१
शब्द
अब नही होते
हरे
और जो हरा होता है
होता नही
जीवन
नुक्कड़ के पीपल पर
पीले अमरबेल की
हरियाली
देखने लायक हो गई है !
२
क्या आपने भी
महसूस किया है कि
किताबों
के जिल्द होने लगे हैं
खूबसूरत
और
भीतर के
पृष्टों का खालीपन
गूंजने लगा है !
३
मेरे बच्चे
नही चाहते
मम्मी पापा और अपने लिए
अलग अलग कमरा
परदे लगे बंद दरवाजे
वे चाहते हैं
खुली खिड़की
कि हवा पानी अन्दर आए और
सब मिलकर
गहरी नींद सोयें !
शुक्रवार, 28 अगस्त 2009
बुधवार, 19 अगस्त 2009
कॉपी राईटर
१
बेचता हूँ शब्द
इसलिए कबीर नही हूँ
भक्ति नही है शब्दों में
इसलिए तुलसी नही हूँ
बाजार की आंखों देखि लिखता हूँ
इसलिए सूर नही हूँ
दिमाग से सोचता हूँ शब्द
इसलिए मीरा नही हूँ
एक कॉपी राईटर हूँ मैं
बेचता हूँ शब्द !
२
सपने बुनता हूँ
सपने गढ़ता हूँ
सपने दिखाता हूँ
नही जानना चाहता
कितना सच है
कितना झूठ
कितना फरेब
तारांकित करके शर्तें लागू
लिख कर मुक्त हूँ जाता हूँ
अपनी जिम्मेदारियों से
तोड़ लेता हूँ नाता अपने शब्दों से
एक कॉपी राईटर हूँ मैं
बेचता हूँ शब्द !
बेचता हूँ शब्द
इसलिए कबीर नही हूँ
भक्ति नही है शब्दों में
इसलिए तुलसी नही हूँ
बाजार की आंखों देखि लिखता हूँ
इसलिए सूर नही हूँ
दिमाग से सोचता हूँ शब्द
इसलिए मीरा नही हूँ
एक कॉपी राईटर हूँ मैं
बेचता हूँ शब्द !
२
सपने बुनता हूँ
सपने गढ़ता हूँ
सपने दिखाता हूँ
नही जानना चाहता
कितना सच है
कितना झूठ
कितना फरेब
तारांकित करके शर्तें लागू
लिख कर मुक्त हूँ जाता हूँ
अपनी जिम्मेदारियों से
तोड़ लेता हूँ नाता अपने शब्दों से
एक कॉपी राईटर हूँ मैं
बेचता हूँ शब्द !
स्टॉक एक्सचेंज बताते है देश का मिजाज
अब
जरुरत तय नही करते
मूल्य जिंसों का
स्टॉक एक्सचेंज के हाथ में
है रिमोट जिंदगी का
मानसून
प्रभवित नही करते
अर्थ व्यवस्था
किसानों व कामगारों की थाली से
नही मापी जाती है भूख
चढते स्टॉक एक्सचेंज
लुढ़कते स्टॉक एक्सचेंज
बताते हैं देश का मिजाज
बाढ़ में डूबे खेत
सूखे खलिहान
दंगों
भूखमरी
कुपोषित माँ और उनके बच्चे
बेरोजगार युवा कन्धों को
इन् में शामिल नही किया जाता
एस एम् एस से तय होता है
बाज़ार का रूख
और अखबार कहते हैं
जींस में तेजी है
मूल्य स्थिर हैं
कोई भूखा नही सो रहा है !
टी आर पी के लिए होते हैं
सर्वेक्षण
इनके लिए
जरुरत नही
अब जरुरत तय नही करते
मूल्य जिंसों का
स्टोक एक्सचेंज के हाथ में है
रिमोट जिंदगी का
रोटी जीतती गई
मेरी
और रोटी की लडाई में
जीतती रही रोटी
दिनोदिन बड़ी होती रही यह
समय के साथ बदलती रही
कभी रंगीन तो कभी क्रिस्पी
कोकटेल डिनर से कांफ्रेंस सेमीनार तक
अलग अलग समय पर
अलग अलग तरह से
परोसी गई यह
रोटी का स्वाद भी बदलता गया
समय के बदलने के साथ
मेरी
और रोटी की लडाई में
जीतती रही रोटी
वह रोटी
जो कभी सामाजिक सरोकार थी मेरे लिए
वोह रोटी जो पूजा थी, मोक्ष का साधन थी
दान थी कल्याण थी
छिटक गई हाथों से
और ई ऍम आई , स्टेटस सिम्बल
और स्टेटस कांससनेस में बदल गई
अब
रोटी के पीछे भागता हूँ
मुहँ चिढा कर
स्वर्ण मृग बन
भगा रही है यह रोटी
मेरी
और रोटी की लडाई में
जीतती रही रोटी
और रोटी की लडाई में
जीतती रही रोटी
दिनोदिन बड़ी होती रही यह
समय के साथ बदलती रही
कभी रंगीन तो कभी क्रिस्पी
कोकटेल डिनर से कांफ्रेंस सेमीनार तक
अलग अलग समय पर
अलग अलग तरह से
परोसी गई यह
रोटी का स्वाद भी बदलता गया
समय के बदलने के साथ
मेरी
और रोटी की लडाई में
जीतती रही रोटी
वह रोटी
जो कभी सामाजिक सरोकार थी मेरे लिए
वोह रोटी जो पूजा थी, मोक्ष का साधन थी
दान थी कल्याण थी
छिटक गई हाथों से
और ई ऍम आई , स्टेटस सिम्बल
और स्टेटस कांससनेस में बदल गई
अब
रोटी के पीछे भागता हूँ
मुहँ चिढा कर
स्वर्ण मृग बन
भगा रही है यह रोटी
मेरी
और रोटी की लडाई में
जीतती रही रोटी
बुधवार, 5 अगस्त 2009
पच बजिया ट्रेन
बाबा लौट आते हैं दिशा मैदान से
पच बजिया ट्रेन से पहले
चौके में धुआं भर आता है
पच बजिया ट्रेन से पहले
बाबूजी खेत पहुँच जाते हैं
पच बजिया ट्रेन से पहले
भैंस पान्हा जाती है
पच बजिया ट्रेन से पहले
अखाडे में हलचल हो जाती है
पच बजिया ट्रेन से पहले
मन्दिर की घंटिया बज उठती हैं
पच बजिया ट्रेन से पहले
मस्जिद में अजान हो जाता है
पच बजिया ट्रेन से पहले
वहां ख़बर है की
अब पच बजिया ट्रेन नही चलेगी
यहाँ अलार्म क्लोक बजता है
नौ बजे...
अलार्म क्लोक से पहले यहाँ कुछ नही होता
पच बजिया ट्रेन से पहले
चौके में धुआं भर आता है
पच बजिया ट्रेन से पहले
बाबूजी खेत पहुँच जाते हैं
पच बजिया ट्रेन से पहले
भैंस पान्हा जाती है
पच बजिया ट्रेन से पहले
अखाडे में हलचल हो जाती है
पच बजिया ट्रेन से पहले
मन्दिर की घंटिया बज उठती हैं
पच बजिया ट्रेन से पहले
मस्जिद में अजान हो जाता है
पच बजिया ट्रेन से पहले
वहां ख़बर है की
अब पच बजिया ट्रेन नही चलेगी
यहाँ अलार्म क्लोक बजता है
नौ बजे...
अलार्म क्लोक से पहले यहाँ कुछ नही होता
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