पेरू की चर्चित कवियत्री विक्टोरिया ग्युरेरो की कविता - एनएन 3
अनुवाद : अरुण चन्द्र राय
बोलो?
क्या कविता बोलेगी, उठाएगी प्रश्न?
मैं चिल्लाना चाहती हूँ
मेरा गला सूख गया है
मेरा गला, अरसे से है खामोश, रूंध गया है
किताबों में मुझे वह शब्द दिखाई देता है
जिसका मैं उच्चारण नहीं कर सकती
अपने दोस्तों के सामने
मुझे छिपना पड़ता है
महिलाओं के शौचालय में।
(मेरी मां फैक्ट्रियों में सिलाई का काम करती थी
युद्ध के बाद वह पांच बच्चों के साथ विधवा हो गई थी)
क्या कविता बोलेगी, उठाएगी प्रश्न?
आइए आपको उन बिजलियों के बारे में बताती हूं
जो मेरी छाती में कड़क रहीं हैं
उन बादलों के बारे में भी बताती हूं जिनके साथ
तैर रहे हैं मेरे सपने और
इन सपनों के धागे अटके रहते हैं मेरी गर्दन से ।
मशीनों के शोर से बनी फैक्ट्रियां
गूंगी महिलाओं से बनी फैक्ट्रियां
भठ्ठियों से बनी फैक्ट्रियां
सूरज के निकलने से लेकर
काम से घर लौटने तक
मेरे जेहन में ये शब्द तपते रहते हैं कि
क्या कविता मेरे प्रश्न उठाएगी
यदि उठाएगी तो उसके शब्द क्या होंगें?
क्या कविता मेरी मां का दुख भी बोलेगी?