भूसा बहुत बढ़िया रूपक उठाया है और आखिर तक इसे निभाया है .वाह क्या बात है भूसा हूं मैं अन्न को सहेज रखता हूं और अंत में कर दिया जाता हूं बाहर - ram ram bhai मुखपृष्ठ
सोमवार, 1 अक्तूबर 2012 ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल २/१०/१२ मंगलवार को चर्चा मंच पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आप का स्वागत है
जवाब देंहटाएंवाह-
जवाब देंहटाएंपर फिर भी किसी न किसी का पेट तो भरता ही हूँ..
जवाब देंहटाएंमैं भूसा हूं,,,,,पर किसी लिये तो है उपयोगी,,,,
जवाब देंहटाएंRECECNT POST: हम देख न सके,,,
अन्न सहेजता किसान भी
जवाब देंहटाएंभूसे-सा है दर-बदर
भर पाता गर दिमागों में
होता हुलसता भूसे के ढेर पर!
भूसा बहुत बढ़िया रूपक उठाया है और आखिर तक इसे निभाया है .वाह क्या बात है भूसा हूं
जवाब देंहटाएंमैं
अन्न को
सहेज
रखता हूं
और अंत में
कर दिया जाता हूं
बाहर -
ram ram bhai
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सोमवार, 1 अक्तूबर 2012
ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी
ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी
मत बताओ
जवाब देंहटाएंमत कहो
मैं भूसा हूँ
भूसा होने
तक ही ठीक
होता है
जिस दिन
पता हो
जाता है
सामने वाला
भैंस की तरह
उसके बाद
पेश आता है !
interesting ...Shushil ji ka comment bhi hansa gya...
जवाब देंहटाएं"अद्भुत" और सुशील जी की टिपण्णी "गजब" सच्चाई से साक्षात्कार
जवाब देंहटाएंभूसा है फिर भी काम आता है किसी का पेट भरने के
जवाब देंहटाएंभूसे को रचना में समेटने की क्षमता अरुण रॉय ही रख सकते हैं।
जवाब देंहटाएंभूसा से हमारे घर में खाना बनता था। अब ...?
भूसा भी काम का होता है . बढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंगज़ब अरुण भाई....वाह!
जवाब देंहटाएंभूसा किसी कई रोटी है पेट भरने के लिए..बहुत खूब..
जवाब देंहटाएंbhoosa......ek yatharth.
जवाब देंहटाएंMere dimag me bhee filhaal bhoosa hee bhar gaya hai...kuchh naya lekhan nahee kar paa rahee hun!
जवाब देंहटाएंआपका कहन बहुत सहज है ...साधारण से दिखने वाले बहुत सारे अनछुए विषयों को छू रहे हैं आप ...
जवाब देंहटाएं:) सही........!!
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