१.
दीप सब बुझ चुके हैं
तेल सब हो गए हैं ख़त्म
बाती जल चुकी है आधी
कैसी यह उदासी (?)
२.
सड़क के उस ओर के
कुछ बच्चे
सुबह सुबह बीन रहे हैं
अधजले पटाखे, फुलझड़ियाँ
दिन भर सुखायेंगे उन्हें
शाम को होगी
उनकी दिवाली (शायद)
३.
घर से बाहर
पडी हैं पिछले साल की
लक्ष्मी गणेश की मूर्तियाँ
विसर्जन की प्रतीक्षा में
बाबूजी गौर से देख रहे हैं
(ढूंढ रहे हैं कुछ साम्य )
सूक्ष्म दृष्टि .. अवलोकन
जवाब देंहटाएंbahut gahre bhaw......
जवाब देंहटाएंgehen kshanikayen.
जवाब देंहटाएंबहुत गहराई है इन छोटी छोटी सी दिखने वाली पंक्तियों में.
जवाब देंहटाएंबधाई
उफ़ कुछ सत्य ऐसे भी .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर शब्दचित्र!
जवाब देंहटाएंछठपूजा की शुभकामनाएँ!
२.
जवाब देंहटाएंसड़क के उस ओर के
कुछ बच्चे
सुबह सुबह बीन रहे हैं
अधजले पटाखे, फुलझड़ियाँ
दिन भर सुखायेंगे उन्हें
शाम को होगी
उनकी दिवाली (शायद)
Aah!
तीनों अवलोकन गहरे हैं, सूक्ष्म हैं और पूर्ण संप्रेषणीय हैं।
जवाब देंहटाएंsookshm avlokan ,sundar bimb,ankahi bahut si baten...
जवाब देंहटाएंबहुत सूक्ष्म अवलोकन से आप जो भी प्रस्तुत करते हैं
जवाब देंहटाएंवह मार्मिकता का अहसास करा देता है.
हृदयस्पर्शी लेखन के लिए आभार,अरुण भाई.
सुक्ष्म ऑवज़र्वेशन और विशाल अर्थ समेटती रचना।
जवाब देंहटाएंघर से बाहर
जवाब देंहटाएंपडी हैं पिछले साल की
लक्ष्मी गणेश की मूर्तियाँ
विसर्जन की प्रतीक्षा में
बाबूजी गौर से देख रहे हैं
(ढूंढ रहे हैं कुछ साम्य )
बाबू जी का मूर्ति को गौर से देखना जीवन के प्रति दृष्टिकोण और वास्तविकता से अवगत करवाता है ....आपकी सोच को सलाम ..और कीबोर्ड को प्रणाम ....जहाँ से ऐसी रचनाएँ हम तक पहुँचती हैं और हमें झकझोर देती हैं .....!
बहुत मार्मिक दृश्य उकेर दिए हैं ..
जवाब देंहटाएंसूक्ष्म और पूर्ण .
जवाब देंहटाएंगलत वक्त पर सही कविता
जवाब देंहटाएंise kahte hain drishti... baad ke drishyon per koi kahan sochta
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहन भाव समेटे ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंआप और आपकी क्षणिकाएं दोनों ही लाजवाब हैं :-)
जवाब देंहटाएंफुर्सत मिले तो हमारे ब्लॉग 'जज़्बात' की नयी पोस्ट ज़रूर देखें|
सभी क्षणिकाएं गहरी बात लिए .... दिवाली के बाद की उदासी लिए ...
जवाब देंहटाएंगहनावलोकन....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सर,
सादर बधाई.
बेहतरीन....
जवाब देंहटाएंऔर उतर जाते हैं नज़रों से, दीवारों से, छज्जों से ... दिवाली के दिन.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया शब्द!
खूबसूरत .. बहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंसभी क्षणिकाएं भावों की बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंदीपावली के बाद का चित्रण
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली रहा ...
अभिवादन .
जवाब देंहटाएं♥
प्रिय बंधुवर अरुण चन्द्र रॉय जी
सस्नेहाभिवादन !
दीपावली : कुछ चित्र ने जितना प्रभावित किया , उससे भी कुछ अधिक छाप छोड़ी है दिवाली के बाद : कुछ चित्र ने …
आप निरंतर उत्तरोतर श्रेष्ठ रचनाएं दे रहे हैं …
सचमुच लेखनी स्वयं धन्य हो जाती है किसी सुलझे समर्थ हाथ में पहुंच कर …
तीनों क्षणिकाएं मार्मिक और मनन योग्य हैं … साधुवाद !
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
घर से बाहर
जवाब देंहटाएंपडी हैं पिछले साल की
लक्ष्मी गणेश की मूर्तियाँ
विसर्जन की प्रतीक्षा में
बाबूजी गौर से देख रहे हैं
(ढूंढ रहे हैं कुछ साम्य )
अद्भुत कल्पना, जो एक सच्चाई भी है।
आपका काव्य-कैनवास बहुत विस्तृत है।
बहुत गहन शब्दचित्र...
जवाब देंहटाएंओह, विडंबनाएं जो पसरी हैं हमारे चारों ओर पर हमारी नजर नहीं जाती...कविता वैसे मर्म छू जाती है..
जवाब देंहटाएंachchhe lage shbd chitr
जवाब देंहटाएंसड़क के उस ओर के
जवाब देंहटाएंकुछ बच्चे
सुबह सुबह बीन रहे हैं
अधजले पटाखे, फुलझड़ियाँ
दिन भर सुखायेंगे उन्हें
शाम को होगी
उनकी दिवाली (शायद)