तलुवे में
चुभने पर कांटा
अनायास ही
मुंह से निकलने वाले राम को
नहीं जरूरत किसी मंदिर की
किसी भव्यता की ।
2.
थककर चूर होने के बाद
जब खाने का पहला निवाला
पहुंचता है पेट में
तृप्ति का वह भाव
पर्याय है राम का
लेकिन ऐसे राम को रहने के लिए
जरूरत नहीं किसी मंदिर के गर्भगृह की।
3.
जो नाम
भरता हो जोश
देता हो ऊर्जा
प्रकट करे आश्चर्य या दुख ही
किसी भी परिस्थिति में
कहीं भी किसी भी तरह
उपयुक्त लगे
ऐसे राम रहते हैं मानस के हृदय में
इन्हे जरूरत नहीं किसी पताके की।
सुन्दर क्षणिकाएँ।
जवाब देंहटाएंसहमत होते हुए भी सहमत नही आपसे ... मन्दिर सिर्फ मन्दिर नहीं होता बल्कि प्रतीक होता है उस भाव का, उस विचार का जो पुष्ट करता है होने को ... सम्मान को ... इस भाव को जागृत रखना उतना ही आवश्यक है जितना सांस लेना ...
जवाब देंहटाएंआप बिलकुल ठीक कह रहे हैं नासवा जी लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि राम को राम मंदिर ने नहीं बल्कि उनके आदर्श और उन आदर्शों की चर्चा ने बनाया है। उनके विचार फैले मंदिर बने या एन नाने।
हटाएंसटीक
जवाब देंहटाएंबहुत सही, सटीक और तर्कसंगत।
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