मतदाता
दुविधा में हैं कि
किसके पक्ष में प्रकट करे
अपना मत
एक तरफ रोटी छोटी हो गई है
दूसरी तरफ रोज़गार गया है छिन
गांव उसका दह गया है बाढ़ में
तो भाई शहर में बेकारी झेल रहा है
वह किसके लिए दे अपना मत .
जिसे वह देता है मत
वही चढ़ कर कुर्सी पर भूल जाता है
किये गए वायदे
बिजली पानी, स्कूल, किताब , चूल्हा - चौका
काम , धंधा पानी , दवाई
सब रह जाती हैं बहस भर की बाते
बाद में चर्चा में होता है
सीमा पर युद्ध,
युद्ध का भय
फ़िल्मी सितारों की बातें
खिलाडियों की कमाई
वह दुविधा में है कि
वह किस आधार पर तय करे अपना मत
भाषणों पर या झंडे के रंग पर
अपनी जाति के नाम पर या
दंगे या युद्ध के भय के नाम पर
या उन्माद पर .
सच कहा भाई मतदाता आजादी के बाद से अब तक समझ ही नहीं पाया किसे वोट करे।
जवाब देंहटाएंचुनाव होंगे अब आगे? :)
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