मंगलवार, 18 अक्टूबर 2016

सामान नागरिक संहिता और तीन तलाक मुद्दे का घालमेल - सर्वोच्च न्यायलय पर नज़र



पिछले कुछ दिनों से देश के सभी हलको में समान नागरिक संहिता और तीन तलाक के मुद्दे गरम हैं।  वास्तव में इधर कुछ दिनों  में इन दोनों मुद्दों पर एक साथ इतनी तरह की चर्चाएं हुई है कि ये दोनों विषयों का घालमेल हो गया है  यह घालमेल भारी भ्रम पैदा कर रहा है।  
समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड का तात्पर्य विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे मुद्दों पर देश के सभी नागरिको के लिए एक समान नियम।  इसका यह मतलब है कि देश में परिवार के बीच आपसी सम्बन्ध और अधिकारों में सभी जातियों, धर्मों में समानता और किसी वर्ग विशेष को कोई छूट या रियायत का प्रावधान नहीं।  देश में संविधान के लागू होने के 65 वर्ष बाद भी अभी समाज में धर्म, संप्रदाय और संस्कृति के नाम पर अलग अलग सामाजिक परंपराएं मानने की छूट है।  उदहारण के तौर पर कुछ समुदाय में बच्चा लेने पर रोक है जबकि कुछ संप्रदाय में एक से अधिक शादी करने की छूट है, कुछ समुदायों में विवाहित महिलाओं को पिता की संपत्ति में हिस्सा न देने का नियम है।  यदि देश में समान नागरिक संहिता लागू हो जाती है तो किसी विशेष वर्ग के लिए लागू होने वाले नियम अवैध हो जायेंगे।  परंपरा के नाम पर हो रहे भेदभाव पर रोक लग जाएगी।  जबकि खानपान , वेशभूषा आदि पर स्वतंत्रता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।  हाँ ! धार्मिक कठमुल्लापन पर जरूर रोक लग जाएगी।  
आइये समझते हैं  क्या है समान नागरिक संहिता? संविधान बनाते वक्त समान नागरिक संहिता पर काफी चर्चा हुई थी किन्तु तत्कालीन परिस्थितियों के मद्देनजर इसे लागू न करना ही बेहतर समझा गया।  इस कारण से इसे अनुच्छेद 44 में नीति निदेशक तत्वों की श्रेणी में जगह दी गई।  नीति निदेशक तत्व संविधान का वो अंग हैं जिनके आधार पर काम करने की सरकार से उम्मीद की जाती है।  समान नागरिक संहिता तो देश नहीं लाई जा सकी लेकिन देश में विभिन्न संगठनों के विरोध के बाद भी तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू 1954 -55 में हिन्दू कोड बिल लाए।  इस बिल के आधार पर ही हिन्दू विवाह कानून और उत्तराधिकार क़ानून बने।  इस बिल के जरिये संसद ने हिन्दू, बौद्ध, जैन और सिख समुदायों के लिए विवाह, विवाह विच्छेद एवं उत्तराधिकार जैसे बना दिए गए जबकि कई अल्पसंख्यक समुदाय जैसे  मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदायों को अपने-अपने धार्मिक कानून यानी पर्सनल लॉ के आधार पर विवाह, तलाक आदि की छूट दी गई। कई आदिवासी समुदायों को भी यह छूट हासिल है।  
अब समझते हैं कि तीन तलाक का मुद्दा क्या है?  मुस्लिम पर्सनल ला में  तीन बार तलाक बोल कर शादी तोड़ने का अधिकार पुरुषों को प्राप्त है। अभी सवोच्च न्यायलय मुस्लिम पर्सनल लॉ के कुछ प्रावधानों की समीक्षा कर रहा है जिनमे  तीन तलाक, मर्दों को चार शादी की इजाज़त और निकाह हलाला शामिल हैं।  निकाह हलाला में तलाक के बाद पति-पत्नी की दोबारा शादी की व्यवस्था है किन्तु  इसके  पहले एक अपमानजन्य दौर से औरत को गुज़ारना होता है यानी तलाक पा चुकी औरत को किसी और मर्द से शादी करनी होती है, शारीरिक संबंध बनाने होते हैं और इसके बाद नए पति से तलाक लेकर पहले पति से शादी की जा सकती है।  
सर्वोच्च न्यायलय क्या समीक्षा कर रहा है? सर्वोच्च  न्यायालय द्वारा इन प्रावधानों की समीक्षा का आधार यह है कि कहीं इन प्रावधानों की वजह से मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हनन तो नहीं हो रहा ! ज्ञात हो कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के प्रावधानों के अनुसार  हर नागरिक को बराबरी का अधिकार दिया गया है और अनुच्छेद 21 में सम्मान के साथ जीने का अधिकार प्राप्त है।  सर्वोच्च न्यायलय यह  देखना चाहता है कि कहीं तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला जैसे नियम महिलाओं के गैरबराबरी और असम्मानजनक तो नहीं हैं।  प्रारम्भ में सर्वोच्च न्यायलय ने खुद इस मुद्दे पर संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू की किन्तु बाद में छह मुस्लिम महिलाओं ने भी इन प्रावधानों के विरोध में याचिका दाखिल की।  मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इन प्रावधानों को इस्लाम अनुकूल धार्मिक नियम बताते हुए बदलाव का विरोध कर रहा है।  
केंद्र सरकार ने 7 अक्टूबर को दाखिल हलफनामे में इन प्रावधानों को संविधान के खिलाफ बताया ह और कहा है कि  “समानता और सम्मान से जीने का अधिकार हर नागरिक को मिलना चाहिए तथा इसमें धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। ”

