बेटियाँ
सबसे अधिक प्रेम करती हैं
अपने पिता से
वे होती हैं सबसे अधिक आकर्षित
अपने पिता सरीखे पुरुषों से
जो दे सके उन्हें भरोसा,
जो खड़ा हो सके उनके साथ
धूप में , छाँव में
ऐसा नहीं है कि बरगद जैसे पिता की छाया में
बेटियाँ बढ़ती नहीं है
बल्कि वे तितली हो उठती हैं
सुरक्षा के भाव के साथ ।
कुछ बेटियाँ ऐसी भी होती हैं
जिन्हें कभी नहीं मिला होता है
पिता का खुरदरे हाथों का स्नेह-सिक्त प्यार
या फिर बैठकर पिता के चौड़े कंधों पर
आसमान को छूने का अनुभव
ऐसी बेटियाँ अक्सर बातें करती हैं अपने पिता से
कल्पनाओं में, अकेले में
कोई और पुरुष शायद ही बाँट सके इस अकेलेपन को ।
बेटियाँ कई सारी बातें
वे बांटती केवल पिता से
जब वे लौटती हैं स्कूल से
कॉलेज से या दफ्तर से
या फिर मायके से
और जब पिता नहीं होते
या जिन बेटियों के पिता नहीं होते
वे अक्सर ओढ़ लेती हैं
चुप्पी का लिहाफ
कुछ बेटियाँ अपने अकेलेपन से भागकर
हंसने लगती हैं, बातूनी हो जाती हैं
और कुछ इस तरह भीतर ही भीतर छुपाती हैं अपना दर्द !
ईश्वर किसी बेटी को पिताविहीन न बनाए
ऐसी प्रार्थनाएँ अक्सर करती हैं बेटियाँ
अपने सिले हुये ओठों से बुदबुदाते हुये
सच बात यह है कि बेटियों की बुदबुदाती हुई बातों को
सबसे सटीक समझते हैं पिता है
सबसे पहले समझते हैं पिता !
सुन्दर
जवाब देंहटाएंमार्मिक
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी
हटाएंहृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति सर।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १० जनवरी २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
शुक्रिया श्वेता जी अपने लिंक में मेरी कविता को शामिल करने के लिए । बहुत बहुत आभार
हटाएंहृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति सर।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १० जनवरी २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
अरुण जी , हृदय द्रावक है आपकी कविता । खासतौर पहला दूसरा पैरा पढ़कर दिल भर आया । हर चेहरे में , यहां तक पति में भी पिता को तलाशना कितना मार्मिक सत्य ।
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