शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

धीरे धीरे मरना

ब्राजील की प्रसिद्द कवयित्री मार्था मेडिएरोस की एक कविता -
धीरे धीरे मरना
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वह जो बन जाता है आदत का दास
जो हर दिन पालन करता है एक ही दिनचर्या
जो नहीं बदलता है कभी अपना ब्रांड
जो नहीं उठता है किसी भी प्रकार का खतरा और नहीं बदलता है अपने कपड़ों का रंग
जो उन लोगों से बात नहीं करता जिन्हें वह नहीं जानता
मर जाता है धीरे धीरे
वह जो टेलीविजन को बना लेता है अपना गुरु
मर जाता है धीरे धीरे .
वह जो छोड़ देता है जिजीविषा
जो चाहता है केवल सफेद और काला
और भावनाओं के भंवर के बीच केन्द्रित रहता है "मैं" पर,
जो जिसकी आंखों में अनुपस्थित है चमक
अनुपस्थित है अंगड़ाइयों में मुस्कान,
संघर्ष और भावनाओं में दिल
मर जाता है धीरे धीरे .
वह जो अपने आसपास चीजों को अधिक नहीं बदलता
जो हर काम से रहता है नाखुश
जो अनिश्चितता के लिए निश्चितता का खतरा नहीं उठाता
बंधे-बंधाए स्वप्न को पकडे रखता है
जो अपने जीवन में एक बारे बेफिक्री से किसी अच्छी सलाह को अनदेखा नहीं करता
मर जाता है धीरे धीरे.
वह जो नहीं करता है यात्रायें
जो नहीं पढता नई किताबें
जो नहीं सुनता है संगीत
जो स्वयं से नहीं रहता खुश
मर जाता है धीरे.
वह जो धीरे-धीरे अपने आत्म-प्यार को कर देता है नष्ट
जो अनुमति नहीं देता किसी को अपनी मदद करने की
जो दिन बिताता है अपने दुर्भाग्य और मूसलाधार बारिश की शिकायत करने में
मर जाता है धीरे धीरे
वह जो किसी कार्य को छोड़ देता है शुरू करने से पूर्व
जो उन विषयों पर प्रश्न नहीं पूछता जिन्हें वह नहीं जानता
जो उन प्रश्नों का उत्तर नहीं देता जिन्हें वह जाता है
मर जाता है धीरे धीरे
तिल तिल मरने से बचने के लिए
खुद को याद दिलाइये कि जिंदा रहना नहीं है महज साँसे गिनना
कुछ कोशिशे भी जरुरी हैं
अनन्य ख़ुशी के लिए
केवल आवश्यक है धैर्य और जिजीविषा .
(अंग्रेजी से अनुवाद : अरुण चन्द्र रॉय )

5 टिप्‍पणियां:

  1. लम्बे समयानतराल पर। सुन्दर पोस्ट।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-12-2018) को "कल हो जाता आज पुराना" (चर्चा अंक-3180) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. खुद को याद दिलाइये कि जिंदा रहना नहीं है महज साँसे गिनना

    तिलतिल मरने से बचने के लिए
    कुछ कोशिशे भी जरुरी हैं
    अनन्य ख़ुशी के लिए
    केवल आवश्यक है धैर्य और जिजीविषा .
    - जीवन्तता का मूल-मंत्र यही है.

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  4. बढिया अनुवाद
    बहुत ही खुबसुरत रचनाएँ चुनते है आप अनुवाद के लिये
    शुभकामनाऐ

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  5. बहुत ही सुन्दर कविता है . आपका अनुवाद भी . कहीं औ भी पढ़ी हैं यह कविता . कहाँ पढ़ी याद नही .

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