समान नागरिक संहिता और तीन तलाक के मुद्दे को अलग अलग देखने के बाद यदि एक साथ देखेंगे तो पाएंगे कि  जहाँ समान नागरिक संहिता में पारिवारिक कानूनों में समानता लाने की बात है वहीँ तीन तलाक मामला संक्षिप्त मुद्दा है जिसमे मुस्लिम पर्सनल लॉ के कतिपय प्रावधानों की समीक्षा की जा रही है।  यदि सर्वोच्च न्यायलय इन प्रावधानों को संविधान के  अनुकूल नहीं पाता है तो इन्हें निरस्त कर सकता है और कुछ बदलाव करने की सिफारिश कर सकता है।  
समान नागरिक संहिता अभी चर्चा के स्तर पर है और कानून के मामले पर सरकार को सिफारिश देने वाले लॉ कमीशन ने लोगों से इस मसले पर सुझाव मांगे हैं।  लोगों के सुझाव को शामिल करते हुए लॉ कमीशन अपनी रिपोर्ट सरकार को सौपेंगी जिसके आधार पर सरकार संसद में बिल पेश कर सकती है।  लेकिन जल्दी में कुछ नहीं होने जा रहा है।  
तीन तलाक के नियमों को लेकर मुस्लिम समुदाय भी बंटा हुआ है।  मुस्लिम महिलाओं का एक बड़ा तबका और प्रगतिशील मुसलमान तीन-तलाक नियम में बदलाव को ज़रूरी मानते है जबकि ज़्यादातर मुसलमान समान नागरिक संहिता के हक में नहीं  हैं।  ऐसे में तीन तलाक के मुद्दे पर विभाजन से ध्यान बंटाने के उद्देश्य से  मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और उलेमा समान नागरिक संहिता के मसले को प्रमुखता से उठा रहे हैं ताकि दोनों मुद्दे के घालमेल से लोगों में भ्रम की स्थिति बने।  
उल्लेखनीय है कि समान नागरिक संहिता का मामला केवल मुसलमानों तक सीमित नहीं है बल्कि इससे ईसाई, पारसी और आदिवासी समुदाय भी इसके दायरे में आते हैं।  यहाँ यह भी देखने की बात है कि मुसलमान को छोड़ कर अन्य समुदायों से इस विषय पर विरोध के स्वर नहीं उठ रहे।  
सरकार के लिए नागरिक कानूनों में समानता लाने का रास्ता इतना आसान नहीं है किन्तु  पर्सनल लॉ के कुछ प्रावधानों को संविधान के आधार पर परखना ज़्यादा आसान है। 
जब मुसलमान समुदाय संविधान सम्मत नियमों के स्थान पर इस्लामिक परम्पराओं को वरीयता देता है, अब सबकी नज़रे सर्वोच्च न्यायालय पर ही टिकी है।  


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गुरुवार, 13 अक्टूबर 2016

नए उद्यमियों के लिए लाइफलाइन- मुद्रा बैंक योजना

लेख 

नए उद्यमियों के लिए लाइफलाइन- मुद्रा बैंक योजना




पिछले साल अर्थात वर्ष 2015 में 8 अप्रैल को प्रधानमंत्री मुद्रा बैंक नाम से प्रारम्भ की गई योजना नए उद्यमियों के लिए लाइफलाइन के तौर पर साबित हो रही है।  प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी की यह एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसका लक्ष्य भारत के छोटे उद्यमियों की सहायता करना है।  यह योजना भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के विकास और समृद्धि में सहायक बनने का सबसे बड़ा माध्‍यम बन कर उभर रही है।  मुद्रा का तात्पर्य  है - माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी।  यह एक ऐसी योजना है जो अर्थव्‍यवस्‍था में छोटे उद्यमियों के योगदान पर जोर देते हुए देश में इनक्लूसिव ग्रोथ का वातावरण बनाएंगे और नई उद्यमिता को बढ़ावा देंगे।  

