शुक्रवार, 28 मार्च 2025

जरूरत के समय साथ निभाने वाले लोग

नदियों ने कब मना किया था
जल नहीं देने से 
खेतों के लिए 
पशुओं के लिए 
मनुक्ख की प्यास के लिए 
जो वह बांध दी गई !

बांधी गई नदियां 
अकेली बहती रही 
रिसती रही 
किसी ने नहीं पूछा उसका दुख 
उसकी पानी से बनी बिजली से 
रोशन होते रहे शहर ! 

कब हवा ने उठाई थी 
कभी आपत्ति कि 
सांस लेने से पहले उससे पूछो 
फिर भी उसे बना दिया गया 
जहरीला
जहरीले हवा को साफ करने के लिए 
बनाई गई नीतियाँ 
बनी योजनाएँ 
लेकिन सब हवा ही रही और 
हवा का दम इधर घुटता रहा
अंधेरी कोठरी में  ! 

वृक्षों ने कभी मना नहीं किया 
देने को अपनी छाया 
देने को अपने फल 
फिर भी काटा गया उन्हें 
देने के लिए रास्ता 
बसाने के लिए नए घर 
वृक्षों से बने सामान पर 
कभी नहीं लिखा गया इनका नाम 
ये रहे सदैव बेनाम, गुमनाम ! 

जरूरात के समय 
जो निभाते हैं साथ 
वे अक्सर ही 
काट दिये जाते हैं  जड़ों से 
या फिर बांध दिये जाते हैं 
गतिहीन कर दिये जाते हैं 
या फिर कर दिये जाते हैं दूषित
रहते हैं गुमनाम !




4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 2 अप्रैल 2025 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. प्रकृति माँ की तरह मानव का पोषण करती है, पर मानव अपने लोभ के कारण उसका शोषण करने में लगा है, मार्मिक रचना !

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  3. सही कहा आपने जरूरत पर साथ देने वाले या विश्वास करने वाले लोगों को खत्म किया जा रहा है

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  4. यह सब कविता में अच्छा लगता है कागज़ पर असलियत में औरतें के साथ बदतर हालात कि जाती है

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