याद आती है हजारों बातें
उसका हंसना
उसका रोना
पसीने से लथपथ
लकड़ी वाले चूल्हे को फूंकते
कंधे पर चढ़ाए
गरम गरम दालभात मसल कर खिलाते
डिब्बे में रोटी भुजिया स्कूल के लिए बांधते
बुशर्ट की बटन टांकते
स्वेटर बुनते
पुराने स्वेटर को उघाड़ नया स्वेटर बनाते
खेल धूप कर लौटने तक
आंगन के मोहरी पर नजर गड़ाए
और फिर जीवन संगिनी के हाथ सौंप कर
अलग हट जाते
याद नहीं मुझे मां की गर्भ में मैं कैसा था
गलत है कि मां केवल गर्भ में रखकर
बच्चे को जन्म देती है
मां तो वह बनाती है
उस जैविक प्रक्रिया के बाद ।