जब भी
पहने देखता हूँ तुम्हे
सीधे पल्ले की
साड़ी लगता है
मानो कोई आम का पेड़
लकदक है
पीले और रसीले
आमों से और
गढ़ रहा हैं
नया सूत्र
कोई नदी
गुज़र रही हो
इतिहास के
किसी हिस्से से
सभ्यता और
संस्कृति के
किसी विशेष प्रतिमान को
संजोती हुई सी
प्रवाहमान दिखती हो
सीधे पल्ले की साड़ी में
लचकती लता
जैसे बरगद की
दिखने में कोमल
किन्तु भीतर दृढ
झूल जाए
एक युग
नए बयार के संग,
एक प्राकृतिक उमंग
सी लगती हो
सीधे पल्ले की साडी में
एक गृहस्थिन सी
रसोई हो
परिधि जिसकी
घर की चौखट हो
उसकी अनंत सीमा
समेटे हुए
स्वयं में अलग अलग
व्यक्तित्व कितने ही
लगती हो
तुम सम्पूर्ण
सीधे पल्ले की साड़ी में
प्रार्थना में
जैसे बांधे होते हैं
हाथ
तैरता है
निश्छल उजास
उभरता है
पावन उच्छ्वास
बजता है
मंदिर में शंखनाद
ध्वनित होता है
मंत्रोच्चार
जब पहनती हो तुम
सीधे पल्ले की साड़ी
कुछ निश्चिन्त सी
चिंतित सी कुछ
बेपरवाह जैसी कभी तो
कभी करती सी परवाह
कुछ माँ सी लगती हो
जब होती हो तुम
सीधे पल्ले की साड़ी में.
कुछ माँ सी लगती हो
जवाब देंहटाएंजब होती हो तुम
सीधे पल्ले की साड़ी में.
क्या कहूं .....कमाल का बिम्ब कमाल की रचना.....
Arun ji bahut sundar bhavon ko shabdon me utar diya hai .ek bhartiy nari kee kalpna isi roop me ki jati hai .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चित्रण ... सीधा पल्ले की साड़ी में कितने दृश्य दिख गए ...
जवाब देंहटाएंकुछ शब्द नहीं है कहने को,
जवाब देंहटाएंयह भाव यहीं अब रहने दो।
कोई नदी
जवाब देंहटाएंगुज़र रही हो
इतिहास के
किसी हिस्से से
सभ्यता और
संस्कृति के
किसी विशेष प्रतिमान को
संजोती हुई सी
प्रवाहमान दिखती हो
सीधे पल्ले की साड़ी में
nihshabd ker diya is rachna ke satwik prawah ne
कुछ माँ सी लगती हो
जवाब देंहटाएंजब होती हो तुम
सीधे पल्ले की साड़ी में.
...bas aur kuch bhi kahne ko baaki nahi raha ji
अंतस के सुन्दर भावों का सहज प्रवाह चित्र काव्य का सृजन करता है | कविता पढ़ते ही कल्पना साकार रूप ग्रहण कर सामने खड़ी हो जाती है ..... यही तो है कविता !
जवाब देंहटाएंmaa ki seedhe palle ki sari...is bahane kai bisari baten yad kara dii aapne...
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना. बधाई.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर भी आएँ.
कहते हैं जहाँ ना पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि मगर अब कहावत ये कहनी पडेगी
जवाब देंहटाएंजहाँ ना पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे अरुण जी
बेहद गहन दृष्टि। शानदार अवलोकन्।
Bahut komal aur pavitr ehsaas hain ye!
जवाब देंहटाएंवाह कवि कुछ भी सोच सकता है
जवाब देंहटाएंकुछ माँ सी लगती हो
जवाब देंहटाएंजब होती हो तुम
सीधे पल्ले की साड़ी में.
:) :) Kya kahun ..sundar bimb aur atisundar rachna.
बहुत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएं--
मातृदिवस की शुभकामनाएँ!
--
बहुत चाव से दूध पिलाती,
बिन मेरे वो रह नहीं पाती,
सीधी सच्ची मेरी माता,
सबसे अच्छी मेरी माता,
ममता से वो मुझे बुलाती,
करती सबसे न्यारी बातें।
खुश होकर करती है अम्मा,
मुझसे कितनी सारी बातें।।
"नन्हें सुमन"
सरल, सुंदर, सत्य.
जवाब देंहटाएंwah ........ati sunder .....
जवाब देंहटाएंbehatreen abhivykti.....
माँ तो उलटे पल्ले में भी माँ ही रहेगी. बेहतरीन अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंमातृदिवस की शुभकामनाएँ.
इस कविता की प्रेरणाश्रोत का तो पता चल गया..अरुण जी, बार बार कहना अच्छा नही लगता आप कितना लाज़वाब लिखते है.
जवाब देंहटाएंआजकल तो महानगर में साड़ी ही कम दिखती है बाकी सीधे पल्ले की तो कहानी ही और है..बहुत सुंदर उपमा देते हुए आपने कविता रची है..वाकई बेमिशाल....
और बताइए आप कैसे है?
कुछ माँ सी लगती हो
जवाब देंहटाएंजब होती हो तुम
सीधे पल्ले की साड़ी में. ..
