सोमवार, 4 सितंबर 2023

गजल 3


न झूठी अब लिखाई चाहता हूं। 

बदलना रोशनाई चाहता हूं ।। ।1। 


कई खबरें हैं खबरों से परे जो,

मैं उनकी भी छपाई चाहता हूं। ।2। 


हैं रंगों ने किये सब कैद झंडे,

इन्हें देना रिहाई चाहता हूं। ।3। 


सभी पुर्जे निजामत के सड़े हैं

मैं इनकी अब सफाई चाहता हूं। ।4।


हवा, फल, फूल, छाया पेड़ देते,

तो क्यों इनकी कटाई चाहता हूं ? ।5।


मंगलवार, 15 अगस्त 2023

गजल 2

 आप जबसे हमारे सनम हो गए

क्या कहूं आप बेरहम हो गए 


लूट हत्या दंगे हो रहे आए दिन

खून खौलता नहीं सब नरम हो गए


जंगल जल रहे, ढह रहे पहाड़ 

कुदरत के तेवर भी गरम हो गए 


नफरत के झंडे हो रहे बुलंद 

कैसे ये हमारे धरम हो गए 


डूबते को मिलता तिनके का सहारा

कैसे कैसे ये मुझको भरम हो गए ।

बुधवार, 19 जुलाई 2023

ग़ज़ल 1


ये दुनिया गोल है प्यारे 

तेरा भी मोल है प्यारे 


बिकेगा सब यहां देखो 

तेरा भी तोल है प्यारे


भिंची हैं मुट्ठियां मेरी

अंगारा बोल है प्यारे 


बिठाए पहरे होठों पर 

खुली जो पोल है प्यारे 


मिलाता क्यों नहीं नजरें

कहीं कुछ झोल है प्यारे


रंगों में बंट गई धरती

ये क्या भूगोल है प्यारे


ये जो आंचल है माता का

बड़ा अनमोल है प्यारे

शुक्रवार, 16 जून 2023

सब ठीक है

बहुत दिनों बाद मिले
बीज बेचने वाले बाबा
पूछा कि कैसे रहे पिछले दिन
उन्होंने कहा सब ठीक है,
लेकिन कहां है सब ठीक?

पेड़ के नीचे बैठ कर
पुराने कपड़ों को ठीक करने वाले बाबा
बहुत दिनों बाद दिखे
थके हुए कदम और उदासी आंखों में भर कर
वे उसी पेड़ के नीचे खाली बैठे मिले।
पूछने पर बताया कि
वे भी ठीक है,
लेकिन कहां है सब ठीक?

वो चौंक पर बैठता है एक चाभी बनाने वाला
वह भी कहां दिखाई दिया साल भर से
उसका बोर्ड अब भी टंगा था
फोन मिलाया तो उसने भी कहा
सब ठीक है
लेकिन कहां है सब ठीक?

ऐसे ही ज़िन्दगी के आसपास
रोज़ दिखने वाले जब नहीं दिख रहे
या कमजोर या उदास दिख रहे हैं
फिर भी कह रहे हैं सब ठीक है
तो मत समझिए कि सब ठीक है।

हां
जब सब ठीक नहीं है
तब भी सब ठीक कहना
और कुछ नहीं बल्कि है
आदमी के भीतर बसी
जिजीविषा और आशा
यही उसे खड़ा करता है
हर बार गिरने पर
संबल देता है
लड़खड़ाने पर।

ठीक है कि अभी
सब ठीक नहीं लेकिन
कल होगा सब ठीक ।

मंगलवार, 23 मई 2023

घुटने का दर्द


ऐसा कौन है 

जिसके घुटने में नहीं है दर्द 

जिसे नहीं हो रही कठिनाई 

सीढ़ियाँ चढ़ने या उतरने में 

फिर भी क्या कभी सुना कि

किसी ने पूछा हो 

आपके घुटने का हाल 

या बताया हो 

अपने ही घुटने का हाल । 


दरअसल जो जरूरी है 

वह हो नहीं रहा दुनियाँ में 

और गैर जरूरी संवादों से भरी दुनिया 

होती जा रही है संवाद और संवेदना हीन । 


घंटों मोबाइल या लैपटॉप या कंप्यूटर की सकीं से 

बुझी आँखों के पीछे जो दर्द होता है 

घुटनों का , रीढ़ की हड्डी का या ढीली पड़ती पकड़ का 

उसका जिक्र कहाँ करना चाहता है कोई 

और करे भी कैसे जब कोई सुनना ही नहीं चाहता ।  


थक रहे कदमों, बुझ रही आँखों 

और आँगन के सूनेपन की अभिव्यक्ति के लिए 

नहीं बन सकता पंद्रह बीस सेकेंड का कोई रील ।