गुरुवार, 7 अगस्त 2025

मृत्यु : अंतिम प्रेम

 मेरे कई दोस्त 

जो जानते हैं मुझे 

मेरी पत्नी के जीवन में आने के पहले से 

उन्होने कहा 

पागल हो गए हो तुम 

कहीं कुछ परेशानी तो नहीं 

और कोई परेशानी तुम्हारा क्या बिगाड़ेगी 

हमने देखा है तुम्हारा 

दुर्धर्ष संघर्ष

क्यों लिख रहे हो 

मृत्यु पर कवितायें ! 


मेरी पत्नी ने 

अपने आँचर को फैला दिया 

अपनी देवी के आगे 

और विनती करने लगी कि

रहूँ मैं सुरक्षित

रखने लगी मेरी अतिरिक्त ध्यान 

करने लगी तमाम परहेज 

जो अक्सर करना चाहिए 

पचास की उम्र के बाद के लोगों को 

उसने तो अपने आराध्य देवों से मांग भी ली है 

कि सजाती रहे अपनी मांग में सिंदूर

पहनती रहे सावन में हरी चूड़ियाँ 

एक गहन चुप्पी में जा बैठी है वह 

मृत्यु पर मेरी कविताओं को देखकर ! 


मेरे बच्चों ने खंघाल लिया है 

मेरा सोशल मीडिया प्रोफाइल 

उन्होने बात कर ली है मेरे दोस्तों से 

मेरे साथ उठने बैठने वाले लोगों से 

वे जानना चाहते हैं 

कि मजदूरों पर कविता लिखने वाले उनके पिता 

क्यों लिखने लगे हैं 

मृत्यु पर कविता ! 


मेरे भाई, बहिन, उनके बच्चे 

कुछ नजदीकी और दूर के रिश्तेदारों 

जिनके साथ रही है मधुरता 

जिनके कमी बेसी में हाजिरी देता आया हूँ 

उन्होने भी घूमा फिरा कर पूछ ही लिया है 

कि क्यों लिख रहा हूँ मृत्यु पर कवितायें ! 


मैं सोच रहा हूँ इन्हें नहीं पता 

कैसा महसूस किया होगा पिता ने दादाजी की मृत्यु पर 

मुझे याद आ रहा है कि 

पिता के मृत शरीर को देख 

सूख गई थी आँखें , डबडबाई तक नहीं थी 

और छोटे भाइयों को गले लगाकर बस इतना कहा था -

मैं हूँ न अभी 

और लगा था अचानक भाइयों का पिता हो गया हूँ मैं ! 


मृत्यु के बाद कैसे और अधिक प्रिय हो गए थे पिता 

उनकी अच्छी अच्छी बातें ही याद आ रही थी 

वैसे तो नहीं रही थी तल्खियाँ उनके साथ 

यदि कोई थी भी तो वे विस्मृत हो गई थी ! 


माँ की मृत्यु के बाद 

पहली बार लगा था कि अनाथ हो गया हूँ मैं 

और फिर भी मेरी आँखें भरी नहीं 

सूखी ही रही पलकें 

कि रोज़ ही कितने बच्चे हो जाते हैं अनाथ !


किसी से कितना प्रेम है 

इसका हो सकता है यदि कोई पैमाना 

वह है मृत्यु ही 


पेड़ों की मृत्यु पर यूं ही नहीं रोते हैं पहाड़ 

पहाड़ों के धराशायी होने पर 

नदियों का उफन कर बिलखना भी 

यही साबित करता है ! 


विछोह में प्राण गँवाने वालों की के प्रति खबर पढ़कर 

हम नहीं माप सकते हैं उनकी पीड़ी, उनका प्रेम 

कई बार प्रेम को साबित करने के लिए 

चुनना पड़ता है मृत्यु 

जिनकी कहानियों से भरे पड़े हैं इतिहास के पन्ने ! 


मृत्यु से बचने के लिए 

नहीं है कोई मंत्र 

नहीं बना कोई तंत्र 

जब भी मृत्यु पर विजय का किया गया कोई दावा 

वह अब तक रहा है असफल ही ! 


जिन्हें प्रज्ञान है 

मृत्यु की अनिवार्यता के बारे 

वे भीतर से होते हैं शांतचित्त 

दुख, पीड़ा और सुख में भेद करना 

उन्हें समय का अपव्यय लगता है 

वे करते हैं जीवन से प्रेम 

वे जानते हैं मृत्यु ही है 

अंतिम प्रेम ! 


7 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे तो न जाने कब से मेरी इस प्रेयसी के बाहों में सुकून से सोने की प्रतीक्षा है।
    स्वयं को सांसारिकता से मुक्त कर जीवन के अंतिम सत्य को मन से स्वीकृत करना
    हर संताप को शीतल करने में सक्षम है.शायद...।
    बहुत भावपूर्ण रचना सर।
    सादर।
    -------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ अगस्त २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. परम सत्य को एकदम सत्य लिखा है आपने 🙏

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  3. बहुत ही शांत प्रेममय मृत्यु जो अंतिम अनिवार्य है ।

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  4. ये सोच, कि यदि कोई मृत्यु पर कविता लिख रहा है, तो शायद मृत्यु की इच्छा हो रही है, और फिर आस पास वालों कि ये बेबसी, कि बस पूछ सकते हैं, कुछ कर नहीं सकते।

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