शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

आदमी के हाथ

 जहां नहीं पहुंचे हैं 

आदमी के हाथ

वहां का आसमान

अब भी है साफ

वहां के जंगल

अब भी हैं घने

वहां की चिड़िया

अब भी है महफूज़! 



शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

कनेर सिरीज़

 कनेर - III


साथ जो 

समय के साथ 

गहरे होते जाएँ 

वही प्रेम है 


प्रेम को निभाए बिना 

नहीं जा सकता है उसे 

जिया ! 





जैसी भाषा थी


(समकालीन अमरीकी कवयित्री एंड्रिया रेक्सिलियस की कविता "The way language was"  का अनुवाद )  


(अनुवाद : अरुण चंद्र राय ) 

जिस दिन वन में हिरण मरा,
मैं अपने घर में ज़िंदा था ।

मैं टूटते हिमनदों के बर्फीले मैदान में भी ज़िंदा था 
जबकि चीख रहे थे गला फाड़ फाड़ कर 

चीर के दरख़्त। 

 
जिस दिन प्यारी छोटी चिड़िया रो रही थी 

सियार जंगलों  के आग से भयभीत होकर से भाग रहे थे 

उस दौरान भी मैं ज़िंदा था।  


मैं कहीं और जाकर बस जाना चाहता था 

और इसकी चिंता ही मेरा धर्म था।  


 यह पृथ्वी तब भी थी जब नहीं थे वृक्ष 

जब नहीं लगी थी जंगलों में आग  

तब मैं भी नहीं था । 


और जब हिरण  वनों में जल रहे 

अपने घर में मैं देख रहा हूँ  सपने।  


फिर पड़ा सूखा,आया अकाल 

पसर गया सन्नाटा चारो तरफ 

सेब की तरह लाल लपटें
घुस गई हैं मेरे  गले के भीतर 

और मैं फुफकार रहा हूँ 

जंगल के आग की तरह।  

सोमवार, 30 जून 2025

 कनेर -II


कितना था मैं नीरस 

कितना बेरंग 

तुमने छूआ

और देखो 

लाल हो गया हूँ 

मैं ! 


कनेर सिरीज़

कनेर -1 


वियोग में 

किसी के 

कनेर पड़ जाता है 

सफ़ेद भी 

जैसे तुम्हारे बिना 

पड़ जाता हूँ मैं 

निस्तेज !