सहानुभूति
पॉल लॉरेंस डनबर
मुझे पता है कि कैसा महसूस करता है पिंजरे में बंद पक्षी !
जब ऊपर पहाड़ियों की ढलान पर चमकता है सूरज उज्जवल;
जब हवा के झोंके मखमली घासों को झूलाती हैं हौले हौले,
और नदी बहती है पारदर्शी कांच की धारा की तरह धीमे धीमे;
जब चिड़िया गाती है पहली बार और पहली कली खोल रही होती हैं अपनी आँखें,
और इसकी पंखुड़ियों से खुशबू चुरा रही होती है हृदय -
मुझे पता है कि कैसा महसूस करता है पिंजरे में बंद पक्षी !
मुझे पता है कि पिंजड़े में बंद पक्षी क्यों फड़फड़ाता रहता है अपने पंख
जब तक कि पिंजरे की क्रूर सलाखें रक्तरंजित नहीं हो जातीं;
कि वह उड़कर पहुँचना चाहता है अपने घोसले में स्वतंत्र
खुश होने पर वह चाहता है शाखाओं पर झूलना;
और पुराने जख्म बार बार उसके दिल उठाती हैं हुक
और वे उसकी धमनियों में चुभती हैं तेज और तेज -
मुझे पता है कि वह क्यों फड़फड़ाता रहता है अपने पंख
मुझे पता है कि पिंजरे में बंद पक्षी क्यों गाता है दर्द,
जब उनके पंख काट दिये गए हों और छती में भरा हो गहरे जख्म, -
कि वह सलाखों को पीटता है बार बार और कि वह मुक्त हो जाएगा;
यह किसी आनंद या उल्लास का गीत नहीं होता
बल्कि होती है प्रार्थना जो निकलती है उसके हृदय की अतल गहराइयों से बल्कि होती है जिरह ईश्वर से जो वह करता है बार बार -
मुझे पता है कि पिंजरे में बंद पक्षी क्यों गाता है!
अनुवाद - अरुण चन्द्र रॉय