पढिए अमरीकी कवि शेल सिल्वरस्टीन की अंग्रेजी कविता सिक का भावानुवाद
बीमार बच्चा
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शेल सिल्वरस्टीन
"मैं आज स्कूल नहीं जा सका!"
उस छोटे बच्चे ने कहा
"मुझे खसरा है और है तपेदिक
दाने, फुनसी और हैं घाव अधिक
मेरा मुँह गीला है और गला सूखा
दाहिनी आँख से हो रहा मैं अंधा
मेरा टॉन्सिल है चट्टान जितना बड़ा
चेचक को मैंने है सत्रह बार गिना
सोलह साल का मेरा है एक भाई
हरा उसका चेहरा जैसे जमी हो काई
पैर में है पोलियो, आँखें हैं नीली
हरा उसका चेहरा जैसे जमी हो काई
पैर में है पोलियो, आँखें हैं नीली
खांसते खांसते दम है मेरी ढीली
दौड़ते हुए मैं रहता हूँ हांफता
बिना दवाई के नहीं गुज़रता कोई हफ्ता
जब मैं हूँ अपनी ठुड्डी हिलाता
मेरे कूल्हे में है दर्द बहुत होता
मेरी नाभि अंदर रही है धंस
मेरी आँतों में आ गया है पस
मेरी गर्दन गई है अकड़
मेरी आँतों में आ गया है पस
मेरी गर्दन गई है अकड़
मेरा दिमाग गया है सिकुड़
धीरे धीरे आवाज हो रही कमजोर
राहत है मेरे पेट में मरोड़
लोग कहते हैं आज है त्योहार
लेकिन उससे मेरा क्या सरोकार
मेरे लिए तो एक जैसे हैं सब वार
क्या सोम, क्या मंगल और क्या रविवार !
अनुवाद : अरुण चंद्र राय
गजब |
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