रात हुई है तो सवेरा दूर नहीं
अंधेरा है फिर उजाला दूर नहीं
थक कर रुक गए तो बात अलग
चलते रहे तो समझो मंजिल दूर नहीं।
मुश्किल में बेशक है मानव आज
ठप्प पड़े हैं सब काम काज
हार कर बैठ जाए तो बात अलग
गिरकर उठ गया तो संभालना दूर नहीं
अंधेरा है फिर उजाला दूर नहीं
खो दिए किसी ने मां किसी ने बाप
लगी किसी की नजर किसी का शाप
दुनिया का अंत इसे समझ लो बात अलग
वरना समय का पलटना दूर नहीं
अंधेरा है फिर उजाला दूर नहीं
ज़िन्दगी के दिन सीमित हैं सबने कहा
गीता रामायण पुराण सबमें यह लिखा
पंचतत्व का मोह मिटा नहीं तो बात अलग
मृत्यु के भय का जाना अब दूर नहीं
अंधेरा है फिर उजाला दूर नहीं।
इसी उम्मीद पर चल रही दुनिया। दूर न होते हुए भी उजाला दिख नहीं रह । बस अब मृत्यु से भय नहीं लगता ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता ।
वाह! सकारात्मक दृष्टि।
जवाब देंहटाएंमुश्किल में बेशक है मानव आज
जवाब देंहटाएंठप्प पड़े हैं सब काम काज
हार कर बैठ जाए तो बात अलग
गिरकर उठ गया तो संभालना दूर नहीं
अंधेरा है फिर उजाला दूर नहीं
👌👌वाह! बहुत ही बेहतरीन, बहुत ही उमदा रचना! 👌👌👌
बेहद खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंअनुपम कृति
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 31 मई 2021 को साझा की गई है ,
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।संगीता स्वरूप
वाह
जवाब देंहटाएंखूबसूरत सृजन ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर, आशा का दीप जलाती सुंदर रचना जो हमें कोरोना-काल का डट कर सामना करने की प्रेरणा दे रही है। हार्दिक आभार व आपको प्रणाम।
जवाब देंहटाएंरात बेशक विकट अंधेरी है, पर सुबह जरूर आएगी ! यह विश्वास है, प्रभु पर भरोसा है
जवाब देंहटाएंअन्त होगा इसका भी, आशा की किरण खिलेगी।
जवाब देंहटाएंजलते जंगल पर बारिश के छींटे।
जवाब देंहटाएंआशा का संचार करती सुंदर रचना।
पंचतत्व का मोह मिटा नहीं तो बात अलग
जवाब देंहटाएंमृत्यु के भय का जाना अब दूर नहीं
अंधेरा है फिर उजाला दूर नहीं।
सकारात्मक भावों से सजी रचना अरूण जी। मृत्यु का भय मिट जाए तो जीना आसान हो जायेगा। हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏
बहुत सुन्दर रचना।
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