...
अरुण भाई हर बार की तरह जड़ कर दिया....प्रवाह और साँस रुक जाती है...आपको पढ़ते हुए...सच में इश्वर की असीम कृपा है आपकी कलम पर...लिखते रहो भाई बड़ा भाग्यशाली हूँ जो आपके दौर में हूँ और आपके साथ भी.
अरुण जी!
जवाब देंहटाएंबस यूं समझ लीजिए कि खडा हूँ मैं और दोनों हाथ तालियाँ बजा रहे हैं!!
श्रद्धा सुमन से शब्द हैं यह..सीधे पल्ले की साड़ी..मातृदिवस की शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंसीधे पल्ले की साड़ी में इतना आंचल रहता है कि मां हमें पूरा का पूरा उसमें ढ़ंक कर रखती थी, हर तरह के दुख कलेश से और हम गाया करते थे ... मेरी दुनिया है मां तेरे आंचल में।
जवाब देंहटाएंभाई अरुण चन्द्र राय जी इस बार भी आपकी कविता अद्भुत है ,वाकई कविता मुक्त छंद की हो या छंद की लिखने वाले के कौशल पर निर्भर करती है कि वह कितना अच्छा लिखता है |बधाई और बहुत बहुत शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंbhavnaon men bandhi aapki ichha ,mukhar ho chali hai . sunder rachana . shukriya ji .
जवाब देंहटाएंकुछ माँ सी लगती हो .... क्या शब्दों में बाँधा है ... माँ का बिंब खैंच दिया आपने ... लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत खुबसूरत......हैट्स ऑफ इस पोस्ट के लिए |
जवाब देंहटाएंबजता है
जवाब देंहटाएंमंदिर में शंखनाद
ध्वनित होता है
मंत्रोच्चार
जब पहनती हो तुम
सीधे पल्ले की साड़ी....
वाह अरुण जी !क्या बात है !!!....मन मोह लिया इस रचना ने।
बधाई।
.
bahut sunder
जवाब देंहटाएंसीधे पल्ले में तुम माँ सी ही दिखती हो ...
जवाब देंहटाएंसात्विकता में रची बसी कविता !
sunder kvita !
जवाब देंहटाएंबेपरवाह जैसी कभी तो
जवाब देंहटाएंकभी करती सी परवाह
कुछ माँ सी लगती हो
जब होती हो तुम
सीधे पल्ले की साड़ी में.
seedhe palle ki saadi ki itani sunder byakhyaa.bahut achcha likha hai.dil ko choo gai aapki rachanaa.badhaai aapko.
mera maargdarsen karane ke liye plese mere blog per bhi apni najaren inayaay kijiye.thanks
कुछ माँ सी लगती हो
जवाब देंहटाएंजब होती हो तुम
सीधे पल्ले की साड़ी में. ..
अनुपम प्रस्तुति ।
माँ सी लगती हो
जवाब देंहटाएंजब होती हो तुम सीधे पल्ले की साड़ी में ....
सर्वोच्च दर्जा दे दिया आपने सीधे पल्ले की साड़ी को ..वाह
ओह....मंत्रमुग्ध करती मनमोहक रचना...
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ...
दुनाली पर पढ़ें-
जवाब देंहटाएंकहानी हॉरर न्यूज़ चैनल्स की
कुछ निश्चिन्त सी
जवाब देंहटाएंचिंतित सी कुछ
बेपरवाह जैसी कभी तो
कभी करती सी परवाह
कुछ माँ सी लगती हो
जब होती हो तुम
सीधे पल्ले की साड़ी में.
माँ की महिमा का कितना सुन्दर चिन्तन… दिल छूती पंक्तियाँ. बहुत प्यारी कविता है। धन्यवाद
बहुत प्यारी कविता है
जवाब देंहटाएं....मातृदिवस की शुभकामनाएँ!
OR HA DERI KE LIYE MAFI CHAUNGA
जवाब देंहटाएंकुछ निश्चिन्त सी
जवाब देंहटाएंचिंतित सी कुछ
बेपरवाह जैसी कभी तो
कभी करती सी परवाह
कुछ माँ सी लगती हो
जब होती हो तुम
सीधे पल्ले की साड़ी में.
सीधे पल्ले के माध्यम से भारतीय नारी की सरलता और आन्तरिक सौन्दर्य का बोखोता है बहुत सुन्दर रचना। अरुण जी को बधाई।
भाव विह्वल करने की क्षमता रखती है यह रचना ! शुभकामनायें आपको !!
जवाब देंहटाएंकुछ माँ सी लगती हो
जवाब देंहटाएंजब होती हो तुम
सीधे पल्ले की साड़ी में.aapne hame bhi maa ki yaad dila di.....seedhe palle ki sari men.
isme kavita jaisa kya hai bhai.
जवाब देंहटाएंभोज्येषु माता, शयनेषु रम्भा ।
जवाब देंहटाएंधर्मानुकूला, क्षमया धरित्री ।।
पत्नी में माँ का दर्शन..............यार आप तो 'सुभाषितानि-सूत्रों' के काफ़ी करीब लग रहे हो इस कविता में| सीधे पल्ले की साड़ी को ले कर इतनी गहरी सोच| बहुत खूब|