सोमवार, 21 मई 2012

माल रोड, शिमला



गोरखा युद्ध से लौटे
अपने सेनापति के लिए
ब्रिटिश साम्राज्य का
उपहार था शिमला
जिसे कालांतर में बनाई  गई 
गुलाम भारत की  ग्रीष्मकालीन राजधानी

कहा जाता है
कालों को अनुमति नहीं थी
माल रोड तक पहुचने की
और गुलामी का प्रतीक
माल रोड शिमला में
अब भी पाए जाते हैं कुली
जो अपनी झुकी हुई पीठ पर
लादते हैं अपने से दूना वज़न तक
जीवन रेखा हैं ये
इस शहर की

पीठ पर
लाते हैं उठा
माल रोड की चमक दमक
रौनक
और किनारे पडी
किसी लकड़ी की बेंच के नीचे बैठ
सुस्ताते पाए जाते हैं
आँखों में सन्नाटा लिए


आँखे नहीं मिलाते हैं
ये कुली
क्योंकि झुकी हुई पीठ से
आदत हैजमीन को देखने की
ख़ुशी से भरे चेहरों के बीच
अकेले होते हैं
ये कुली

जब भी आता है 
जिक्र
माल रोड या  शिमला का
नहीं होता है जिक्र  पीठ पर वजन उठाये
इन कुलियों का
इस चमक के पीछे
घुप्प अँधेरा होता है
इनकी जिंदगी में

दासता के पदचिन्ह
और गहरे होते जाते हैं
जब भी उठाते हैं
अपनी पीठ पर वजन
और मापते हैं पहाड़ की ऊंचाई,
ये कुली.

21 टिप्‍पणियां:

  1. दासता के पदचिन्ह
    और गहरे होते जाते हैं
    जब भी उठाते हैं
    अपनी पीठ पर वजन
    और मापते हैं पहाड़ की ऊंचाई,
    ये कुली.
    सार्थकता लिए सटीक लेखन ...आभार ।

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  2. शिमला में कुलियों का प्रचलन बहुत पहले से है. शायद वाहन की दुरूह भौगोलिक संरचना जो अन्य हिल स्टेशनों से काफी भिन्न और उतार चढ़ाव वाली है. उनकी संवेदनाओं के प्रति ध्यानाकर्षण महत्वपूर्ण है. बधाई.

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  3. ना जाने ऐसे कितने सच वक्त की गहराइयों मे छुपे पडे हैं।

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  4. दासता के पदचिन्ह
    और गहरे होते जाते हैं
    जब भी उठाते हैं
    अपनी पीठ पर वजन
    और मापते हैं पहाड़ की ऊंचाई,
    ये कुली.
    Aah!

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  5. धूप्प अँधेरे को प्रकाश में लाती कवि की संवेदना को नमन!

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  6. दासता के पदचिन्ह
    और गहरे होते जाते हैं
    जब भी उठाते हैं
    अपनी पीठ पर वजन
    और मापते हैं पहाड़ की ऊंचाई,
    ये कुली.
    न जाने कितने क्षेत्र हैं जो दासता की उस दास्ताँ को अब तक सहेजे हुए है और हम जहां खड़े होकर गर्वित होते हैं
    बहुत सूक्ष्म रचना

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  7. इस तरह के कुली (पिट्ठू ) काफी पहाड़ी दर्शनीय स्थलों पर देखे जाते हैं.
    प्रभावशाली वर्णन

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  8. मज़बूत लोगों को सहारा देते, बेसहारों का बढ़िया चित्रण !

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  9. दासता के पदचिन्ह
    और गहरे होते जाते हैं
    जब भी उठाते हैं
    अपनी पीठ पर वजन
    और मापते हैं पहाड़ की ऊंचाई,
    ये कुली.

    ....बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी प्रस्तुति....

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  10. शिमला प्रवास में आपने वहां की इस व्यथा का बड़ा ही सूक्ष्म अध्ययन किया है। कविता में मालरोड के कुली की पीड़ा झलक रही है .... मर्मस्पर्शी ...

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  11. दासता के पदचिन्ह
    और गहरे होते जाते हैं
    जब भी उठाते हैं
    अपनी पीठ पर वजन
    और मापते हैं पहाड़ की ऊंचाई,
    ये कुली.

    बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,, सार्थक मर्मस्पर्शी चित्रण ,,,,,,,

    RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....

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  12. ACHCHHEE KAVITA KE LIYE AAPKO BADHAAEE AUR
    SHUBH KAMNA .

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  13. दासता के पदचिन्ह
    और गहरे होते जाते हैं
    जब भी उठाते हैं
    अपनी पीठ पर वजन
    और मापते हैं पहाड़ की ऊंचाई,
    ये कुली.bahut achche......

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  14. गहरी ... संवेदनशील ... कुछ सड चुके नियमों की दास्ताँ लिखी है ... इंसानी दर्द कों उकेरा है इस प्रभावी रचना में अरुण जी ...

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  15. आँखे नहीं मिलाते हैं
    ये कुली
    क्योंकि झुकी हुई पीठ सेआदत हैजमीन को देखने की
    ख़ुशी से भरे चेहरों के बीच
    अकेले होते हैं
    .....बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना अरुण जी आभार !

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  16. अपनी नियति से ऊपर जाना वह भी अकेले ,बिना किसी सहायता के बडी कठिन व लम्बी प्रक्रिया है । कुलियों की व्यथा को बारीकी से देखा है आपने ।

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  17. भारत के शिखरों में जी रहा है अमानवीय चरित्र, संवेदनशील।

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  18. shimla ki mall road ki yaadien samet laae aap... aur likh bhi dee...
    wakai haalaat bahut kharab the... dararein bhari gai, par abhi bhi nishaan baaki hai...

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  19. marmik hai kavita.. sachmuch shrm ka sahi moolyankan nhi hua hamare desh me.. yah dukhad hai..

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