इस बरस भी
भादो नहीं बरसा
हथिया नक्षत्र
सूना ही रहा
नहीं बढाई बादलो ने
अपनी सूंढ़
और तालाब की मछलियाँ
नहीं खींच ले गया
भादो नहीं बरसा
हथिया नक्षत्र
सूना ही रहा
नहीं बढाई बादलो ने
अपनी सूंढ़
और तालाब की मछलियाँ
नहीं खींच ले गया
न जाने माँ की
कैसी कैसी चिंताएं हैं
जो इस शोर में
दब कर रह जाती हैं
और इस बीच सरकार
एक दिन में ले लेती है
कई जरुरी निर्णय
जिसमे भादो के नहीं बरसने का
जिक्र नहीं होता
हथिया जो
नहीं बरसा है
कैसे जमेगा धान के पौधे में गर्भ
धान के पौधे जो नहीं
गम्हरायेंगे
कैसे लकदक लकदक फूटेंगे
माँ घुली जाती है इन चिंताओं में
उस नहीं फ़िक्र कि
बुढ़ापे के लिए संजोये पेंशन की रकम से
हथिया जो
नहीं बरसा है
कैसे जमेगा धान के पौधे में गर्भ
धान के पौधे जो नहीं
गम्हरायेंगे
कैसे लकदक लकदक फूटेंगे
माँ घुली जाती है इन चिंताओं में
उस नहीं फ़िक्र कि
बुढ़ापे के लिए संजोये पेंशन की रकम से
अब खेलेगा बाज़ार
मनचाहे तरीके से
क्योंकि अब भी पेंशन उन तक कहाँ पहुची है
जिनके लिए भादो का नहीं बरसना
बन सकता है
आत्महत्या का तात्कालिक कारण
माँ
भादो के हर इतवार को
रखती है सुरुज देवता का व्रत
और ऐसा रिश्ता है उसका
सुरुज देव से कि
जी भर कर कोसती है
भादो में चमकने के लिए
चटकते धान के खेतो को देख
माँ के चेहरे पर उभर आती है
झुर्रियों की कई और परतें
और कोई मेकप नहीं बना
जिसे छुपाने के लिए
माँ बहुत उदास होती है
भादो के नहीं बरसने पर
जबकि गीत तो सावन के बरसने का है
माँ फिल्मे नहीं देखती शायद