१.
रुपया
गिर रहा है
लगातार
होकर कमजोर
वह रुपया जो
आम जनता की जेब में
नहीं है, फिर भी
रोटी आधी हो रही है
नमक कम हो रहा है
उसकी थाली से,
फिसल रहा है
उसकी जेब से
२.
रूपये से
खरीदना है
पेट्रोल, गाड़ियाँ
कपडे, घड़ियाँ
टीवी, इंटरनेट,
हवाई जहाज़ और उसकी टिकटें
ई एम आई और क़र्ज़
आत्मनिर्भरता नहीं
खरीद सकता
अपना रुपया
बहुत खूब ... रूपये की कमजोरी का आम आदमी से लेना होता तो वो सड़कों पर नहीं उतारते ... सरकार जानती है चोरी से जेब कैसे काटी जाती है आम आदमी की .. उसे पता ही नहीं चलता ...
जवाब देंहटाएंआत्मनिर्भरता नहीं
जवाब देंहटाएंखरीद सकता अपना रुपया
इसलिए शायद हो रहा है
कमजोर
गहन भाव लिए सार्थक शब्द रचना ...आभार ।
सच कहा है आपने, सब तो निर्भरता के जाल में उलझ जाना चाहते हैं।
जवाब देंहटाएंआत्मनिर्भरता डॉलर या पोंड से भी नहीं खरीदी जा सकती..
जवाब देंहटाएंस्वालंबन की जरुरत है...:)
वैसे आपकी हर रचना जबरदस्त होती है...
रूपये की स्थिति हास्यास्पद हो गई है
जवाब देंहटाएंरुपया....अब तक छप्पन !
जवाब देंहटाएं...और कितने शहीद होंगे !
आत्मनिर्भरता नहीं
जवाब देंहटाएंखरीद सकता
अपना रुपया
गहन अर्थ संजोये सटीक अभिव्यक्ति।
बहुत खूब.... आपके इस पोस्ट की चर्चा आज 24-5-2012 ब्लॉग बुलेटिन पर प्रकाशित होगी... धन्यवाद.... अपनी राय अवश्य दें...
जवाब देंहटाएंअखबार की रद्दी थी, आज बेंचना चाहता था -
हटाएंठीक है -
नहीं बेचूंगा ||
आत्मनिर्भरता नहीं
जवाब देंहटाएंखरीद सकता
अपना रुपया
रुपिया न जाने अपनी महिमा निराली,
इसने तो डूबा दी दुनिया सारी
सचमुच गिरता ही जा रहा है... पता नहीं कितना गिरेगा....
जवाब देंहटाएंरुपया तो जैसे चरित्र हो गया है देश के ने... ने...
सारी... सारी... आगे कहना ठीक नहीं है...
बहुत ही सुंदर रचना सर...
सादर बधाई।
आत्मनिर्भरता नहीं
जवाब देंहटाएंखरीद सकता
अपना रुपया
सार्थक निष्कर्ष आज के परिवेश में
आत्मनिर्भरता नहीं
जवाब देंहटाएंखरीद सकता
अपना रुपया......ekdam sahi likhe......
अरुण जी! जब "आत्मा" मृत हो और "निर्भरता" हिमालय से ऊंची, तो आत्मनिर्भरता की बातें दिवास्वप्न सी ही प्रतीत होती है!! और कविता तो वैसे भी सामवेदअना से परिपूर्ण है!!
जवाब देंहटाएंरुपया
जवाब देंहटाएंगिर रहा है
लगातार
.......बहुत खूब अरुण जी
गिरता रूपया...लिए जा रहा है हमें भी, अपने साथ कहीं नीचे........
जवाब देंहटाएंगहन भाव समेटे रचना.
सादर.
रुपया गिरता जा रहा है,,,,,पेट्रोल,के दाम बढते जा रहे है,,,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति,
MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
गिरता रुपया .....उठती महत्वाकांक्षायें.....गिरते जीवन मूल्य ....
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ती अरुण जी ...!!
ऎसा करें क्या
जवाब देंहटाएंबेचना शुरू रुपया
खरीद पायें तब शायद
आत्मनिर्भरता ।
बड़ा गिरा हुआ निकला यह रुपया भी ...
जवाब देंहटाएंसमसामयिक अच्छी रचना ॥गंभीर चिंतन
जवाब देंहटाएंप्राथमिक अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंsarthak aur satik post.
जवाब देंहटाएंआप की आवाज़ ...हर आम आदमी की पुकार है ..काश!कोई सुन ले ?
जवाब देंहटाएंशुभकामनाये आम आदमी को ,जिसमे हम सब हैं !
आप अर्थशास्त्र को बहुत नज़दीक से समझते हैं, जो आपकी रचनाओं में झलकता है।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सच कहा है आपने अरुण जी!!
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna.
जवाब देंहटाएंएकदम सार्थक और बेहतरीन पोस्ट...
जवाब देंहटाएंरुपया
जवाब देंहटाएंगिर रहा है
बेहतर कविता
बिलकुल सच कहा है आपने अरुण जी!!
जवाब देंहटाएंआपकी भाव- प्रवण कविता बहुत अच्छी लगी । मेरे पोस्ट बिहार की स्थापना के 100 वर्ष पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...
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