सोमवार, 1 अक्टूबर 2012

भूसा



भूसा हूं
मैं
अन्न को
सहेज
रखता हूं
और अंत में
कर दिया जाता हूं
बाहर

मेरा मोल भी
भूसा रह जाता है
मैं
ढेर सारे लोगों में
दिमाग में भर जाता हूं
जो नहीं होते हैं
इस दुनिया के काबिल तेज़

मैं
भूसा हूं

18 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल २/१०/१२ मंगलवार को चर्चा मंच पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आप का स्वागत है

    जवाब देंहटाएं
  2. पर फिर भी किसी न किसी का पेट तो भरता ही हूँ..

    जवाब देंहटाएं
  3. अन्न सहेजता किसान भी
    भूसे-सा है दर-बदर
    भर पाता गर दिमागों में
    होता हुलसता भूसे के ढेर पर!


    जवाब देंहटाएं
  4. भूसा बहुत बढ़िया रूपक उठाया है और आखिर तक इसे निभाया है .वाह क्या बात है भूसा हूं
    मैं
    अन्न को
    सहेज
    रखता हूं
    और अंत में
    कर दिया जाता हूं
    बाहर -
    ram ram bhai
    मुखपृष्ठ

    सोमवार, 1 अक्तूबर 2012
    ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी
    ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी

    जवाब देंहटाएं
  5. मत बताओ
    मत कहो
    मैं भूसा हूँ
    भूसा होने
    तक ही ठीक
    होता है
    जिस दिन
    पता हो
    जाता है
    सामने वाला
    भैंस की तरह
    उसके बाद
    पेश आता है !

    जवाब देंहटाएं
  6. "अद्भुत" और सुशील जी की टिपण्णी "गजब" सच्चाई से साक्षात्कार

    जवाब देंहटाएं
  7. भूसा है फिर भी काम आता है किसी का पेट भरने के

    जवाब देंहटाएं
  8. भूसे को रचना में समेटने की क्षमता अरुण रॉय ही रख सकते हैं।
    भूसा से हमारे घर में खाना बनता था। अब ...?

    जवाब देंहटाएं
  9. भूसा किसी कई रोटी है पेट भरने के लिए..बहुत खूब..

    जवाब देंहटाएं
  10. Mere dimag me bhee filhaal bhoosa hee bhar gaya hai...kuchh naya lekhan nahee kar paa rahee hun!

    जवाब देंहटाएं
  11. आपका कहन बहुत सहज है ...साधारण से दिखने वाले बहुत सारे अनछुए विषयों को छू रहे हैं आप ...

    जवाब देंहटाएं