गृहणी स्त्रियॉं अक्सर
सोती कम हैं
सोते हुये भी वे
काट रही होती हैं सब्जियाँ
साफ कर रही होती हैं
पालक, बथुआ, सरसों
या पीस रही होती हैं चटनी
धनिये की, आंवले की या फिर पुदीने की ।
कभी कभी तो वे नींद में चौंक उठती हैं
मानो खुला रह गया हो गैस चूल्हा
या चढ़ा रह गया हो दूध उबलते हुये
वे आधी नींद से जागकर कई बार
चली जाती हैं छत पर हड़बड़ी में
या निकल जाती हैं आँगन में
या बालकनी की तरफ भागती हैं कि
सूख रहे थे कपड़े और बरसने लगा है बादल !
कामकाजी स्त्रियों की नींद भी
होती है कुछ कच्ची सी ही
कभी वे बंद कर रही होती हैं नींद में
खुले ड्रॉअर को
तो कभी ठीक कर रही होती हैं आँचल
सहकर्मी की नज़रों से
स्त्रियॉं नींद में चल रही होती हैं
कभी वे हो आती हैं मायके
मिल आती हैं भाई बहिन से
माँ की गोद में सो आती हैं
तो कभी वे बनवा आती हैं दो चोटी
नींद में ही
कई बार वे उन आँगनों में चली जाती हैं
जहां जानाहोता था मना
स्त्रियों की मुस्कुराहट
सबसे खूबसूरत होती है
जब वे होती हैं नींद में
कभी स्त्रियों को नींद में मत जगाना
हो सकता है वे कर रही हों
तुम्हारे लिए प्रार्थना ही !
बहुत सुंदर । स्त्री मन की ममताशक्ति को सादर नमन !
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