अमरीकी ब्लैक और जन सरोकारों के कवि वेंडोलिन ब्रुक्स की एक कविता " ट्रुथ" का अनुवाद
सत्य
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-वेंडोलिन ब्रुक्स
और सदियों के लम्बे अन्धकार के बाद
यदि कभी सूरज सामने आ जाता है
कैसे करेंगे हम उसका स्वागत ?
क्या हम उससे भयभीत नहीं होंगे ?
क्या हम उससे डरेंगे नहीं ?
बात सही है कि
हम उसके लिए रोये हैं
हमने की हैं प्रार्थनाएं
इन तमाम काली रातों से भरे युग में
कैसा लगेगा यदि किसी उजाले से भरी सुबह
नींद खुले हमारे दरवाजों पर पड़े
सदियों से मोटी जंजीरों पर
रोशनी के प्रबल प्रहार के स्वर से
क्या हम आश्चर्य से चौंक नहीं जायेंगे ?
क्या हम भाग नहीं खड़े हो जायेंगे
अपने पुराने परिचित खोल में
हे वह कितनी ही धुंध और अँधेरे से ही
भरा क्यों न हो?
अनभिज्ञता में
चैन की नींद में पड़े रहना
क्या इतना सुकून भरा है ?
गहन अन्धकार की चादर
पड़ी है हमारी आँखों पर .
(अनुवाद : अरुण चन्द्र रॉय )
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (14-12-2018) को "सुख का सूरज नहीं गगन में" (चर्चा अंक-3185) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहमेशा कि तरह अच्छी रचना
हटाएंबढिया अनुवाद
बधाई
अनभिज्ञता में
जवाब देंहटाएंचैन की नींद में पड़े रहना
क्या इतना सुकून भरा है ?
गहन अन्धकार की चादर
पड़ी है हमारी आँखों पर .
...सटीक...बहुत सुन्दर अनुवाद
समय से जूझती रचना ...
जवाब देंहटाएंद्वन्द स्वयं से ... गहरा भाव लिए हमेशा की तरह आपका अनुवाद ...
नए एहसास से लबरेज़ पोस्ट... बढ़िया...
जवाब देंहटाएंWorst ◆●
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