मुद्रा योजना ने अपने निर्धारित लक्ष्य साल भर से पहले ही प्राप्त कर लिए जो बताता है कि यह योजना जिस दृष्टि और उद्देश्य से शुरू की गई थी वह बेहद जरुरी थी।  मुद्रा बैंक योजना के तहत 28 मार्च 2016 तक 3 करोड़ 14 लाख सूक्ष्म उद्यमों के लिए लक्ष्यानुसार 1.22 लाख करोड़ रुपए की  कर्ज सहायता स्वीकृत करके 1.16 लाख करोड़ रुपए वितरित भी किए जा चुके थे।  2015-16 के केन्द्रीय बजट में इस योजना के तहत सूक्ष्म व्यवसायिक इकाइयों के विकास हेतु रिफायनेंस सुविधाएं उपलब्ध करवाने के 20,000 करोड़ रुपए के फंड तथा क्रेडिट गारंटी कोष के लिए 3,000 करोड़ रुपए के प्रावधान का ऐलान किया गया था।  लक्ष्यानुसार  5.75 करोड़ सूक्ष्म व्यावसायिक इकाइयों  में से 3.14 करोड़ इकाइयों को अर्थात 55 फीसदी इकाइयों को पहले साल में ही इस योजना के तहत वित्तीय सहायता उपलब्ध करवा दी गई है।
मुद्रा बैंक के सूक्ष्म वित्त योजना के तहत एक साल में सबसे ज्यादा कर्ज 6105 करोड़ रुपए कर्नाटक राज्य के सूक्ष्म उद्यमों को दिया गया है। कर्ज प्राप्त करने वाला दूसरा बड़ा राज्य  महाराष्ट्र है जहां 4638  करोड़ रुपए का कर्ज सूक्ष्म इकाइयों को प्राप्त हुआ। अन्य प्रमुख राज्य हैं तमिलनाडु 4483 करोड़ रुपए, उत्तर प्रदेश 3600 करोड़ रुपए, आंध्र प्रदेश 3151 करोड़ रुपए, पश्चिम बंगाल 2639 करोड़ रुपए, गुजरात 2487 करोड़ रुपए, बिहार 2332 करोड़ रुपए, मध्यप्रदेश 2236 करोड़ रुपए, और पंजाब 1695 करोड़ रुपए की कर्ज सहायता उपलब्ध कराई गई।
वर्ष 2016-17 में 5.75 करोड़ सूक्ष्म इकाइयों का ऋण सहायता उपलब्ध करवाने का लक्ष्य रखा गया है। सभी बैंकों एवं फायनेंस कम्पनियों को निर्देश दिए गए हैं कि सूक्ष्म इकाइयों के स्थल पर जाकर कर्ज सुविधा उपलब्ध करवाएं। 
मुद्रा बैंक सिडबी की इकाई के रूप में कार्य कर रहा है। मुद्रा बैंक योजना के तहत तीन तरह के कर्ज का प्रावधान है। पहला, शिशु योजना के तहत 50 हजार रुपए तक कर्ज, दूसरा, किशोर योजना के तहत 50 हजार रुपए से 5 लाख रुपए तक कर्ज तथा तीसरा, तरुण योजना के तहत 5 लाख रुपए से 10  लाख रुपए तक के कर्ज की व्यवस्था की गई है। मुद्रा बैंक पुनर्वित्त सुविधाएं उपलब्ध करवाने के साथ ही एक नियामक के रूप में भी कार्य कर रहा है। सरकार की अन्य योजनाओं के समान प्रधानमंत्री  मुद्रा बैंक योजना के तहत भी अनुसूचित जाति एवं जनजाति के कारोबारियों को प्राथमिकता के आधार पर कर्ज उपलब्ध करवाया जा रहा है। कारोबारियों तक कर्ज सुविधा पहुंच का दायरा बढ़ाने के लिए डाक विभाग के विशाल नेटवर्क का उपयोग किया गया है। मुद्रा बैंक  द्वारा व्यवसायियों को दिए जानेवाले 10 लाख रुपए तक के कर्ज पर 50 फीसदी तक गारंटी दिए जाने से व्यवसायियों को बैंकों से कर्ज आसानी से मिल जाता है।

मुद्रा बैंक भारत के छोटे कारोबारियों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हुआ है। मुद्रा बैंक सूक्ष्म उद्यमों का रिफायनेंस सुविधा उपलब्ध करवाने वाला संस्थान है तथा यह रिफायनेंस स्कीम भी है। इसने माइक्रो फायनेंस कम्पनियों और बैंकों को न्यूनतम ब्याजदर पर पूर्ववित्त सुविधा उपलब्ध करवाई है। 

प्रधानमंत्री मुद्रा बैंक के प्रमुख उद्देश्य छोटे और सूक्ष्म व्यवसायों को प्रभावी ढंग से छोटे कर्ज मुहैया कराने की प्रभावी प्रणाली विकसित करने के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत उपयुक्त ढांचा तैयार करना है


मुद्रा योजना के तहत छोटी से छोटी बिज़नेस इकाइयों को जोड़ने का लक्ष्य है ताकि वित्तीय लाभ जमीनी स्तर तक पहुच सके।  इन सूक्ष्म इकाइयों में स्टाल व गुमटी में कारोबार करने वाले अतिछोटे व्यवसायी, सब्जी विक्रेता, ठेले व फिरन्तु व्यवसायी, हॉकर आदि सभी शामिल हैं। इस प्रकार प्रधानमंत्री जन धन योजना के समान ही मुद्रा बैंक योजना लघु एवं अतिलघु व्यवसायियों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हुई है। यह इस योजना की सफलता का द्योतक है।


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