सोमवार, 7 नवंबर 2011

कुँए का एकांतवास



हुआ करता था
एक दालान 
खलिहान के सामने 
जहाँ तीन जोड़े बैल 
करते थे दौनी 
धान, गेहूं की
इस दालान के उत्तर में था
एक कुआं

कभी सूखा नहीं 
ये कुआँ
१९३४ के भूकंप में भी 
ढहा नहीं था 
परंपरा रही है
हर बैशाख में
उड़ाही होती थी 
कुएं की 
खोले जाते थे सोते
जाग जाता था कुआं
आने वाली प्यास के लिए

समय गुज़रा
खलिहान छोटे हुए
छोटा हुआ परिवार भी
दालान के उत्तर में जो था कुआँ
साझी संपत्ति हो गई,
खेतों के टुकडो के साथ
अकेले पड़ने लगा खलिहान
बैलों के जोड़े बिक गए
दालान हो गया खाली और
पीढियां पलायन कर गईं
नहीं लौटने के लिए 
कुआँ पड़ गया अकेला 
इस दौरान  

उग आये पीपल 
कुएं की दीवारों में 
और पीपल की जड़ें 
धस गईं कुएं की नीव में 
दादा जी की प्रतीक्षारत आँखों के साथ
कुआँ भी करता रहा 
वैशाख का इंतजार 
कुएं की उड़ाही नहीं हुई 
दादी फिर भी आती रही
कुएं के पास
दादाजी के नहीं रहने के बाद भी
अंतिम समय में गंगाजल के स्थान पर
पिया उन्होंने उसी कुएं का ही पानी
अंतिम बार था जब
कुएं में डाली गई डोल-डोरी

बिना किसी भूकंप के 
कुआं खंडहर हो गया है
चला गया है एकांतवास में 
नहीं लौटने के लिए कभी. 

40 टिप्‍पणियां:

  1. समय गुज़रा
    खलिहान छोटे हुए
    छोटा हुआ परिवार भी

    कुएं के माध्यम से आपने वर्तमान जीवन सन्दर्भों को बड़ी संवेदना से उकेरा है ....यह सही है कि आज परम्पराएं समाप्त हो रहीं हैं और जीवन बिखरता जा रहा है ...!

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  2. बिना किसी भूकंप के
    कुआं खंडहर हो गया है
    चला गया है एकांतवास में
    नहीं लौटने के लिए कभी... prakriti bhi ekaaki ho rahi

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  3. kuen ke madhyam se aapne ek poori sanskruti ke ujadane ki vyatha kah dali....aaj ye har gaon kasbe shar ki kahani hai har samaj sankruti ki kahani hai...khoobsurat chitran.

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  4. बहुत ही मार्मिक चित्रण...जैसे कुएं के अंतर्मन में झाँक कर उसका दर्द देख लिया हो...और शब्दों में ढाल दिया हो.

    खेत-खलिहान..सबका साझा दर्द उभर आया है इन पंक्तियों में

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  5. कुएं का दर्द मुझे भी चुभता है। बहुत अच्छी लगी यह कविता। आजकल वैसे भी कुओं का स्थान ट्यूबवेल ने ले लिया है। घर-घर में बोरिंग करा कर लोग समरसेबल पाईप लगा चुके हैं। कुएं सूखे पड़े हैं।
    कुएं के सहारे गांव का दर्द भी अभिव्यक्त हुआ है।..बहुत बधाई।

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  6. कुएं का दर्द भी हमारे दर्द के समान ही जिंदगी से बहुत करीब से जुदा है. तो एक न एक दिन उसका भी अंतिम संस्कार होना स्वाभाविक है.

    सुंदर भावमयी रचना के लिये बधाई.

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  7. बहुत भावपूर्ण. कुआं क्या पूरी प्रकृति की यही अवस्था है.

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  8. सबके मिलने का स्थान आज अकेला पड़ गया।

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  9. बिना किसी भूकंप के
    कुआं खंडहर हो गया है
    चला गया है एकांतवास में
    नहीं लौटने के लिए कभी.
    पलायन और उपेक्षा का भूकंप तो आया ही ..
    बेहतरीन रचना

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  10. आज कल तो गांव ही कुंआ विहीन होता जा रहा है।
    आसन्‍न संकटों की भयावहता से हमें परिचित कराया है आपकी वैचारिक की मौलिकता नई दिशा में सोचने को विवश करती है ।

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  11. ‘बिखराव’ की हृदयस्पर्शी प्रस्तुति...

    “दो क्षण अम्बर छोड़ कर, जड़ों को लौटें हम
    गाँव, गलि, खलिहान, खेत, कुओं का हर ले गम”

    बेहतरीन रचना ...
    सादर आभार....

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  12. बहुत मार्मिक रचना है...बेजोड़...

