बुधवार, 4 दिसंबर 2024

युद्ध में मारे गए सैनिकों के बच्चे

युद्ध में मारे गए सैनिकों के बच्चे 

युद्ध के बारे में क्या सोचते हैं 

क्या आपको पता है ? 

मुझे तो बिलकुल भी नहीं पता ! 


क्या होती है 

भौगोलिक सीमाएं 

इस पार की जमीन 

और उस पार के जमीन 

के बीच क्या फर्क है 

क्या जानना चाहते होंगे 

युद्ध में मारे गए सैनिकों के बच्चे 

क्या आपको पता है ?

मुझे तो बिलकुल भी नहीं पता ! 


ये बच्चे क्या कभी मिलना चाहेंगे 

उस पार के सैनिक से जिसकी गोलियों से 

घायल हुये थे उसके पिता 

या फिर उस पाइलट से 

जिसने अंधेरे में गिराया था दुश्मनों की छावनी पर बम 

इस बारे में क्या आपको कुछ पता है ?

मुझे तो बिलकुल भी नहीं पता !


ये बच्चे क्या कभी अपने राष्ट्रपति से 

प्रधानमंत्री से या फिर रक्षा मंत्री से 

या फिर सेना के सुप्रीम से मिलना चाहेंगे 

जिनकी सुरक्षा में रहते हैं सैकड़ों सिपाही 

जिनके आने जाने से पहले करा दी जाती हैं खाली 

शहर की सड़कें ,

जिनके रास्ते  से हटा दिये जाते हैं लोग 

क्या आपको कुछ पता है इस बारे में ?

मुझे तो बिलकुल भी नहीं पता ! 



मंगलवार, 26 नवंबर 2024

लौटती नहीं नदियां

नदियां
नहीं निकलती
किसी एक स्रोत से 
कई छोटी बड़ी धाराओं के मिलने से

बनती है नदी
नदियां  बढ़ जाती हैं आगे
अकेले रह जाते हैं स्रोत 
अलग अलग 

स्रोत तक 
कब कौन लौटता है
कहां लौटते 
बड़े हुए बच्चे 
माओं की गोद में

नहीं लौटी है बेटियां 
मायके
 पहले की तरह

रास्ते भी नहीं लौटते 
पगडंडियों की ओर।

रविवार, 4 अगस्त 2024

खिलते हुए फूलों की नीरवता

 

हिल्डेगार्डे फ़्लैनर की कविता "To a blooming Tree" का अनुवाद 



रात में पेड़ पर खिलते हुए फूलों की नीरवता से 
नहीं कुछ भी अधिक सुंदर 
इस पृथ्वी पर, सूरज की छाँव तले
नहीं कुछ भी अधिक पवित्र 

यदि मेरे हृदय में होती इतनी नीरवता
इतनी शांति 
तो मैं गाता कोई गीत इस निर्जन आकाश में 
मेरे शब्द गूंज उठते , धीमे धीमे छा जाते आकाश में
और फिर हमेशा के लिए खो जाते हवाओं में . 

यह ऐसे ही किसी पेड़ के नीचे 
ढूंढ रहा होगा कोई अपनी बिछड़ी प्रेमिका को
पेड़ से गिरा कोई पत्ता या फूल की कोई पंखुड़ी 
कहीं प्रेमिका का प्यार तो नहीं 
जो ईश्वर ने भेजा है द्रवित होकर ! 

(अनुवादक : अरुण चन्द्र राय )

बुधवार, 24 जुलाई 2024

बूढ़ा होता अखबारवाला और घटती छोटी बचत


दो दशक से अधिक से

वह फेंक रहा है अखबार 

मेरे तीसरे मंजिल मकान के आंगन में 

सर्दी, गर्मी, बरसात में 

गाहे बगाहे नागा होते हुए। 


वह कब जाता था अपने गांव

यह उसके बेटे के आने से पता चलता

जो नहीं फेंक पाता था तीसरी मंजिल पर अखबार। 


समय के साथ 

अखबार मोटे होते चले गए

खबरों का स्थान ले लिया 

चमकीले विज्ञापनों ने 

श्वेत श्याम अखबार 

रंगीन होते चले गए

और खड़ा रहा अखबारवाला

अपनी जगह वहीं। 


देश की अर्थव्यवस्था बदली

उसे पता चला विज्ञापनों से 

जबकि उसकी अर्थव्यवस्था 

थोड़ी संकुचित ही हुई इस दौरान

घटते अखबार पढ़ने वालों के साथ। 


पहले वह अखबारों के साथ लाया करता था 

पत्रिकाएं 

अब न तो पत्रिकाएं हैं न पढ़ानेवाले

मालिकान दे रहे हैं एक दूसरे को दोष

और समझ में नहीं आ रहा है अखबारवाले को

कि कौन सही है कौन गलत

वह स्वयं को कटघरे में फंसा महसूस कर रहा। 


आज सुबह सुबह

वह कई बार कोशिश करके भी

नहीं फेंक पाया तीसरी मंजिल पर अखबार

साइकिल चढ़ते हुए थोड़ा लड़खड़ाया भी

थोड़ा हाँफता सा भी लगा वह

मैंने हंसकर कहा 

"चच्चा बूढ़े हो रहे हैं, अखबार नीचे ही रख दिया कीजिए!"

मुझ अपनी हंसी, स्वयं ही चुभ गई

अखबार खोला तो पता चला कि

बैंक में छोटी बचत बहुत घट गई है

नहीं मालूम इस घटती बचत में

अखबारवाले चच्चा शामिल हैं या नहीं !

मंगलवार, 16 जुलाई 2024

दोस्तों के बीच

 दोस्तों के बीच 

जब आप कहेंगे कि 

देश में कम हो रहे रोजगार 

तो वे आपको तर्क देंगे कि 

सरकार बना रही है लोगों को निकम्मा 

अपनी योजनाओं के जरिए । 


दोस्तों की बतकही में 

आप जब कहेंगे कि 

जितनी देर में चाय पी प्याली 

खत्म करते हैं हमलोग 

उतनी देर में एक फुटबॉल मैदान के बराबर जंगल 

हो रहा है खत्म 

तो वे आपको बताएंगे कि 

रील्स में कौन कर रहा है लीड 

या फिर किस यू-ट्यूबर के सबसे अधिक हैं फालोअर । 


दोस्तों के बीच 

इस बात पर चिंता करते हुए आप 

हो जाएंगे अकेले कि 

इस साल देश या कहिए दुनिया के कुछ हिस्से 

जलते रहे बढ़ते तापमान में 

या फिर जूझते रहे बाढ़ से 

या फिर बेमौसम बारिश से  कैसे

लाखों हेक्टेयर फसल कैसे खत्म हो गई !