहर 
पडी हैं पिछले साल की 
लक्ष्मी गणेश की मूर्तियाँ 
विसर्जन की प्रतीक्षा में 
बाबूजी गौर से देख रहे हैं 
(ढूंढ रहे हैं कुछ साम्य )



31 टिप्‍पणियां:

  1. सूक्ष्म दृष्टि .. अवलोकन

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  2. बहुत गहराई है इन छोटी छोटी सी दिखने वाली पंक्तियों में.
    बधाई

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  3. बहुत सुन्दर शब्दचित्र!
    छठपूजा की शुभकामनाएँ!

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  4. २.
    सड़क के उस ओर के
    कुछ बच्चे
    सुबह सुबह बीन रहे हैं
    अधजले पटाखे, फुलझड़ियाँ
    दिन भर सुखायेंगे उन्हें
    शाम को होगी
    उनकी दिवाली (शायद)
    Aah!

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  5. तीनों अवलोकन गहरे हैं, सूक्ष्म हैं और पूर्ण संप्रेषणीय हैं।

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  6. बहुत सूक्ष्म अवलोकन से आप जो भी प्रस्तुत करते हैं
    वह मार्मिकता का अहसास करा देता है.
    हृदयस्पर्शी लेखन के लिए आभार,अरुण भाई.

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  7. सुक्ष्म ऑवज़र्वेशन और विशाल अर्थ समेटती रचना।

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  8. घर से बाहर
    पडी हैं पिछले साल की
    लक्ष्मी गणेश की मूर्तियाँ
    विसर्जन की प्रतीक्षा में
    बाबूजी गौर से देख रहे हैं
    (ढूंढ रहे हैं कुछ साम्य )

    बाबू जी का मूर्ति को गौर से देखना जीवन के प्रति दृष्टिकोण और वास्तविकता से अवगत करवाता है ....आपकी सोच को सलाम ..और कीबोर्ड को प्रणाम ....जहाँ से ऐसी रचनाएँ हम तक पहुँचती हैं और हमें झकझोर देती हैं .....!

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  9. बहुत ही गहन भाव समेटे ...बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  10. आप और आपकी क्षणिकाएं दोनों ही लाजवाब हैं :-)

    फुर्सत मिले तो हमारे ब्लॉग 'जज़्बात' की नयी पोस्ट ज़रूर देखें|

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  11. सभी क्षणिकाएं गहरी बात लिए .... दिवाली के बाद की उदासी लिए ...

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  12. गहनावलोकन....
    बहुत सुन्दर सर,
    सादर बधाई.

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  13. और उतर जाते हैं नज़रों से, दीवारों से, छज्जों से ... दिवाली के दिन.
    बहुत बढ़िया शब्द!

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  14. सभी क्षणिकाएं भावों की बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति..

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  15. दीपावली के बाद का चित्रण
    प्रभावशाली रहा ...
    अभिवादन .

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  16. प्रिय बंधुवर अरुण चन्द्र रॉय जी
    सस्नेहाभिवादन !

    दीपावली : कुछ चित्र ने जितना प्रभावित किया , उससे भी कुछ अधिक छाप छोड़ी है दिवाली के बाद : कुछ चित्र ने …
    आप निरंतर उत्तरोतर श्रेष्ठ रचनाएं दे रहे हैं …
    सचमुच लेखनी स्वयं धन्य हो जाती है किसी सुलझे समर्थ हाथ में पहुंच कर …

    तीनों क्षणिकाएं मार्मिक और मनन योग्य हैं … साधुवाद !

    बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  17. घर से बाहर
    पडी हैं पिछले साल की
    लक्ष्मी गणेश की मूर्तियाँ
    विसर्जन की प्रतीक्षा में
    बाबूजी गौर से देख रहे हैं
    (ढूंढ रहे हैं कुछ साम्य )

    अद्भुत कल्पना, जो एक सच्चाई भी है।
    आपका काव्य-कैनवास बहुत विस्तृत है।

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  18. ओह, विडंबनाएं जो पसरी हैं हमारे चारों ओर पर हमारी नजर नहीं जाती...कविता वैसे मर्म छू जाती है..

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  19. सड़क के उस ओर के
    कुछ बच्चे
    सुबह सुबह बीन रहे हैं
    अधजले पटाखे, फुलझड़ियाँ
    दिन भर सुखायेंगे उन्हें
    शाम को होगी
    उनकी दिवाली (शायद)

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