    नीरज

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  13. सुंदर भाव समेटे ... कापीराइटर की कलम चलती है.

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  14. बहुत ही संवेदनशील ... न जाने ऐसे कितने ही भाव लुप्त हो रहे हैं आज ...

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  15. बेहतरीन भावाभिव्यक्ति !

    कृपया पधारें ।
    http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html

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  16. एक निर्जीव वस्तु के माध्यम से भी आपने कितना मार्मिक चित्र उपस्थित कर दिया है...........उफ्फ्फ .........शानदार |

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  17. भावमय करते शब्‍दों का संगम ...

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  18. बिना किसी भूकंप के
    कुआं खंडहर हो गया है
    चला गया है एकांतवास में
    नहीं लौटने के लिए कभी......धीरे - धीरे बदलते परिवेश की तरफ इंगित करती खूबसूरत रचना |
    बहुत सुन्दर |

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  19. बहुत मार्मिक चित्रण .. पुरानी चीज़ें खत्म होती जा रही हैं ..यहाँ तक कि मान्यताएं भी

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  20. बिना किसी भूकंप के
    कुआं खंडहर हो गया है
    चला गया है एकांतवास में
    नहीं लौटने के लिए कभी.
    yah sab maine bhi dekha hai.....hriday-vidarak.....

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  21. sach kahu to kuon ka wo dour maine jyada nahi dekha ya yu kahu to behtar hoga ki apne ghar me nahi dekha.bas nanaji ke jate the ya aj bhi jate hai to dekhne mil jate hain kue....par haan kuon ki sanskruti se parichit hu main...aur us sanskruti ke dheere dheere hote oatan se bhi....sundar kavita

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  22. पीढियां पलायन कर गईं
    नहीं लौटने के लिए
    दर्द की अप्रतिम अभिव्यक्ति!

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  23. बिना किसी भूकंप के
    कुआं खंडहर हो गया है
    चला गया है एकांतवास में
    नहीं लौटने के लिए
    adwitiy, meri badhai sweekarein !

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  24. बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

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  25. bhai ji ,ek jeevan ki sampoorn trasdi hai aapki rachna ,kua to keval prateek hai.jo bhi ho kue se bahut accha link kiya aapney jeevan ko

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  26. na jane kyu... par kahani kuen bas ki nahi, har kisi ki hai... aisa lagta hai jaise gaanw ka koi bujurg apni vyatha bata raha ho...
    ho sakta hai ki aisa sirf mujhe laga ho... par laga, so likh diya...

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  27. समय का चक्र है... उजड़ना-बसना तो यूँ ही लगा रहता है..

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  28. बिना किसी भूकंप के
    कुआं खंडहर हो गया है
    चला गया है एकांतवास में
    नहीं लौटने के लिए कभी.

    ...आज के बदलते माहौल में एकाकीपन की व्यथा की बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...

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  29. दर्द की सुन्दर और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति.

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  30. सुंदर भावमयी रचना... मर्मस्पर्शी|

    सर,हिन्दी हाइगा पर अभी जो पोस्ट है उसमें चित्र गूगल से साभार नहीं लिया है,अवलोकन करने की कृपा करें|

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  31. आँखें बह चलीं...

    क्या कहूँ, घोर निस्तब्धता और निःशब्दता की इस स्थिति में...

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  32. बैलों के जोड़े बिक गए
    दालान हो गया खाली और
    पीढियां पलायन कर गईं
    नहीं लौटने के लिए
    कुआँ पड़ गया अकेला
    इस दौरान

    उग आये पीपल
    कुएं की दीवारों में
    और पीपल की जड़ें
    धस गईं कुएं की नीव में
    दादा जी की प्रतीक्षारत आँखों के साथ
    कुआँ भी करता रहा
    वैशाख का इंतजार
    कुएं की उड़ाही नहीं हुई
    दादी फिर भी आती रही
    कुएं के पास
    दादाजी के नहीं रहने के बाद भी
    अंतिम समय में गंगाजल के स्थान पर
    पिया उन्होंने उसी कुएं का ही पानी
    अंतिम बार था जब
    कुएं में डाली गई डोल-डोरी
    .........
    आपका लेखन रूहानी नहीं होता रोमांस भी नहीं होता ...जीवन को लिखते हैं आप हमेशा ही एक टीस अपनी जड़ों से कत जाने की हमेशा कुछ न कुछ सोंचने पर मजबूर करते हैं आप ...जब भी कभी सौभाग्य मिलता है पूरे का पूरा डूब जाता हूँ ...(जबकि इस बारे में मैं अक्सर दुर्भाग्शाली ही सिद्ध हुआ हूँ)
    जिंदगी के महान फनकार है आप | अगर मैं थोड़ा सा आगे बढ़ जाऊं तो प्रेमचंद की परम्परा के !

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