माटी काट कर
तालाब बनाते हैं
माटी काट कर
तालाब भरते हैं
इस तरह हम विकास करते हैं
पेड काट कर
जंगल के लिए जगह तैयार करते हैं
पेड़ लगा कर
जंगल बढ़ाते हैं
इस तरह हम विकास करते हैं
फसल जला कर
मुआवज़ा पाते हैं
जो फसल उगा कर
नहीं भर पाते पेट
इस तरह हम विकास करते हैं
इसी तरह का विकास हो रहा है
जवाब देंहटाएंशायद यही विकास का तरीका है वर्त्तमान में...बहुत सटीक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंकैसा विरोधाभास .... हम कैसा विकास करते हैं ?
जवाब देंहटाएंसटीक पंक्तियाँ
इस तरह के विकास से विनाश नजदीक आता है ..
जवाब देंहटाएंसार्थक चिंतन ..
विकाश की यह प्रक्रिया ही जीवन और प्रकृति को चौपट कर रही है
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट और सार्थक
सादर
बहुत सही ।
जवाब देंहटाएंसटीक व्यंग है अरुण जी ... हकीकत से रूबरू करा जाता है ...
जवाब देंहटाएंawesome. as usual
जवाब देंहटाएंawesome. as usual
जवाब देंहटाएंसत्य है
जवाब देंहटाएंसत्य है
जवाब देंहटाएंअब RS 50,000/महीना कमायें
जवाब देंहटाएंWork on FB & WhatsApp only ⏰ Work only 30 Minutes in a day
आइये Digital India से जुड़िये..... और घर बैठे लाखों कमाये....... और दूसरे को भी कमाने का मौका दीजिए... कोई इनवेस्टमेन्ट नहीं है...... आईये बेरोजगारी को भारत से उखाड़ फैंकने मे हमारी मदद कीजिये.... 🏻 🏻 बस आप इस whatsApp no 8017025376 पर " NAME " लिख कर send की kare..
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अरुण जी बहुत ही सुंदर रचना है। बहुत ही अच्छे रूप से आपने सामज को विकाश का आईना दिखाया है किस प्रकार से इंसान अपनी खुशियों के लिए पर्यावरण के साथ मज़ाक कर रहा है।आप ऐसी ही पर्यावरण से संबन्धित
जवाब देंहटाएंतेल ने किया पर्यावरण का तेल रचना भी पढ़ सकते हैं।